पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९२

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अपुष्प वनस्पति 1 ज्ञानकोश (अ) २६६ अधुष्प बनस्पति अन्न के समाप्त होनेपर जननपेशी उत्पन्न करके | मध्यभागमें केन्द्र होता है। कई एकके पेशी रखती है। दूसरी एक जातिका भक्ष्य कुछ विशिष्ट की त्वचापर सुईके समान काँटेके समान होती सूक्ष्म जन्तु है । इस प्रकारके सूक्ष्म जन्तु इस जाति हैं। कुछ पेशियोंमें दो अर्ध भागोंका जोड़ के साथ सर्वदा मिलते हैं मालूम नहीं पड़ता। ( उदाहरणार्थ चन्द्रकला (५) पीत पाणकेश ( Peridineae) ये वन- सरीखी पेशियाँ) स्पतियाँ एक पेशीमय होती हैं और पुच्छविशिष्ट उत्पादन क्रिया प्रथम केन्द्रके दो भाग होते ( Flagcllata.) सदृश होती है। ये मीठे पानी में हैं. फिर पेशीके बराबर मध्यमपर दो भाग होते भी मिलते हैं किन्तु खासकरसमुद्र में बहुत होती हैं। हैं। प्रत्येक भागसे एक दूसरा भाग उत्पन्न होता इनमें दो तन्तु होते हैं। जीवद्रव्य जड़स्थान है और दो स्वतन्त्र पेशियाँ तैयार होती हैं। योग तथा केन्द्र प्रत्येक पेशीमें होता हैं । बहुत सो जातियों संभव रोति में दो पेशियाँ पासपासमें निकलती . में लोल और पीले रंजित द्रव्य होते हैं। किसी २ हैं, उनसे एक रू.सदार पदार्थ निकलता है। उनमें में चौड़े पखों के सदृश फैले हुए अवयव होते हैं। वे चिपक जाती हैं और फिर दोनों पेशियाँ उनके इनके कारण ये पानी में तैर सकते हैं। कुछ आधेके जोड़ पर फूटती हैं और उसमें का सर्व जातियोमै रजित द्रव्योंके बदले रंग हीन द्रव्य जीवद्रव्य बाहर गिरता है। वह जीवद्रव्य फिर होते हैं। ये जातियां परान मक्षक होती हैं और एक जगह पर इकट्ठा होता है तथा उसले एक उनमें से कुछ का आयुष्य क्रम बिलकुल प्राणियोके जननपेशी तैयार होती है। यह जनन पेशी कभी सदृश होता है । कुछ समुद्र में उत्पन्न होने वाली कभी एक विशेष आकारकी दिखाई पड़ती है, जातियां स्वयं प्रकाशी होती हैं और इस कारण क्योंकि उस पर कई समय बहुत से कांटे होते हैं । रात के समय समुद्रका पानी चमकता है। उत्पादन जननपेशीके समीप ही प्रायः रिक्त पेशियोंके पेशी विभागसे होता है। किसी २ में जनन पेशी | चार भाग दिखाई पड़ते हैं। अगली दो पेशियों भी उत्पन्न होती हैं। का केन्द्र उनसे उत्पन्न हुई जननपेशीके स्वीकृत (६)संयोगी पाणकेश (Caniugataae )-इस होने तक एकत्र नहीं होते। उससे उत्पन्न हुआ जाति की वनस्पतियाँ हरी होती हैं, और मीठे | केन्द्र फिर से विभक्त होता है और फिर उससे पानी में मिलती हैं। ये एकपेशीमय या तन्तु भी दो छोटे और दो बड़े चार केन्द्र होते हैं। सरीखी होती हैं। इनका उत्पादन वानस्पतिक जननपेशीसे दो पेशियाँ होती है और हरएक में या योगसंभव रीति से होता है वानस्पतिक रीति एक छोटा तथा एक बड़ा केन्द्र होता है कुछ समय से पेशी विभाग होकर एक पेशीसे दो पेशियाँ के उपरान्त छोटे केन्द्रका नाश हो जाता है। होती हैं और ये खतन्त्ररूप से रहने लगती हैं। तन्तुमय जानियाँ बहुत सी हैं। शैवालतन्तु योगसंभवउत्पादन में दो पेशियोंमे के लिंगोंका और उनको अनेक जातियाँ मोठे पानीमें प्राप्त संयोग होकर उनसे एक जनन पेशी उत्पन्न होती | होती हैं। नदीमें या तालावमै हरा सेवार पानी. है और उससे नयी वनस्पति तैयार होती है। पर दिखलाई पड़ता है। वह सेवार हाथको एक पेशीमय जातिमे को डेस्मिड नामकी मुलायम मालूम पड़ता है और अच्छी तरहसे वनस्पतियाँ मीठे पानी में सर्वत्र मिलती हैं। ये देखनेपर उसके तन्तु स्पष्ट दिखलाई पड़ते हैं। अनेक प्रकार की होती हैं तथा बहुत सुन्दर होतो सूक्ष्म दर्शक यंत्रसे प्रत्येक तन्तु जंजीर सरीखा हैं। कुछ गोल होती हैं कुछ ऐसी होती है कि अनेक पेशियोंसे बना हुआ दिखलाई पड़ता है । मानो दो अर्धवृत्त एक स्थानपर चिपकी हुई हो इस तन्तुमै सिरा और मूल अलग अलग स्पष्ट तो कुछ नक्षत्रोंके सदृश त कुछ चन्द्रकला के | दिखलाई नहीं पड़ते है। दोनों सिरे समानही सदृश आकार में दिखाई पड़तो हैं। ये पेशियाँ दिखलाई पड़ते हैं। प्रत्येक पेशीमें एक बड़ा केन्द्र स्वतंत्र रह सकती हैं या कई एक पेशियों के एक में और अनेक रंजितद्रव्यमय शरीर होता है। मिलने से उनको एक पंक्ति सी दिखाई पड़ती है। रंजित द्रव्योंके हरे पट्टे फिरकीके मल सूत्रके अनु. प्रत्येक पेशी दो वराबर २ भागकी होती है सार भीतर लपेटे हुए होते हैं। इन पट्टोंमें बीच और वे भाग मध्य भागमें चिपके हुए से मालूम | बोच में कुछ गोल कण होते हैं इनको पिरनॉईड पड़ते हैं। प्रत्येक श्राधे भागमें एक या अधिक कण कहते हैं। वानस्पतिक उत्पादन पेशी विभाग हरिद्रव्य के पट्टे होते हैं उसीमें कुछ पिरनाईडके से होता है। यदि एक तन्तु तोड़ा जाय तो दोनों कण भी होते हैं। दोनों अर्धभागोके जोड़पर भागसे भिन्न भिन्न वनस्पतियाँ होती हैं और