कारक अपीनस ज्ञानकोश (अ)२६४ अपीनस जमने दिया जाय तो वह अधिक सड़ जाता है बाहर निकल पाती है। साधारणतः नाक पिच. और चारों ओरका स्थान गलना प्रारम्भ हो जाता | कारी द्वारा भी निर्मल की जा सकती है। नाकको है ! इस कारण धाव अच्छे होनेकी परिस्थितिको चूनेके निथरे हुए पानी ( Lime Water ) से ऋभी भी प्राप्त नहीं होता। नाकके भीतर पानी अथवा गरम हुए थोड़े दूधके मिश्रणसे धोनेसे खींचकर या पिचकारीसे नाकको साफ करना,हानि भी लाभ होता है। उक्त प्रकारसे नाकको तीन । अतः नाक धोने के यन्त्र ( Nasal या चार बार धोनेसे श्लेष्मा यो मवादके गाढ़े Douche) से ही उसे साफ करना चाहिये। यह होकर जमनेकी सम्भावना बहुत ही कम रह जाती यन्त्र कनिष्टका अंगुलीके समान मोटी रबरकी | है। फिर प्रत्येक बार नाकको सफा करते समय नली है जिसके एक और नाकमें लगाने योग्य एक न तो कष्ट ही होता है न अधिक समय ही चर्चाद यन्त्र लगा रहता है और दूसरी ओर धातुकी एक | होता है। नाक साफ़ करते समय दोनों नासा में ऐसी नली जो पानीको भीतर खींचती है। इस | धोनेकी क्रिया करनेसे नासिका खूबस्वच्छ होती है। नलीको आधसेर जलके पात्र में रख देना चाहिये। खपलियोंके निकल जानेके बाद आवश्य- फिर उस पानमै सादा. सहने योग्य गरम, या कुछ कतानुसार निम्नलिखित औषधियोंका प्रयोग क्षार युक्त औषधि (जिसमें कुछ नमक, सोडा करना चाहिये । ये औषधियाँ स्तम्भक तथा और बोरिक ऐसिडके समान दवाई, मिलाकर)जल दुर्गन्धि नाशक है। इन औषधियोंके दिये हुए छोड़ना चाहिये। इसके पश्चात् नाकवाले यन्त्रको प्रमाणोंको दस औंस जलमें घोल देना चाहिये। नासापुटमै लगाकर पानी के पात्रको ऊपर उठाकर इसी जलसे नासिकाको धोना चाहिये। परमैग तनिक टेढ़ा करना चाहिये। ऐसा करनेसे नली नेट ऑफ पोटैशियम २ नेन, क्लोराइड श्रॉफ में जलप्रवाह प्रारम्भ हो जाता है और वायुमंडल जिन्क २ ग्रेन, सलफेट ऑफ ज़िन्क ३० ग्रेन, के भारके कारण अबाध गतिसे प्रचलित रहता है। कारबोलिक ऐसिड १ ड्राम, नाइट्रेट ऑफ सिल्वर इस प्रकार नासापुट में जल सञ्चरण प्रारम्भ हो | ४ ग्रेन; फिटकिरी ४० ग्रेन; सवागी खार ४० ग्रेन; जाता है। यह प्रवाह उस समय तक प्रचलित क्लोरेट ऑफ पोटैशियम ३० नेन; टि-कचर श्रॉफ रहना चाहिये जब तक नाक पूर्णरूपसे गन्दगीसे | आयोडोन १० बूंद; रस कपूर १-२ नेन इत्यादि । रहित न हो जाय। इनमें से किसी भी एक औषधिका प्रयोग बरा- इस युक्तिके उपयोगके समय मुंह भली भांति बर करते रहना चाहिये। जब नाब अधिक हो खुला रहना चाहिये। ऐसा करनेसे मृदु तालु तव फिटकिरी, त्रिफलेके काढ़े, बबूरकी छालके (Soft Palate ) ऊपर उठ जाता है और नासिका काढ़ेके समान स्तम्भक औषधियोका प्रयोग करना के पिछले छिद्रोंका सम्बन्ध मुँह या गलेसे नहीं चाहिये। और यदि साघमें दुर्गन्धि अधिक हो रह जाता है। इस कारण एक नालासे गया जल | तो 'दुर्गन्धि नाशक औषधिोका ( कारवोलिक दूसरी नासासे बाहर आ जाता है। इस प्रकार ऐसिड, कैन्डीज़, फ्लूइड ) प्रयोग करना चाहिये। सम्पूर्ण नासिका धुल जाती है और खपलिया नाकके स्वच्छ हो जानेके पश्चात् गौके घृत में निकल जाती हैं। यदि इस प्रकार धोनेसे भी | ग्लीसरीन, हेयलीन, या बॉलसम ऑफ पेरू, ऐसी सब मैल न निकल जाये या ऊपरी भागकी खप- ही स्निग्ध किसी औषधिसे या तैलमें रुई भिगो लियाँ भीगकर न निकले तो एक बारीक लम्बे कर उसे लोहेकी सलाई द्वारा नासा के भीतर रख तिनकेके एक सिरे पर कर रूई लपेटना चाहिये । देना चाहिये। इसके अतिरिक्त अनेक लोग सुंघ- फिर. इस कायेसे शनैः शनैः बड़ी सावधानीसे नियोका या दुर्गन्धिनाशक बुकनियोंका भी प्रयोग खुरच कर खपलियाको निकालना चाहिये। आलस्य करते हैं। बोरिक ऐसिड, विसमथ सॉलल, या अन्य किसी कारणसे जब नाक कई दिन तक कपूर, माजूफलकी बुकनी, फैलोमल, कंकोल, नहीं धोई जाती तब भीतर खपलियाँ तथा अन्य आयडो फार्म इन्हे खरियामिट्टी, चीनी या चावल गन्दी चीजें जम जाती हैं। इन चीजोको आसा- के आटे के साथ, आवश्यक प्रमाणमें मिलाकर नीसे निकाल देने के लिए नाकको साफ करनेके | बार बार सुंधा जाता है। परन्तु सुँघनीको पहले, गरम पानीसे सेंकना ( Fomentation.) अपेक्षा पूर्व कथित उपयोग ही अधिक लाभदायक चाहिये और वाष्पको श्वास द्वारा भीतर खींचना है अर्थात् स्निग्ध औषधियों का प्रयोग करनाचाहिये। ( Inhale.).चाहिये। इससे जमी हुई कड़ी कड़ी साधारणतः नाक रोज़ धोनेसे तथा दुर्गन्धि- खपलियाँ भी मुलायम होकर जल प्रवाहके साथ | नाशक औषधियोंके प्रयोगसे भीतरके धाव शीघ्र
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