पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३०३

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अपुष्प वनस्पति श्रेपुष्प वनस्पति ज्ञानकोश (अ) २८० किसीमें यह तन्तु रूपसे रहता । अधिकतर हैं। ये प्रायः पत्तोपर अथवा कहीं कहीं तनोपर यह जमीनके ऊपर रहता है परन्तु किसी किसीमें पत्तोंके अक्षकोणमें निकलती हैं। जननकोशके वह श्राधा या पूरा मिट्टीके भीतर घुसा रहता है; गुच्छोमे (Sporangiuin ) जननकोश निकलते और किसी किसीमें तो यह जनन-कोशमें ही हैं। इनके आसपास एक मोटी त्वचा होती है। उगता है। पुरस्थाणुपर संयोगिक इंद्रियाँ निक- इसके भीतरी कोशसे जननकोश होते हैं। प्रत्येक लती हैं। रेतकी डिबियामें ऐंठनदार और बाल परिपक्व जननकोशमें कई एक कीटका एक कवच सदृश तन्तुवाले बहुतसे रेत-कोश होते हैं । रजको होता है । जननकोशके आसपास जीवनतवका एक डिबिया में केवल एक रज कोश रहता है। रज-लसदार भाग होता है। इनमेंले उनको पोषक कोशसे सेवारकी भांति इसमेंसे भी कुछ रस बहता | द्रव्य मिलते हैं। प्रायः सब जनन कोशीसे पुर- है इस कारण उस तरफ रेतका आकर्षणहोता है। स्थाणु ( Prothallus) होता है और उसपर स्त्री इस संयोगसे सेवारकी भांति अलिंग पीढ़ी उत्पन्न और पुरुष दोनो ही इंद्रियां निकलती है कई एकसे होती है । ये ही इस भेदकी मुख्य वनस्पतियां हैं। ऐसा पुरस्थाणु उत्पन्न होता है कि, उसपर केवल इन वर्गों में लिंग पीढ़ीका अधिक विकाश एक प्रकारको इंद्रियां निकलती हैं। कितने तो हुआ देख पड़ता है। इनकी भीतरी बनावट में | इतने आगे बढ़ जाते हैं कि जननकोश ही में एक अधिक विस्तार हुआ है और उनमें पत्ते, तना स्त्री जननकोश और दूसरा पुरुष जननकोश दा और जड़ स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। बहुतोंमें, अलग जातियां होती हैं । उनसे क्रमशः रज और रजका संयोग होनेपर कोष अलग होने लगता | रेत उत्पन्न करनेवाले पुरस्थाणु उ. पल्म होते हैं। है। इहके पहले दो विभाग होते हैं और फिर इस वर्गके वनस्पतियोका वर्गीकरण आगे इसके आठ विभाग होते हैं। इनके विभागोंसे दिया जाता है। कोशका एक छोटासा समूह तैयार होता है । इस (१) नेच ( Filicinae) इनमें तना शाखा- समूहसे तनेका अग्र भाग, पत्ता, जड़ और इसी | हीन या शाखायुक्त होता है। पत्तियां अच्छी वर्गका एक विशेष अवयव पैर ( Foct ) उत्पन्न तरह पूर्णावस्थाको पहुँची रहती हैं । जननकोश होता है। यह पैर अर्थात् कोशौका एक समूह | का गुच्छे पत्तियोके पृष्ठ भागमें अथवा अक्षकोणमें होता है। इसके योगसे यह छोटासा गर्भ पुर- निकलते हैं । (२) अश्व पुच्छ Eguisetineac) स्थाणुपर चिपककर रहता है और पुरस्थाणुसे का तना शाखा रहित या शाखा सहित होता है। कोषके पदार्थको सोख लेता है । जब गर्भसे स्वतः पत्तियां वर्तुलाकार होती हैं और एक दूसरेसे जड़े फूटने लगती हैं और पोषक पदार्थ सूखने इतनी सटीरहती हैं कि उसका एक सघन श्राव- लगता है, तब पैर व्यर्थ हो जाता है और प्रायः | रण हर एक काण्डके अग्र भागके चारो तरफ हो पुरस्थाणु भी नष्ट हो जाता है। जाता है। विशिष्ट पत्तियोंके नीचे के हिस्सों में गर्भसे उत्पन्न हुई जड़ शाखाहीन या शाखा- जननकोश के गुच्छे निकलते हैं और उन सबकी युक्त होती हैं। वह खड़ी या जमीनपर फैली | एक कलगी सिरेपर होती है । (३) मुद्गलक रहती है। उसमें शाखाये लगती हैं। उनका पत्तो ( Lyeopodineae) इनका तना लम्बा और से कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता। पत्ते सब तरफ | द्विपाद शाखाओंका होता है। पत्तियोके अक्षकोण या केवल दो तरफ ही रहते हैं। वे वर्तुलाकार में या उनके डंठलसे कठिन कवचौके जननकोश होते हैं इनमें सेक्षर सदृश तन्तु नहीं होता किन्तु के गुच्छे निकलते हैं। सपुष्पकी तरह असली जड़ेही रहती हैं। पत्तियाँ नेच-(१) स्थलनेचको केवल नेच भी भी सपुष्पके सदृश रहती हैं। पत्तियां तनों और | कहते हैं वाहिनीमय अपुष्प (Pteri dophyta.) जड़मेसे शिराओंका समूह स्पष्ट रूपसे जाते हुए वर्ग में सबसे अधिक वनस्पतियां इस जातिकी दिखाई पड़ता है। इसी कारण इस वर्गको वाहि- | हैं। इसके दो भाग करते हैं । एक तो वह जिनकी नीमय अपुष्प वर्ग कहा जाता है । जड़ में जो जननकोशकी त्वचा कोशोंके अनेक तहोंकी होती उपवृद्धि होती है वह एक विशिष्ट प्रकारके संव- हैं, प्रथम श्रेणी में इस समय बहुत थोड़ो वनस्प- र्धक छोरसे ( Cambium ) होती है । किन्तु इस तियां दिखाई पड़ती हैं; यद्यपि पूर्वकालमें बहुत समय जो बनस्पतियां अस्तित्वमे हैं उनमेसे बहुत होती थीं। इनमें छोटे तथा बड़े आकार कीबनस्प- थोड़ी बनस्पतियोमें यह दिखाई पड़ती है। तियां होती हैं । इनमेंसे कुछका पुरस्थाणु जमीन वानस्पतिक रीतिसे जनन-कोश तैयार होते में पूर्ण रूपसे गड़ा रहता है ।