पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१

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सारथी हुए - 1 अकृतवण ज्ञानकोश (अ)२१ अकोला श्रादर्श योद्धा, अत्यन्त क्रोधी और उदासीन | पुराने जमानेमें यह गांव मिट्टीकी चहार-दीवारी प्रकृतिका मनुष्य था कहीं २ ऐसा वर्णन भी है | से घिरा था और उसमें जगह २ छः दरवाजे बने कि उसका वीगेचित हृदय कोमलतासे पूर्ण था। थे, किन्तु इस समय उसका नामोनिशान भी नहीं अकृत व्रण-ये परशुरामके अत्यन्त प्रेम-भाजन है। जिस स्थानपर आजकल यह तहसील है. तथा एक वेद वेत्ता ऋषि थे। जिस समय अम्बा वह पहले किलेके नामसे पुकारा जाता था। यहाँ को प्रसन्न करने के लिये परशुराम और भीष्ममें मुसलमानों की आबादी काफी है। यहाँ के बड़े २ संग्राम हो रहा था, उस समय ये परशुरामके कारखानोंकी इमारतें और उनके ऊपर लक- '1 ( वनपर्व १० ११५ उद्योग पर्व ड़ियों में खुदे हुए नकाशीके काम तथा दिवाकर श्र० १७६) भाईका दीवानखाना देखने योग्य है। सरदारसिंह अकोट ताल्लुका-जिला अकोला। उ० प्र० और फरनवीस की हवेलियाँ भी प्रसिद्ध हैं। २०५१ से २११६' पू० २०७६४६' से ७७१२ । फरनवीस की हवेलीमें मज़बूत तहखाने हैं। कहते इस ताल्लुकमें कुल २६४ खालसा और दो जागीरी है कि सरदेशमुखके घर से लेकर बाग तक एक गाँव हैं । उत्तर दक्षिणकी लम्बाई लगभग मील सुरंग है। गाँवके पास अकोलाके रास्ते पर एक और चौड़ाई २० मील है। उत्तरमै श्रमरावती श्रोर “एकगाड़ा नारायण” की समाधि है, जिसे जिलेको मेलघाट ताल्लुका पश्चिममें वुलडाना जिले- हिन्दू मुसलमान दोनों पूज्य मानते हैं दूसरी तरफ का जलगांव ताल्लुका है । ताल्लुके का प्रदेश प्रायः मीरजाफ़र करोड़ा की कब्र है। दोनों इमारतों चौरस है और ज़मीन गहरी तथा काली और पर फारसी शिलालिपियाँ हैं । मिट्टी उपजाऊ है परन्तु उत्तरका प्रदेश पहाड़ी है मीरजाफर के वंशजोंके अधिकारमें जो जमीन जिसकी चौड़ाई लगभग ८ मोल है। ताल्लुकैमें है वह उन्हें इनाममें मिली थी। इसलिये वहाँ पानीकी कमी है। कूर्णका पानी अधिकतर खारा प्रतिवर्ष उत्सव मनाया जाता है। पास ही में होता है । कई जगहों पर दो२ मील दूर तकसे झरनों गैवीपीर हैं। लोगों का विश्वास है, कि उक्त का पानी लाना पड़ता है। इस ताल्लुकेमें सड़कोका गैवी पीरके यहाँ जानेसे जुड़ी बुखार अच्छा हो अच्छा प्रबन्ध है । अकोट, मुडगांव और मालेगाँव | जाता है। यहाँ हिन्दुओंके बहुतसे देवालय है, मैरौनकदार बाजार हैं। इस ताल्लुकेमें मन्दिर बहुत किन्तु उनमें कोई विशेष वर्णन योग्य नहीं है। है और कई स्थानों में वार्षिक मेले लगते हैं। नरसिंह बावाका मन्दिर महत्वपूर्ण और सबसे (अकोला डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ) उत्तम है। नंदीबाग, बालाजी और केशवराज अकोट--(गाँव) यह ताल्लुके का मुख्य | के मन्दिर भी साधारणतः अच्छे हैं। स्थान है और यह अकोलाके उत्तर में २८ मील पर उक्त बाबा नरसिंह एक मुसलमान फकीर के घसा है। अकोला और श्रकोटके बीच एक पक्की शिष्य थे। १८५७ ई. में इनकी मृत्यु हुई। सड़क है। जनसंख्या करीव १६००० है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक मासमें इनके मन्दिर में उत्सव सभी प्रकार की इमारते हैं, जैसे दवाखाना. अंग्रेजी मनाया जाता है जिसमें प्रायः बीस पच्चीस और मगठी स्कूल, आदि। यहाँ हफ्तेमें प्रति हजार मनुष्य एकट्ठा होते हैं । जनता द्वारा करीब बुधवार और रविवार को बाजार लगता है। १२० एकड़ जमीन देवालयको दान दी गई है। १८८४ ई० में म्युनिसिपैलिटी की स्थापना नरसिंह बाबाके जीवन पर लोगों की बड़ी श्रद्धा हुई। यहाँ कपासका बाजार है। कपास से है। (अकोला डिस्ट्रिकृ गजेटियर)। विनौले निकालनेवाले दस और रूई दबानेवाले अकोला-जिला-बरार प्रान्तका एक जिला चार कारखाने हैं। यहाँ से लगभग ५००,००० उ० अ० २०१७ से २११६ और पू० दे०७६२४' रुपयों का कपास प्रति वर्ष बाहर भेजा जाता है। से ७७२७ है। इसके उत्तरमै मेलघाट पहाड़, यहाँ लेन देन का व्यापार जोरों पर है और मेल- पूर्वमै दर्यापूर और मुर्तजापूर ताल्लुका, दक्षिण में घाटकी इमारती लकड़ियों का व्यापार होता है। मंगरूल वाशिम और मेहकर ताल्लुका पश्चिममें आजकल यहाँ दरियाँ अच्छी बनाई जाती है। चिखली और मलकापुर ताल्लुका है । यह चौरस किसी जमानेमें अकोटकी दरियाँ बहुत मशहूर | प्रदेश है। इसमें पूर्णा नदी बहती है। यहांकी थीं। जोगवन, चिंचखेड और कमलापुर, ये | जमीन काली और उपजाऊ है । यह जिला पाइन तीनों कसबे मिलाकर यह गाँव बना है। आबादी घाटकी तराईके बीचमें बसा है। यहां कालवीट कुछ घनी है। हरएक घरमें एक २ कुँआ है। (एक प्रकारका हिरन ) सूश्रर, नीख-गाय, -