पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३०१

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अपुष्प वनस्पति । इस प्रकार दिखाई पड़ता ज्ञानकोश (अ)२७८ अपुष्प वनस्पति उनमें प्रायः डंठल नहीं होता और यदि हो भी तो मैं बहुतसे छोटे छोटे गोल पदार्थ रहते हैं। बहुत ही सूक्ष्म रहता है। कभी २ तो ये अगल | इनमें एक डंठल रहता है। इनमें कुछ कोश यगल कोशोंमें कुछ कुछ घुसे रहते हैं। इनके बिलकुल रंग हीन रहते हैं। उनसे जड़का काम सुराही सदृश भागमे एक कोश रहता है। वहीं देनेवाले तन्तु उत्पन्न होते हैं। पूर्ण रीतिसे बढ़ने रजकोश बनता है। ऊपरकी गर्दन लस्वी होती पर ये उस प्यालेके बाहर निकल आते हैं और है। रज जब पूर्णावस्थामै पहुँचता है तब ऊपर | उनसे नयी बनस्पति तैयार होती के कोशका मुख खुल जाता है और उसमें से एक | केवल वानस्पतिक रीतिसे इन प्रकारके वनस्प- प्रकारका रस बहने लगता है। इस रसकी तरफ तियोंकी बृद्धि बहुत अधिक होती है। रेतका श्राकर्षण होता है और फिर दोनों का संयोग संयोगिक इन्द्रियाँ इनकी विशिष्ट राखाओंपर होता है। इससे अलिंग पीढ़ी उत्पन्न होती है। उत्पन्न होती हैं। ये शाखायें तनेपर ऊँची और सेवार में यह पीढ़ी एक फल के सदृश रहती है खड़ी निकलती है। वनस्पतियों में भिन्न २ वन- और वह सर्वदा वनस्पतीपर ही चिपकी रहती स्पतियोंपर पुरुष और स्त्रियोको इन्द्रियोकी शाखा है और कुछ अंशोंमें परोपजीवी होती है। इन : ऊँचे डंठल पर निकलती है। इसका आकार चिपटे चौकी दो जातियों में से यकृतसमें जननकोशले और फैले हुए भूछत्रकी तरह होता है । उसका घेरा तन्तुमयाल विस्तृत न होकर सहसा लिंग पीढ़ी भूछत्र की तरह सीधा नहीं होता, ( साकार) हो जाता है। इसके जननकोशमें पंखके समान | टेढ़ामेढ़ा होता है। इसमें गढे रहते हैं और उनमें अथवा पुच्छ के समान कुछ अवयव रहते हैं। रेतकी डिबिया रहती हैं। प्रत्येक कोशमें बहुतसे दूसरी जाति सेवारमें तन्तुमय भाग स्पष्ट रूपसे | रेतकोश होते है। स्त्रीइन्द्रियोंकी शाखा भी एक । यह बनस्पति, तना और पत्तों ऊँचे डंठल पर निकलती है। उसका आकार से पूर्ण रहती है; और उसके जननकोशमें पंख भी थोड़ा बहुत पुरुषेन्द्रियोंके समान होता है। 1 नहीं रहते। किन्तु इसके मध्यसे व्यासको तरफ लंबी २ रेखा- यकृतक ( Hepaticeae ) के चार विभाग औकी तरह नौ अवयव होते हैं। हर दो रेखाओं किये गये हैं। प्रथम ( Riceiaceae) जातिमें में नीचेकी तरफ एक एक लंबी थैली रहती वनस्पतियाँ पत्तोंके समान रहती हैं और जमीन है और उसी में रजकी डिबियाँ रहती हैं। संयो- पर फैलती हैं। इनमें शाखाये द्विपाद पद्धतिसे | गसे फल सदृश एक भा : उत्पन्न होता है। निकलती हैं। इनके नीचेके अंगमें तन्तु और की डिबियामें ही यह भाग तैयार होता है और वल्कपर्ण ( Scales ) रहते हैं। इनके संयोगसे भीतरी कोशौले जननकोश होते हैं। फिर उस ही इनके जड़का काम निकलता है। रेत और भागका डंठल लम्बा होता है और वह भाग रज की रजकी डिबियाँ ऊपरके अंगमें रहती हैं। वे पास डिबियाको फोड़कर बाहर निकलता है। उनका पासके कोशीमें किंचित् घुसी रहती हैं। संयोग भी बाहरी आवरण कट जाता है और जननकोश होनेपर उत्पन्न होने वाले कोशले फलके सदृश : बाहर निकल आते हैं। जननकोशीको पंखोके एक अवयव तैयार होता है। इनमें जननकोश सदृश पुच्छ (दुम) होती हैं। ये भीतरी कोश तयार होते हैं, और उसी भागको श्रगिल पीढ़ी की ही वृद्धि होनेसे होते हैं। जननकोशोंसे नयी कहते हैं। वनस्पतियाँ उत्पन्न होती हैं। दूसरी प्रकारकी ( Marchantiaceae ) वन तीसरे ( Anthocerotaceae ) भागमें तना स्पतिमें बहुत विकास हुआ दिखलाई पड़ता है। जमीनमें विलकुल मजबूती से जमा रहता है। उस ये आकारमें करीब पौन इंच चौड़ी रहती पर रेत और रजकी डिबियाँ उगती है। उसमें इनको श्राकार पत्तोंके सदृश फैलकर इनमें द्विपाद डंठल नहीं होता और ये आसपासकी जमीनमें शाखाएँ निकलती हैं। नीचेके भागमें तन्तु और करीब २ पूर्णरीतिसे गड़े हुए रहते हैं। संयोगके वल्कपर्ण रहते हैं। ऊपरी भागमें कुछ छिद्र रहते बाद रजकोश पूर्णरीतिसे भीतर जाता है और हैं । इनमेसे हवा भीतर जाती है । इसके स्थाणु उसपर बगलके कोशकी तह बैठती है। भीतर पर पत्तोंके समान शिरायें रहती हैं। इन शिराओं पूर्णवृद्धि होनेपर भीतरसे सेमके सदृश एक अव- पर बीच बीच में एकाध फैले हुए प्यालेके समान यव ऊपर आता है। इसीसे जननको ग तैयार अवयव निकलते हैं। इस प्यालेका किनारा श्रारी होता है। उसकी फिर दो फांक होकर दो खड़े के दांते के समान कटा हुआ रहता है। इस प्याले ! भाग होते हैं और जननकोश बाहर निकलते हैं। रज-