पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९६

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अपुष्प वनस्पति अपुष्प वनस्पति. ज्ञानकोश (अ)२७३ अरण्य समुद्रके तलेमें, जमीनके ऊपर वाले अरण्य है। इस जातिकी बहुतसी वनस्पतियाँ अत्यन्त के समान ही होते हैं उपयोग को होती है। लामिमेरिया और फ्यूगस फ्यूकस ( Fucus ) नाम की जाति सब समुद्री इत्यादि किसी किसी की राखसे अद' ( Iodine ) में पाई जाती है। बम्बई और कोकणमें समुद्र के | नामका एक पदार्थ निकलता है। दवाइयों तथा किनारेपर मिट्टीके साथ आकर गिरी हुई धन रसायन शास्त्रमें इसकी बहुत आवश्यकता पड़ती स्पतियोंमें यह बहुधा पाई जाती है। सुंघनी व है। दूसरी भी कुछ जातियाँ औषधधर्मसंयुक्त लाल रंगको साधारण मोटी; और करीब करीब होती है। कुछका उपायोग चीनी और जापानी एक इंच चौड़ी और चिकनो यह होती है । इस- लोग खाने में करते हैं। पर बहुधा फोड़ेके -सदृश कुछ ऊंचा ऊंचा दिख (११) तान्न वनस्पति-( Rhodcphyceae) हाई पड़ने लगता है। इन फोड़ों के नीचे चंबूके | ये वनस्पतियाँ भी समुद्र में मिलती हैं। इनके सदृश पोली जमीन होती है और उसमें उत्पादक आकार भी कई प्रकारके होते हैं। एक वनस्पति इन्द्रियां रहती है। कुछ जातियोंमें एक ही पोली | बिलकुल सादी अर्थात् तन्तुओं को तरह पेशियों जमीनमें पुरुष और स्त्री जातियोकी इन्द्रियाँ होती की पंक्ति होती है। यह वहुधा पट्टोकी तरह है । कुछ जातियों में तो एक वनस्पति पर केवल चौड़ी किन्तु चिपटी: और इसमें कई एक डालियाँ पुरुष व एकपर केवल स्त्री जातिकी इन्द्रियाँ निकली हुई दिखलाई पड़ती है। कुछ विलकुल दिखलाई पड़ती हैं। इन पोली जमीनमें इन्द्रियो- पत्तोंके सदृश होती हैं। इनमें डण्ठल बीचमें की त्पादक पेशीके अगल बगल कुछ लम्बे बालोंके शिराये इत्यादि सभी कुछ रहती हैं। इन सब सदृश पेशीके तन्तु रहते हैं। इसमें से कुछ उस | जातियोमे जड़के सदृश कुछ तन्तु होते हैं । वे पोली जमीनके मुखसे गुच्छोंके रूपमें बाहर जमीनमें पैठकर ऊपरी भागोको मजबूतीसे निकलती है। पकड़कर रखते हैं। कुछ वनस्पतियों पर चूने रेत करंडक ( Antheridium) लम्बे रहते | की तह बैठ जाती है और वे मूंगेकी तरह हैं और गुच्छेके सदृश एक छोटे डण्ठलपर दिखलाई पड़ती हैं। इसमें रंजित द्रव्य खैरके निकलते हैं। उसके फूटनेपर उसमेंसे बहुत सी | रंगका होता है इसलिये इनका रंग खैर या रेत पेशियाँ बाहर निकलती है। ये पेशियां उस सुंधनी होता है। पेशियोमे एक या अधिक वक्त मूल पेशोके अन्दरके आवरण में लिपटी केन्द्र हो सकते हैं। हुई रहती हैं। तब यह भी आवरण फूटता है; अयोगसम्भव उत्पादन इतर जातियों की और पेशियाँ अलग अलग होकर बाहर निकलती तरह जननपेशियोंसे होता है किन्तु योगसम्भव हैं। प्रत्येक पेशी आकारमें लम्बी होती है और | उत्पादन तो दूसरों की अपेक्षा बहुत भिन्न होता उसमें बालके सदृश दो तन्तु रहते हैं । ये तन्तु है। रेत करंडकमें केवल एक ही रेतपेशी उत्पन्न बराबरके लम्बे होते हैं। प्रत्येक पेशीमें एक लाल होती है। वह गोल होती है और उसमें तन्तु विंदू रहता है। रज करंडक ( Archigonium) नहीं होते । इस कारण उसमें चञ्चलता नहीं गोल रहता है। प्रत्येक करंडकमें श्राठ रजपे- होती। जल प्रवाहके साथही साथ उसको रज शियां रहती हैं। उनके चारों तरफ एक पतला पेशो को ओर जाना पड़ता है। रज करंडक वेष्टन रहता है। पेशोके फूटनेपर वह पतला लम्बी होती है और उसके नीचेका भाग एकाध वेष्टन भो फटता और रजपेशियां बाहर निक- चंबूके सदृश फूला हुश्रा रहता है। इसमें रजपेशी लती हैं। उसके चारो तरफ रेतपेशियों का एक | होतो है ऊपरी भाग रेतको पकड़नेकेलिये होता बड़ा समूह जमा होता है। और उनमें से उसका है। रेतके सभीपमें पातेही ऊपरी भागका मुह एकसे संयोग होता है। फिर उसपर त्वचा आती फटता है और रेत भीवर आता है। फिर उसमें है और वह नीचे तलेमें चली जाती है और का द्रव्य रजपेशियोंसे संयोग पाता है। इनसे फिर अवसर पाकर उससे नई बनस्पति तैयार एकदम नयी वनस्पति उत्पन्न नहीं होती, बल्कि होती है । कुछ फ्यूगस को जातियों में रजपेशियाँ पहले कुछ तन्तु वहीं उत्पन्न होते हैं। इन तन्तुओं आठ न होकर केवल घार, दो या एकही रहती | पर बहुत को जननपेशियाँ होती हैं। इन जनन- है। ऐसो अवस्था में प्रथम तो उसमें पाठही | पेशियोंसे दूसरे तन्तु होते हैं और इन दूसरेतन्तुओं पेशियाँ होती है किन्तु उसमें की चार छः या से नयी वनस्पति उत्पन्न होतो है । इस प्रकार एक सात नष्ट हो जाती हैं और शेष अच्छी रहती वनस्पतिसे दूसरी तक स्पष्टं दो पीढ़ियाँ होती हैं ।