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पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१०

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wy अपोलो ज्ञानकोश (अ) २८७ अपोलो पर्वतमें निम्नलिखित स्तरोका समावेश होता है- ही सूर्यपूजा होती रही। उनका विश्वास था कि (१) त्रिस्तर (ट्रयासिक), (२) जुरीन (ज्यूरी- भक्तिपूर्वक उसकी पूजा करने से तथा नियत समय सिक), (३) सीतोपल ( केटेसियस), (४) नेव पर उसका उत्सव मनाते रहने से उसकी कभी प्रभात (एश्रोसोन) तथा (५) नवपूर्व (मिश्रोसीन) कोपदृष्टि नहीं होगी। इसकी उत्पत्ति ग्रीसके नवप्रभात कालमै एक स्तरपर दूसरे स्तरके चढ़ने उत्तम तथा सुहावने समय में हुई थी और उसके से पर्वत श्रेणि तय्यार हुई, समुद्र छिछला हो गया, | कुछ समय बादही उसे रथमे रखकर 'हाईपर- और काङ्गो मेटेटिक भूपटलके कारण उनकी रचना चोरियन' प्रदेश (Hy perborian ) में लेगये जिसके ऐसी हुई। इस प्रकार स्तरपर स्तर होते जानेसे कारण शीतकाल का प्रादुर्भाव हुआ क्योंकि सूर्य इनकी ऊँचाई अधिक हो गई और अनेक तालाबों भी उसके साथही साथ शीतकालमें चलाजाता का प्रादुर्भाव हुआ, द्वितीय तथा तृतीय कालीनस्तर है। ओलम्पियस ( Olympius ) की देवसभामें समुद्र में डूबगये। इसपर बरफ नहीं जय पाती। उसको मुख्यस्थान दियाजाता था क्योकि अपनी इन प्रदेशों को उन्नतिमें मुख्य दो अड़चने हैं। भविष्यवाणी द्वारा सब वह कुछ सूचित कर सकता एक तो इसकी प्राकृतिक रचना दूसरे व्यापारिक | था तथा सब विषयोपर 'प्रकाश' डालता था। साधनोंका अभाव इसकी उन्नतिमै बाधक हो रहे अपनी शाक्तिद्वारा दुःख, शोक तथा अज्ञानका हैं। योरोपीय महायुद्ध के पश्चात् अदनकी खाड़ी| अन्धकार दूर करता था। से अॅडिसअवाबा तक रेलवेलाइन बनजाने से, बहुतसे नगर इसी नामले बस गये। इन सद ऐसा विचार किया जाता है कि सम्भवतः व्यापार | का कहना यही है कि उसकी उत्पत्ति उसी नगरमै में कुछ उन्नति हो। स. १६२० ई० तक तो कुल | हुई थी। 'लीशिया' देशमें भी इसकी पूजा अति व्यापार तीस चालीस लाख पौण्डसे प्राधिक का प्राचीन कालसे होती चली आती है। जैन्थस नहीं हो सका। यहाँ से बाहर भेजीजाने वाली तथा डेलस द्वीपमें इसकी उत्पत्ति बताई जाती है। मुख्य वस्तुओमे केवल चमड़ा,कहवा और मक्खियों इस विषयमें अनेककिम्बदन्तियाँ हैं। लेटो (Leto) का मोम ही था । सूती वस्त्र यहाँ अन्य देशोसे बहुत इसको माता थी। जब वह जूनो द्वारा पोड़ित आता था। यहाँ का अधिकाँश व्यापार यूनानी, | होकर भटक रही थी तो उसे 'डेलस' में शरण सीरोयन और अरबी लोगोंके हाथमे है। कृषिमे मिली, और वहाँ जुइस द्वारा ( जूपिटर) उलेपुत्र भी अभी तक विशेष उन्नति नहीं देख पड़ती। प्राप्त हुआ, जो आजतक 'अपोलोंके नामसे प्रसिद्ध खनिज सम्पति भी-अभी बेकार पड़ी हुई हैं। है। इसकी जन्मकथा भी बड़ी मनोरञ्जक है। जलप्रपातकी असीम शक्ति का, जिसका उपयोग नौ दिन तक इसकी माता प्रसवपीड़ासे व्याकुल .यहाँ बड़ो सरलतासे सम्भव है, उसतक का कोई | थी । अन्तमें इसका जन्म हुआ जिससे साराद्वीप विशेष लाभ इन प्रदेशोने नहीं उठाया। प्रकाशित होउठा। देव प्रिय हंस पक्षि उसद्वीपके अपोलो-नीस (यूनान ) देशमें इस नाम | चारों ओर सात वार मंडराते रहे। मई मास को के देवताका किसी समय बड़ा महत्व था। जिस ७वा ही. दिवस भी था। अतः अाज भो वाँ अंक भाँति अपनी प्राकृतिक स्थितिके कारण भारतवर्ष में इस नाते पवित्र तथा शुभ समझा जाता है। उत्पन्न सूर्यको देवता मानकर उसको पूजनेकी प्रथा चली होते ही इसने एक धनुष उठाया और ग्रीसके आती है उसी भाँति अपनी विशेष प्राकृतिक स्थिति | देवताओ ( Oracles ) में अपना सिकाजमानेका के कारण ही प्रीसमें भी सूर्यका विशेष स्थान होना | निश्चय करलिया। उसकी इच्छापूर्तिके लिये उसके कोई आश्चर्य नहीं है। अतः उन भावों को व्यक्त | पिताने बाल बांधने केलिये अभिमन्त्रित 'मुज करने के लिये ही 'अपोलो' का प्रादुर्भाव हुश्रा | मन्त्रोपदेश तथागानविद्या प्रवीणता का शीर्वाद और नाना प्रकारसे उसकी पूजा होने लगी। दे, सफेद हंसपक्षि द्वारा खोंचे जानेवाले रथपर अपोलो' का दो अर्थ हो सकता है। एक तो नाश बैठाकर डेलफी ( Delphi) केलिये विदा किया। करनेवाला' और दूसरा दुःखौको हरण करनेवाला' | वे हंस-उसे पहले हाइपरबोरियनकी श्रोर लेगये, दोनो ही अर्थ ग्रोस ऐसे देश में सूर्यके लिये लागू | जिसका फल यह हुआ कि शीतकाल का प्रादुर्भाष होते हैं। सूर्यप्रकाशके कारण उत्तम फसल, उत्तम हुन । यहाँसे वह डेलफो पहुँचा। वहाँर पहले श्रावहवी तथा हृदयों में सदा उमंगों का उठना' | दूसरे देवोंका महत्व था किन्तु इसका- शीघ्रही और उसी सूर्यप्रकाशके कारण कभी कभी भयंकर प्रधानत्व स्थापित हो गया। उस समय उसने रोगोका होना है। श्रतः 'अपोलो' के रूप में असीम साहसके अनेक कार्य किये । इसको असीम