पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अपुष्प वनस्पति ज्ञानकोश (अ) २६५ अपुष्प वनस्पति ही भर जाते हैं और दुर्गन्धियुक्त नाव बन्द हो | भिन्न प्रकारसे किया गया है। भागे दिया हुआ जाता है। परन्तु यदि हड्डी कट या सड़ गई हो वर्गीकरण ब्राउन पद्धतिका है। उसमेसे एग्लर, तो बिना उसके निकाले चिकित्सा असम्भव है। एङ्गलर, वेट्स्टाइन इत्यादिका रहोबदल स्वीकार उपदंश रोगके कारण यदि अपसीनका ज्वर | किया है। इस पद्धतिके अनुसार अधुष्प वन- भाजावे तो उपरोक्त चिकित्साके पश्चात् स्थानिक स्पति बनस्पति शास्त्रको नीचेकी सीढ़ी और सपुष्प उपचार करना चाहिये। रस कपूर-१ भाग या वनस्पति ऊपरकी सीढ़ी है। अपुष्प वनस्पति के (परक्लोराइड नोफ मरकरी) ५,००० या १०,००० नीचे दिथे अनुसार विभाग किये जाते हैं। भाग पानोमें घोलकर उल मिश्रणसे नाक धोना (१) स्थाणुवर्ग-(Thallophyta) इस भाग चाहिये। जिस स्थानपर घाव हो गया हो वहाँ | में बहुत प्रकार की वनस्पतियों का समावेश होता है पर नाइट्रेट आफ सिल्वर लगाना चाहिये। किन्तु उनका वानस्पतिक भाग एक अथवा अनेक प्रत्येक रोगीकी सम्पूर्ण प्रकृतिको सुधारनेके पेशियों का और प्रायः फैला हुआ तथा शाखायुक्त लिए उसको उत्तम पौष्टिक भोजन देना चाहिये। रहता है तथा इसको स्थाणु कहते हैं ! साथ ही साथ उसे स्वच्छ वायुके स्थानमै व्यायाम उत्पादन क्रिया योग संभव ( Sexual ) अथवा करना चाहिये। हो सके तो प्रारम्भसे ही स्थानिक | अयोगसंभव ( ual) ऐसे दो प्रकारकी हो उपचार के साथ ही साथ कॉड लिवर ऑयल, सकती हैं. परन्तु दोनों प्रकारके नियम साथ २ लोह सोमल, कोयनेल इत्यादि शक्तिवर्धक औष- | लागू नहीं होते। धियोको उपयोग करना चाहिये। इस प्रकारके (२) लिंगकरंडक धारी-( Archigoniatae ) निरंतर कई मासके उपचार से भी अपीनस ऐसे | इस भागकी वनस्पतियों में यह दोनों हो भाग पाये दुखदाई ज्वरसे छुटकारा मिल जाता है परन्तु यह | जाते हैं और दो पीढ़ियां स्पष्ट दिखाई देती हैं। बहुत कम रोगियोंसे साध्य है। अतएव लोगोंमें प्रयोगसंभव अलिंगपीढ़ि (Sporophyte) से घातक विचार उत्पन्न हो गया है कि अपोनस | जननपेशियां होती हैं। उस जननपेशीसे योग- किसी भी उपचारसे ठीक नहीं होता। संभव लिंगपोढ़ि (Gamatophyte) उत्पन्न [भिषग्विलास (पु०१४) पृ० ५८ ६३ ] होती हैं। इस पीढ़िमें इन्द्रियां निकलती हैं तथा अपुष्प बनस्पति-वनस्पति शास्त्रके मुख्य उनके नर तथा स्त्री भागों संयोगसे तैयार दो भागों में ले श्रपुष्प वनस्पति (Cryptogam ) हुवे जननपेशी रे पहिलेके सदृश जननपेशी उत्पन्न एक भाग है । इस भागके बनस्पतियों में एक पेशो- होनेसे पेड़ तैयार होते हैं। लिंग करण्डक धारी भय वनस्पति से लेकर, जिनमें वास्तवमै फूल नहीं | में दो भाग होते हैं। (१) शैवालवर्ग ( Bryo- होते ऐसी सब प्रकारकी वनस्पतियों का समावेश phyte ) इस भागकी कुछ वनस्पतियाँ पत्तोंके होता है। सपुष्प वनस्पतिमै और इसमें जो बड़ा | समान फैलनेवाली होती है तथा कुछमें पत्ते तथा भेद दिखाई पड़ता है वह यह है कि अयुष्प वन तना भली-भांति दिखाई देते हैं। इन वनस्पतियों स्पति जनन-पेशी ( Spores ) से उत्पन्न होती हैं | मैं मुख्य जड़े नहीं रहती तथा उनकी बाहिनियां और सपुष्प वनस्पतिमे भो जननपेशी तयार होती जब रही होगी उस समय बिलकुल सादी होगी। हैं परन्तु पहिलेकी तरह पेड़ उत्पन्न करनेकी शक्ति अलिंगपीढ़ि एक छोटे फलके सदृश कवचके उनमें नहीं रहती। यह जनन-पेशो यदि सड़ाई भागकी होती है और वह करोव २ मुख्य वन- जाय तो भी उनमेंसे नवीन पेड़ उत्पन्न नहीं हो स्पति पर अवलंबित रहती हैं। किंतु लिंगपादि सकते; वह बीजसे ही होते हैं। वीज अनेक पेशियों बहुत बड़ी होतो है और वह मुख्य बनस्पति ही से मिलकर बनते हैं तथा उनमें अनेक पेशियोका के सदृशं दिखाई पड़ती है। (२) वाहिनीमय एक गर्भ पहिलेसे ही तैयार हुवा रहता है । जनन अपुष्प वर्ग ( Pterridophyte ) इस भागमेके पेशी एक पेशीमय रहती है तथा अपुष्प वनस्पति । वनस्पतिकी लिङ्गपोढ़ि छोटी होकर स्थाणुरूप में वह मूल वनस्पतिले अलग हो जाती है । इसके ! रहती है। लिंगपीढ़िमें (Sporophyte ) तना पत्त पश्चात् उससे बिलकुल नवीन वनस्पति निर्माण | तथा जड़े अच्छी तैयार हुई रहती हैं तथा होती है। अतः अपुष्प वनस्पतिको जननपेशी | इनमें उत्तम वाहिनीयां रहती हैं। इस दृष्टिसे की वनस्पति तथा सपुष्प वनस्पतिको बीजकी ये वनस्पतियां सपुष्प वनस्पतिके सदृश कही जा वनस्पति नाम दिये गये हैं। सकती हैं। वर्गीकरण-अपुष्प वनस्पतिका वर्गीकरण भिन्न स्थाणुवर्ग-( Thallophyte ) इसका मुख्यतः