पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२८९

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अपुष्ण वनस्पति ज्ञानकोश (अ) २६६ अपुष्प वनस्पति पाणकेश ( Algae), अलिंब ( Fungus=बुरशी) एक प्रकार की कलिकाएँ उत्पन्न होती है और और शिलावल्क ( Lichens) ऐसे तीन विभाग | तब ये कलिकाए आगे चलकर जननपेशी बनती किये जाते हैं। पाणकेश वनस्पतियों में कुछ हैं। जव जनन पेशोपर छोटे २ बालके तरह तंतु रंगीन पदार्थ मुख्यतः-हरा द्रव्य-रहता है। रहते हैं तब वे हिलकर पानी में तैरते हैं। जिनमें इनको अपने बढ़नेके लिये जिन सामग्रियोंकी तंतु नहीं रहता और जो पानीमें रहते हैं वे वैसे- आवश्यकता होती है वे उनको स्वयं तय्यार कर ही खुले रहते है लेकिन जो हवामें रहते हैं उनमें लेते हैं; इसलिये उनको दूसरे पर अवलंवित रहने एक पेशीकवव रहता है। योगसंभव ( Sexual ) की आवश्यकता नहीं पड़ती। बुरशी (भूरा) | उत्पादन भी बहुत स्थानपर दिखाई पड़ता है। मेंके वनस्पतियों में रंग नहीं रहता; वे अपनी रक्षा | उसमे की बिलकुल साधारण किस्म है कि दो तथा वृद्धि के लिये स्वयं सामग्री उत्पन्न नहीं कर संयोगी ( Sexual) पेशी एकत्र होकर ,उनसे लेते, इसलिये उनको दूसरे पर अवलंवित रहना एक पेशी तैय्यार होना और बाद में पेशीसे नवीन पड़ता है और वह वांडगुडकी तरह परान्नभक्षक बनस्पति उत्पन्न होना। ये पेशियां ज्यादा तर होते हैं। यद्यपि यह भेद उनके जीवित क्रम | विलकुल समान होती हैं। कहीं कहीं एक पेशीके से निकाले जा सकते हैं तब भी इनमें उनके | महीन तंतु रहते हैं। कहीं २ एक पेशी अत्यन्त उत्पत्तिके विषयमें कुछ बोध नहीं हो सकता। | छोटी होती है और उसके तंतु रहते हैं। इस पेशी शिलाबल्क ऊपर कही गई दो वनस्पतियोंसे को नरपेशी (Spermatozorid) रेत कहते हैं। रेत मिलकर बनती है। उसमेका पाणकेश पाण रेतकरंडकमे ( Antheridia) उत्पन्न होता है। केशके साथ, और भूरा भूरेके साथ, देखा जा दूसरी रजपेशी बहुत बड़ी रहती है और वह सकता है परन्तु भिन्न भिन्न शिलाबल्कमें ही ! रजकरंडक ( Arclugonium ) स्त्रीतत्वोत्पादक अत्यन्त समानता रहनेके कारण उनका एक । पेशीम उत्पन्न होती है। स्थाणु वर्गमें कुछ वन- अलग तीसरा भाग किया जाता है। स्थाणुवर्गके स्पतियोंमें उत्पादन केवल अयोग संभव रहता है, सूक्ष्म जंतु ( Bacteria ) तथा नीलपाणकेश कुछमें केवल योग संभव और कुछमें दोनों प्रकार (Cyanophyceae) में की वनस्पति ये सबसे | से होता है । सादी होती हैं। ये दोनों ही स्थाणुवर्ग के अन्य सूक्ष्म जन्तु-- Bacteria ) यह उसके रुढ़ि वनस्पतियों से बिलकुल भिन्न हैं। पुच्छविशिष्ट | नामसे प्राणिवर्गमे का मालूम पड़ता है तो भी ( Flagellata ) भागमैके वनस्पतियों को प्रायः वस्तुतः वे एक पेशीमय, तंतुके सदृश अत्यन्त बिलकुले छोटे तथा सादे प्राणिकी श्रेणी में देखते सूक्ष्म साधारण वनस्पतियां हैं। उनमें हरिद्रव्य न हैं। उनकी रहन सहन करीब २ वनस्पतियोंके रहनेसे वे परोपजीवी रहते हैं। सब भूतलपर सदृश ही है और प्राणिके समान भी है। जल में, जमीनमें, हवामें, मृत और जोवित प्राणि- "कनिष्ठ वर्ग के प्राणियोंके उद्गम" में भी उनको | योंके शरीरमै एवं लब जगह यह पाये जाते हैं। गणनाकी जा सकती है। बुरशोमेको निए | इनके पेशीपर एक अत्यन्त पतली त्वचा रहती वनस्पति ( Mytomycetos ) से बिना रंगकी वन- है और उसके भीतर जीवद्रव्य रहता है। इस स्पति हुई होंगी। शैवालतन्तुको जाति भो इन्हींसे | जीवद्रव्यमें कभी कभी एक अथवो दो जड़ स्थान उत्पन्न हुई हांगी। कांडशरीरिका (Characeae) ( Vocuoles) रहते हैं। उनमे कुछ कुछ कण ऐसे तो अन्य सब स्थाणुर्गसे आगे बढ़ी हुई होनेके | रहते है कि वे स्वतः रंगहीन होने पर भी यदि वे कारण स्थाणुवर्गमें सबसे उच्च अवस्था पहुँचने- | रंगमे छोड़े जायें तो उनपर रंग चढ़ता है। इन वालो गणनाकी जाती है। कणों को कितने लोग केन्द्र समझते हैं। सूदन स्थाणुवर्ग में उत्पादन प्रायः असंयोगिक जनन | जन्तु शान सब जीवित सृष्टिमे प्रायः सबसे छोटा पेशी से ( Asexual spores) होता है। ये जनन है। जो गोल जातियाँ हैं उनमे सबसे छोटी पेशी पेशियां तो भिन्न २ वनस्पतियों में भिन्न २ प्रकारसे का व्यास केवल ०"०००८ मिलिमीटर यानि तैय्यार होती हैं। कितनोंमें कुछ एक विशिष्ठ ०००००३ इञ्च रहता है। क्षयरोगके सूक्ष्म जन्तुलंबे प्रकार के पेशियोंके बहुतसे भाग होकर उनसे जनन आकारके रहते हैं। उनको साधारणतया लम्बाई पेशी होती हैं। इन पेशियों को जननपेशो गुच्छा का आकार ००००१५ से ० ००५ मिलि मोटर व कहते हैं। कितनों में स्थाणु ( Thallus ) के अथ | चौड़ाई ०००१ मिलिमीटर रहती है। इसीसे यह वा दूसरे पेशियोके टुकड़े होते हैं, अथवा उनमें ! कल्पना की जा सकती है कि वे कितने छोटे हैं।