पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३०५

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अपुष्प वनस्पति ज्ञानकोश (अ) २८२ अपुष्प वनस्पति की त्वचाके कोशसे तैयार होता है । यह त्वचापर जननपेशीके गुच्छोंके संघके दो भाग होते उभरे हुए फोड़के समान होती है। पूर्ण वृद्धिके हैं। प्रत्येकमे चौदहसे अट्ठारह तक प्राड़ी पंक्तियां यदि उनमें एक कोश होता है और इसमें पुरुष रहती हैं। प्रत्येक पंक्ति में कई जननपेशीके गुच्छे तत्वके जननकोश होते हैं। उनके बाहर कोशौकी होते हैं। स्त्री और पुरुष दो जाति की जननपेशीके दो कड़ियां रहती हैं। बीचके कोशका विभाग गुच्छे एक ही पंक्तिमे मिलते हैं। तृणपर्णमें संघके होता है और उससे रेतके जननकोश बनते हैं | चार भाग होते हैं और उनमें जननपेशीके गुच्छे और फिर इससे रेत होता है । रेतमें ऐंठन होनी | भी होते हैं। पुरुष जननपेशी छोटी होती है। है और उसमें बहुतसे बाल सदृश तन्तु होते हैं। उसमें बाढ़ शुरू होकर पुरुष पुरस्थाणु उत्पन्न किंचित् पुराने पुरस्थाणुपर रजकी डिबियां हो | होता है । स्त्री जननपेशो में भी इसी प्रकार पुर- जाती हैं। ये भी एक कोशके समान होती हैं। स्थाणु उत्पन्न होकर एक रज करंण्डक उत्पन्न इनका चंबूसदृश भाग पुरस्थाणुमें धंसा हुआ होता है । दो तत्त्वोंका संयोग होकर वहीं अलिंग रहता है और गर्दन बाहर रहती है। पूर्णावस्था पीढ़ी उत्पन्न होती है। पहुँचनेपर गर्दनके कोशका द्रव्य फूलता है, ऊपर जलयर्ती में अमूल ( Salvinia) और समूल का मुंह खुल जाता है और भीतरका द्रव्य बाहर (Azolla) दो बनस्पतियां हैं। ये पानीपर तैरती गिरता है। तब रेतका आकर्षण होकर संयोग रहती हैं अमूल में प्रत्येक काण्डायपर तीन तीन होता है। पते रहते हैं। उनमेंसे दो हवामें और एक पानी कुछ वनस्पतियों में पुरस्थाणुसे संयोगके अति- में रहता है। ऊपरके पत्तोंका आकार और रूप रिक्त लिंग पीढ़ीको शाखा भी उत्पन्न होती है। साधारण पत्तोंका सा होता है। परन्तु पानीका और ऐसी शाखाओंसे पुरस्थाणु पैदा होता है। पत्ता तन्तु समान होता है और उसमें महीन २ इस श्रेणीके वृक्षोके तनेका तथा पत्तोंके डंठल | बाल रहते हैं । अमूलमें जड़े नहीं होती। पानी में परके तन्तुओका औषधियों में उपयोग किया के पत्ते उसके जड़का काम देते हैं। पत्तोंके जाता है। डंठलोके पास जननपेशीका गुच्छा होता है 1 (२) पाण ( Hydropterideae ) ये बनस्पति । प्रत्येक संघमें एक ही जातिके गुच्छे होते पानी अथवा दलदलमें पैदा होती हैं। इनके संध गोल रहते हैं। समूलमें पत्ते बहुत होते हैं केवल चार पांच हो भेद हैं। सबकी जनन पेशियां परन्तु छोटे छोटे होते हैं । इन पत्तोंके दो भाग हैं- दो प्रकारको रहती हैं। औगेके समान इनको एक हवाने और दूसरा पानीमें डूबा रहता है। जननपेशियां पत्तेके पीछे न पाकर, इसके जनन- | भीतर डूबा हुआ भाग पानी शोषण करनेमें सहा. पेशीका गुच्छा एक फलके समान थैलीमें होता यता पहुँचाता है। ऊपरके भागमें कुछ नालियाँ होतो है। इनमें दो भेद हैं-एक स्थलवर्ती ( Marsilio हैं जिनमें नॉस्टॉक नामक नोलपारस केश Cyano- ceae) SATT TETT Fanaf ( Salvniaceae ) phyceae के तन्तु रहते हैं । समूल में जड़ें रहती हैं स्थलवर्ती पर्णगुच्छ ( Marsilia) और तृण इसके जननपेशी के गुच्छों का समूह भी पत्तोके पर्णक ( Pilularia ) दो बनस्पतियाँ हैं। दोनोंका डंठलोंके पास होता है। इसको दोनों जातियोंकी तना जमीन के सरपट बढ़ता जाता है, और उस जननपेशीके गुच्छे भिन्न भिन्न होते हैं । अमूल पर खड़े पत्ते आते हैं। प्रत्येक पत्तेमें लम्बा पुरुष जननपेशीके गुच्छोंमें पुरुष जननपेशी डंठल होता है। पर्णगुच्छुका पत्ता संयुक्त होता उत्पन्न होती हैं और उसमें पुरस्थाणु श्राता है। है, उसमें चार पर्ण होते हैं। ये सब एक जगहसे उसके रेत करंडकमेसे एक लम्बी नली बाहर निकलने के कारण इन पत्तोंका आकार चार पंख- आती है और वह जननपेशीके गुच्छेके त्वचाको डियोवाले फूलके समान होता है। जननपेशीके फोड़कर उसमेंसे बाहर आती है. इसमें चार रत गुच्छेका फलके समान आकारवाला संध पत्तेके पेशी निर्माण होती है, वे इसी नली द्वारा बाहर डंठलपर तनेके पास निकलता है। ऐसेही बहुतसे निकलती हैं । समूलमें जननपेशीके गुच्छे फूटने संघ निकलते हैं। तृणपर्णके पत्ते लम्बे सीकके पर गोदके समान पदार्थ निकलने लगते हैं । उसी समान होते हैं। उनके पत्तोंमें चौड़ा पत्र Lamina में जननपेशोंका गोला होता है। उनके रेतकरंडक नहीं होता। उनमें भी जन्नपेशीके गुच्छे के संघ मेसे पाठ रेतपेशी बाहर आती हैं। सीजननपेशी 'डंठल के पास ही होते हैं। दोनोंके पत्ते सिरेसे बहुत बड़ी होती है। यह जननपेशी, गुच्छोमेसे “डेंटल तक लिपटे हुए रहते हैं। पर्णगुच्छमें बाहर न निकलकर वहीं उत्पन्न होती है और उस