पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९१

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अपुष्प वनस्पति 1 ज्ञानकोश (अ) २६८ अपुष्प वनस्पति सूक्ष्म जन्तु भी अनेक हैं। कुछ सूक्ष्मजन्तु दुर्ग- स्पतियाँ मुख्यतः जलमें रहती हैं वे एक पेशो- न्ध दूर करते हैं। कुछ पेड़ोंकी जड़ोमे भय रहती हैं और भिन्न भिन्न प्रकार की होती है। कुछ गाउँ पाई जाती हैं। इन गाठ में सूक्ष्म उनका आकार जिस प्रकारका होता है उसी प्रकार जन्तु रहते हैं। वे वायुमे के नत्र, जो वायुरूपले के उसके प्राणि भी होते हैं । उनको स्थाणु वर्गों में संचारण करता है व जिसका पेड़ोंके लिये कुछ का एकपेशीमय व श्रादि प्राणिका उनम भी भी उपयोग नहीं होता उसका बे रासायनिक कहते हैं। पदार्थ तैयार करते हैं। इस रासायनिक पदार्थ उनको स्पष्ट पेशीकवच नहीं होता और वे का पेड़ोकी उत्तम खादके समान उपयोग होता है | जिस प्रकार चाहे उस प्रकार अपना आकार बदल और इस प्रकारसे पृथ्वी के योषकद्रव्य कम सकते हैं। प्रत्येक पेशीमें एक या अधिक तन्तु होकर बढ़ते जाते हैं। दूसरे अनेक प्रकारके सूक्ष्म होते हैं उनके योगसे उनमै गति प्राप्त होती है। जन्तुओंका, उनके गुणों के कारण, बहुत अध्ययन | पेशीमें एक केन्द्र और एक जड़ होती है। कुछ हुआ है तथा आजकल इनका व्यापारमै अत्यन्त जातियोंमें हरा या पोला रञ्जितद्रव्य होता है। अधिक उपयोग होरहा है। प्रायः एक लाल बिंदु पेशीमें दिखाई पड़ता है। (२) नीलपाणकेश (Cyanophy ceae)-ये वन- | उसे नेत्रबिन्दु कहते हैं, कुछ जातियोंमें विलकुल स्पतियाँ एकपेशीमय अथवा तन्तुके सदृश होती हैं। ही रजित द्रव्य नहीं होता। कुछ जातियाँ अन्न किन्तु ये बिलकुल नीलेरंगकी होती हैं। इनके घथितिमें भी ग्रहण कर सकती हैं। उत्पादन पेशोकवचसे एक प्रकारका सरसके सदृश लसदार पेशीविभागसे होता है। पदार्थ निकलता है। उसमें मिले हुये इस वनस्पति (१) कार्मिक ( Myxonycetes)-इन वन- के गुच्छे कभी २ पाये जाते हैं। ये वनस्पतियाँ | स्पतियोंकी गणना स्थाणुवर्गके कनिष्ट दर्जेके भाग जलमै, गिली जमीनपर. पत्थरपर, श्रथवा पेड़ोंके में होती है। इनका भी जीवन बहुत अंश तक छिलकों पर पाई जाती हैं। प्रत्येक पेशीमें हरित प्राणियोंके समान है; इसलिये प्राणिशास्त्रको जानने द्रव्यके सिवाय एक नीलद्रव्य नामका रजितद्रव्य | वाले लोग इनका समावेश प्राणिवर्गमें करते हैं। रहता है। इसीसे उनको 'नील पाणकेश' कहते इनकी जातियाँ बहुत हैं और ये सर्व भूमण्डल पर हैं। उत्पादनक्रिया केवल वानस्पतिक ( Vege प्राप्त होती हैं। tative ) रीतिसे पेशीविभाग बनकर होता है। जीव द्रव्यके एक स्वतन्त्र गोलेसे तथा अन्य कुछ जातियों में जननपेशियाँ भी पाई जाती हैं। वहुतसे द्रब्योंके सम्मिश्रणसे वनस्पति का शरीर इनमें की सबसे सादी प्रकारकी वनस्पतियाँ तैयार होता है। इनमें हरिद्रव्य बिलकुल नहीं एकपेशीमय रहती हैं और वे गीली जमीन पर, होता। लकड़ियोंमें, सड़ी दुर्गन्धवाली जमीन पथरीली जमीनपर अथवा भीतपर पाई जाती हैं। में, गिरेहुए पत्तों पर और सड़ो हुई लकड़ियोपर दो दो चार २ पेशियोंके गुच्छे भी बहुधा दिखाई ये वनस्पतियाँ मिलती हैं। इनमें एक प्रकारकी पड़ते हैं। तन्तु जातिकी सादी वनस्पतियाँ प्रायः गति होती हैं, और फैलते २ आगे बढ़ती हैं। जलमें अथवा गिली जमीनपर पाई जाती हैं। शरीरका एक भाग लंबाकर आगे लेजाते हैं इनमें बहुतसी पेशियाँ रहती हैं किन्तु वे सब एक और पीछेके भागको संकुचित कर आगे फैलते ही समान होती हैं । तन्तुको यदि मोड़ दिया गया जाते हैं। कुछ दिनों बाद इस शरीरसे जननपेशी तो उसके दोनों भाग अलग अलग होजाते हैं और उत्पन्न होती हैं। पहिले पहल पूर्णशरीरका एक दो वनस्पति तैयार होती हैं। कुछ जातियाँ लम्बे या अधिक जनन पेशीगुच्छ (Sporangium ) अथवा गोल गोलोंकी बनी रहती हैं। उनको तैयार होते हैं । अान्तरिक जीवद्रव्यके फिर बहुत नॉस्टॉक (Nostoc ) कहते हैं। उनमें के एक से भाग होकर उनसे जननपेशीमें एक एक केन्द्र श्रथवा अधिक पेशीमै रञ्जितद्रव्य नहीं रहता, होता है। जननपेशीके पकने पर जननपेशी गुच्छ बाकीमें नील तथा हरिद्रव्य रहते हैं। ये वनस्प- फूटता है और भीतरी जननपेशियाँ हवाके साथ तियाँ मोतियोंकी पंक्ति की तरह दिखाई पड़ती हैं। उड़ जाती हैं। योग्य स्थान प्राप्त होनेपर उनसे ये पानी, गिली जमीनपर अथवा पानीपर बहने- फिर पहिले सरीखी वनस्पति उगतो है। वाली वनस्पतियोंके पत्तों पर अथवा उसकी नली इनमें की कुछ जातियोंका सम्बन्ध बृक्षोको में रहती हैं। होने वाले रोगोंसे है। . एक जाति वृक्षोंकी जड़ में (३) पुच्छ विशिष्ट ( Flagellata )- ये वन- | प्रवेश करती है, उनमेका सब अन्न खा जाती है व