पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९३

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अपुष्प बनस्पति ज्ञानकोश (अ) २७० अपुष्प वनस्पति स्वतन्त्रतासे रहने लगती हैं। योगसंभवउत्पादन पर कुल ढकन दिखाई पड़ता है। पेशीत्वचामें में दो नन्तु सामने २ बिलकुल पासमें आते हैं। बहुत सा भाग बिलकुल ठण्ढे द्रध्यका होता है। उनके पेशियोके मध्य भागसे नलीके समान रास्ते श्रतः चाहे जितनी नाँच दी जाय तो भी पेशीका बनाकर वे सामनेकी पेशीसे जाकर मिलते हैं। आकार और उसपर की रेखायें नहीं मिटती। इस रीतिसे नलियोंके जकड़े हुए दो तन्तुओंको पेशीत्वचा पर बहुतसी टेढ़ी रेखायें और छिद्र 'शिडीका रूप प्राप्त होता है। एक पेशी के सम्पूर्ण होते हैं। पेशीमें बीचो बीच एक केन्द्र और एकसे पेशीतत्त्व फिर इस नली द्वारा दूसरी पेशीमें चार तक कड़े या बहुत छोटे रंजित द्रव्यके कण जाते हैं और उन सबोंके मिलनेसे एक गोला| जोव द्रव्यमें फैले रहते हैं। ये रंजितकण प्रायः तैयार होता है। इससे एक जनन पेशी होती है चिपटे होते हैं और लाल तथा पीले या नारंगी . और उससे फिर शैवाल तन्तु होता है। कई | रंगके होते हैं । पिरनॉइड के कण भो उसमें बहुधा जातियों में आमने सामने दो तन्तु उत्पन्न न होकर पाये जाते हैं। एक तन्तु ही के पडोस की दो पेशियों में संयोग वानस्पतिक उत्पादन पेशी विभागसे होता है होता है और जनन ऐशी तैयार होती है। शैवाल | पेशियोंका विभाग सर्वदा उसकी लंबी तरफसे तन्तुमें संयोग होते समय एक पेशीमेका पेशीतत्त्व होता है । प्रथम पेशीमें का जीवद्रव्य बढ़ने लगता दूसरीमें जाता है। वहाँ उसका दूसरे पेशीतत्त्वके है और जैसे २ वह बढ़ता है वैसे २ वे दोनों ढक्कन साथ संयोग होकर जननपेशी तैयार होती है | बगलोको हलका बनाकर फूलने लगता है । आखीर और फिर नया शैवाल तन्त होता है । यह संयोग में जाकर भीतरका भांग इतना बड़ा होता है कि अर्थात् लिंगका संयोग, स्त्री पुरुष संयोग है। किन्तु अनायास ही पेशियोंके दोनों ढक्कन बगलमें होजाते इसमें स्त्री तत्त्व कौनसा है और पुरुष तत्व कौन हैं। फिर प्रत्येक 'अर्ध एक दूसरे अर्ध भागको सा है। इसकी पहचान जव नहीं होती तो ऐसे इस तरह उत्पन्न करता है कि वह उसके भीतर तत्व को "समान तत्त्व" कहते हैं। समान तत्वों रहे और इस रीतिसे दो वनस्पतियाँ उत्पन्न होती का संयोग उच्च प्रकारके स्पष्ट रूपसे पहिचाने हैं. अर्थात् प्रत्येक वनस्पति के दोनों अर्ध भाग एक जानेवाले स्त्री पुरुष तत्त्वोंके संयोगका प्रारम्भ है। ही अवस्थाके नहीं होते। हर समय इस प्रकार (७) घरावी-( Diatoms ) ये वनस्पतियां से विभाग कर और हर समय नये भागको भीतर एक पेशीमय होती हैं। इनकी तह की तह समुद्र करने के कारण ऐशी हर समय आकार में किंचित् ओर जलमें सर्वदा प्राप्त होती हैं। श्रार्द्र जौनपर छोटी होती जाती है और उसकी त्वचा ठण्डे. भी ये रहती हैं। द्रव्यसे बनी हुई होने के कारण वह फूलती भी नहीं ये पेशियाँ अलग अलग मिलती है अथवा | तब सब वनस्पतियाँ प्रति दिन छोटो होती जाती हैं उस सबोका एक ही वसतिस्थान होता है वे जल | इस प्रकारसे छोटी होकर एक निश्चित अवधि में स्वतंत्र रूपसे संचार करती हैं या एक 'सरसा' तक पहुँचने पर दो पेशियाँ पास पास निकलती सदृश डंठल उत्पन्न कर उसपर लगी रहती हैं। हैं। उस में के जीवद्रव्यके और केन्द्र के दो विभाग कभी २ ये पेशियाँ एक दूसरेसे चिपक कर उनका होते हैं और दो २ विभागोंके सँयोगसे दो जनन एक बड़ा लम्बा पट्टा होता है। समुद्रमे की इस पेशियाँ तैयार होती हैं। ये जनन पेशियां पूर्वको प्रकारकी एक जाति की वनस्पतियाँ 'सरसा' जनन पेशियोंके दुगुनी या तिगुनी बड़ी होती हैं सदृश एक स्थायूमें चिपकी रहती हैं। और उससे किरद्वयरवी वनस्पति उत्पन्न होती है। पेशियों का आकार भिन्न भिन्न प्रकार का (4) द्वितंतकी (Heterocontacae )--वन- होता है। वह प्रायः लम्बा और चौकोना होता स्पतियाँ एक पेशीमय या तन्तुमय होती हैं। एक है, किन्तु गोल, लम्बा अथवा सीधा या टेढ़ा भी पेशीमय वनस्पतिमें उस पेशीके दो महीन बालके हो सकता है। पेशीत्वचा की बनावट विशेष चम सदृश तन्तु होते हैं; उनमेका एक लम्बा और दूसरा हकारिक होती है। पेशीदचा साबुन के डिब्बेके नाटा होता है और एक केन्द्र तथा २-६ तोतेके समान दो भाग की होती है। एक भाग भीतर समान हरेरङ्गके रञ्जित द्रव्य और एक जड़ स्थान रहता है और दूसग उस पर ढक्कन समान रहता होता है। तन्तुमय वनस्पतियोंका शरीर तन्तुओं है, इससे यह विदित होता है कि पेशी दो प्रकार का होता है। उनमें भी केन्द्र तथा हरे रञ्जित द्रव्य की होती हैं। एक ओर से केवल ढक्कनके इधरः | होते हैं। इस तन्तुमे विशेषता यह है कि उसकी उधरके भाग दिखाई पड़ते हैं और ऊपर से देखने | पेशी त्वचा दोहरी होती है और उन दोनों भागोम