पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३०८

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अपुष्प वनस्पति अपुष्प वनपस्त्रि ज्ञानकोश (अ) २८५ और दूसरे कारणोंसे पृथ्वीमें समा गये। उनके कालसे ही कुजनेवाले सेन्द्रिय पदार्थ पर रहती ऊपर जमीन की ऊपरी तोका दवाव पड़कर हैं। कर्बजनक (Carboni ferous ) कालसे तो पत्थरों और कोयलों पर छाप पड़ गयो। कई दूसरे बनस्पतियोंके अविशेषमें रहते हुवे मिलती एक स्वयं पत्थरोके समान हो गये। इन सबको हैं। अविभाजितालिब तथा विभाजितालिंब वनस्प प्रस्तरी भूत नाम दिया जाता है। ऐसी प्रस्तरी | तियों में की कुछ भी उस समय थीं, किन्तु शिला भूत वनस्पतियाँ बहुत सी पायी गई हैं। इनसे वल्कका अवशेष भी इसी समय मिलता है। पूर्वकालकी वनस्पतियोंका भेद, तथा इस वक्त शैवालवर्ग-इसमेंके अवशेष बहुतकम मिलते उनका अस्तित्व है अथवा नहों, और अगर हैं। जो कुछ मिलते हैं, वे सब कर्बजनिक कालसे है तो वे वैसा ही हैं अथवा उसमें कुछ भिन्नता | आगे के हैं। आ गई हैं, इत्यादि विषयों का ज्ञान होता है। ये वाहिनीमय अपुष्पवर्ग-इनमेका अवशेष बिलकुल प्रस्तरी भूत वनस्पतियाँ पृथ्वीके श्रावरणके कौन आरम्भ कालसे मिलता है। किन्तु कर्वजनकाल से तहमें पाई जाती है इससे भूस्तर-शास्त्रज्ञ में सब पृथ्वीपर मानो इन्हीका साम्राज्य था इस बातका अनुमान निकाल सकते हैं कि वे उस वक्त जितनी वनस्पतियाँ अस्तित्वमें थीं उनमें किस कालकी हैं। इससे यह पता लगता है। इनकी संख्या सबसे अधिक थी तथा इनका पूर्ण कि प्रथम कौन सी वनस्पतियाँ थी, फिर कौनसी विकास भी उसी समय हुआ था। जैसे २ अनावृत हुई और क्या रद्दोबदल हुवा या कैसे हुवा, | तथा प्रच्छन्न वीजवर्ग (Gymnosperms and इत्यादि इत्यादि। Angiosperms) अस्तित्वमें आने लगे वैसे २ अपुष्य वर्गकी ऐसी हीप्रस्तरीभूत वनस्पतियाँ | इनका महत्व कम २ होने लगा। बहुतायत से उपलब्ध हैं। परन्तु स्थाणुवर्ग और (1) अश्व पुच्छ-इस समय इनकी एक ही वाहिनीमय अपुष्पवर्गके बीचका अभी तक निश्चय जाति है परन्तु उस समय इनकी अनेक जातियाँ नहीं हुआ है। वाहिनीमय अपुष्पवर्गमें तो थी। प्राणि पूर्व कालसे ही ये मिलती हैं । इनकी बहुतसी नवीन वनस्पतियोंका समावेश हुआ है, रचना साधारणतया आजकलके सदृश ही थी। और इस कारणसे आधुनिक वनस्पतियों का वर्गी- | परन्तु उनका आकार बहुत बड़ा था। कितनी करण बराबर किया जा सकता । नेचे तथा तो १०० फीट तक लंबी होती थी। कांडाप्रपर अनावृत बीजवर्ग (Gymnospermia ) अपुष्पवर्ग लम्बी २ गोल शाखायें उत्पन्न होती हैं तथा तनेके के भाग हैं। इनके बीचको कुछ वनस्पतियों के ऊपर एक त्वचा रहती है और उसीसे उपवाढ़ मिलजाने से अपुष्पसे सपुष्प पर्यन्तका सिलसिला होती थी। पत्ते लम्बे होते थे और मूलमें एक बैठाया जा सकता है। दूसरेसे चिपककर उनका तने पर आच्छादन स्थाणुवर्ग-इस वर्गकी वनस्पतियाँ अत्यन्त होता था। बिलकुल प्राचीन समयमें उनके कोमल होने के कारण वे अश्मीभूत स्थितिमें जाने द्विपाद विभाग होते थे। तुइँकी रचना कुछ में असमर्थ हैं। इस कारण उनमेकी कुछ जाति कुछ अाजकल के सदृश ही होती थी किन्तु अधिको योका अवशेष नहीं मिलता परन्तु इससे अनु- में बहुत कठिन होती थी और हर दो पत्तोंमें एक मान नहीं किया जा सकता है कि उन वनस्पतियों वल्कपर्ण (Scale) होता था। कमसे कम कुछमें का उस समय अस्तित्व ही नहीं था। विलकुल तो जननपेशियाँ दो ही प्रकारकी होती थी। नीचेकी सिलुरियन तहमें कुछ पाणकेश पाये जाते (२) मुद्गलक-इनमेंके बहुतसे भेद प्राणि- हैं। परन्तु ये कौनसे प्रकारके हैं, इनका औरों से पूर्वकालसे थे। इनमें शाखायें न फूटकर उनके क्या सम्बन्ध है, इत्यादि पहिचाना नहीं जाता। तने खम्भोंके समान ऊँचे तथा मोटे होते थे। सोयफोनेल हरी वनस्पतियों का एक भेद है। ये वनस्पतियाँ कर्बजनक समयमें होती थीं। उसमेंकी कुछ वनस्पतियाँ पहिलेसेही मिलती हैं। इनके पचे लम्बे होते थे और उनके झड़ जाने पर उसके बाद के समय में लाल पाणकेशमेकी मिलती तनेपर उनके निशान पड़े रहते थे। दूसरे भेद हैं। एकपेशीमय वनस्पतिमें द्वएवोके ऊपर बालू द्विपाद शाखयेकी फूटती थी। उनकी ऊँचाई १०० के कणकी त्वचा रहती है इस कारणसे वे उत्तम | फीट तक होती थी। इनमें दो प्रकारकी जनन- होते हैं। उसमेंकी कुछ तो इस वक्त भी उपलब्ध पेशियाँ होती थीं। इसके सिवाय मुद्गलक हैं। इसके अनन्तर कांडशरीरिका बहुतायतले और अश्वपुच्छके बीजकी एक जातिका पता लगता मिलती है। सूक्ष्म जंतु वनस्पतियाँ बहुधा पूर्व- | है। कुछमें बीज सदृश एक अवयव मिलता है।