होगये। अप्पा शास्त्री ज्ञानकोश (अ) २६० अप्सरा उसे बुलानेका प्रयत्न किया, किन्तु उस अभि. | 264-268 Oppert, Vol. II. 3492; Burnell, मानिनी वल्लालकुमारीने जैन मन्दिर में प्रवेश | 1209) करनेसे इन्कार किया अन्तमें ये जैनबस्न, बेश तथा अप्पिया-वाया-(Appia Via) यह प्राचीन चिन्हका त्याग कर अपने गाँव पहुंचे और अपनी रोमकी सबसे बड़ी और मुख्य सड़क थी। रोम बहनसे क्षमा याचना की। थोड़े ही दिनोंमें ये | नगरसे यह प्राण्डिज़ियम तक चली गई है। यह फिर भले दंगे होगये। अब ये शिवके अनन्य भक्त ३५० मील लम्बी है। इसको पहले पहल ! ३१२ में अप्पियस क्लाडियसने बनवाना प्रारम्भ जैनी राजा पल्लवको यह मालुम होनेपर किया था। किस किस समय इसमें वृद्धि होती उसने अप्परको अनेक कष्ट दिया किन्तु वह अपने गई यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कहा जासकता धर्ममें दृढ़ बना रहा। अन्तमें भयभीत होकर | किन्तु यह निश्चय अवश्य है कि ई० पू० ३० में राजाने स्वयं शिवदीक्षा इनसे ग्रहण की। तदन- यह पूरी होगई । यह पक्की और बड़े बड़े स्तर इन्होंने अनेक यात्रा की और अनेक समका- पत्थरोसे बैठाई हुई है। पटरियों को छोड़कर यह लीन प्रसिद्ध साधुओं तथा विद्वानों से भेंट की। १४ से १८ फीट तक चौड़ी है। इसका वर्णन उन सबोंने इनका उचित सम्मान किया। तत्का- | अनेक प्रसिद्ध लेखकौने किया है। इसको सबसे लीन प्रसिद्ध विद्वान् संबन्दर जिसने पाण्ड्य उत्तम सड़क मानी है और 'सड़कोकी रानो' राजाको जैन धर्मसे फिर स्वधर्म में प्रवेश कराया (queen of road ) कह कर सम्बोधित किया है। था, वह इन्हें 'अप्पर' अर्थात् 'पिता' कह कर । लेखोंसे पता चलता है कि यह ५०० से ५६५ ई० सम्बोधित करता था। इसी नामसे आगे चल- तक पूर्णरूपसे अच्छी स्थितिमें थी। कर यह प्रसिद्ध होगये। इन्होंने अपने भ्रमण अप्पियस क्लॉडियस--इसको क्लॉडियसके कालमें अनेक स्तुति तथा स्तोत्रकी रचना की। अन्तर्गत लेखमें देखिये। अन्तमें यह पुपुंकलूर में जाकर बस गये। यह अप्सरा-अत्यन्त प्राचीन कालसे ही, और अपने पास मन्दिरोंकी घास खोदनेके लिये एक प्रायः सभी धर्मों तथा जातियों में ऐसी भावनाये कुदाली सदा रखते थे। इसी कारण आज भी रही हैं कि स्वर्ग में अत्यन्त सुन्दर सुन्दर स्त्रियाँ हैं दक्षिण भारतमें पाई जानेवालो इनकी मूर्तियों में जो मृत्युके उपरान्त धर्मात्माओके भोग विलास 'कुदाली' का चिह्न अंकित देख पड़ता है। यह के लिये वहाँ पर उपस्थित रहती हैं। इस कल्पना एक किसान कुलके थे. अतः इनके काव्य तथा का प्रादुर्भाव क्यों और कैसे हुआ अथवा कहाँसे लेखोंमें साधारण किसानोके चरित्रका सुन्दर इसकी उत्पत्ति हुई यह कहना तो कठिन है, किन्तु चित्रण देख पड़ता है। इनकी लिखी हुई लग इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह कल्पना भग तीन सौ कवितायें अब तक मिलती हैं। सुखलोलुप मनुष्योंको संसार में स्वधर्म तथा अन्य तामिल कवियोंकी भाँति इनकी कवितामे कर्त्तव्यपरायण बनाये रखनेके लिये ही की गई स्थान स्थान पर शिवनृत्यका वर्णन आता है। होगी। अर्थात् जिस आधार पर स्वर्ग की कल्पना उस समय दक्षिण भारतमें 'आस्तिक्यवाद' नाम की गई होगी उसी पर यह कल्पना भी स्थित से एक नये ही पंथका प्रादुर्भाव होरहा था। इस होगी। आज भी बहुत से मनुष्य तथा नर्क पंथमें इनकी कविताओंसे बड़ी सहायता मिलती के सुख तथा दुःखके भय से ही कितने पुण्य करते थी। इनकी कविताओंभे धर्मकी अनेक सुगम हैं, और पाप कर्मोंसे भय खाते हैं। अतः समाज तथा रहस्यमय बाते भरी हुई है। अपने गम्भीर के सुचारु सञ्चालनके लिये ही स्वर्गका निर्माण और व्यापक भाव इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा हुआ होगा, और अप्सरा स्वर्गीय सुखकी पूर्ति के ही जनसाधारणमें फैलाया था। लिये श्रावश्यक समझी गई होगी। अस्तु, कारण- अप्पा शास्त्री-इनके विषयमें विशेष कुछ मिमांसा अथवा इनके अस्तित्व तथा तथ्यता पर निश्चयपूर्वक पता नहीं हैं। ये एक उत्तम लेखक विचार करना इस लेखसे परे का और व्यक्तिगत थे. और इनकी लिखी हुई अनेक पुस्तकें आज भी विषय है । अतः, यहाँ पर भारतीय अथवा अभ्य सर्वमान्य समझी जाती हैं। इन्होंने 'लवली- देशोंमें जो अप्सरा-सम्बन्धी कल्पना हैं उनका परिणय' तथा 'सारखतादर्श' नामक नाटक लिखे। उल्लेख किया जाता है। "अप्पाशास्त्री वादार्थ तथा चिल्लुर वादार्थ' भी भारतीय-इस शब्दका प्रयोग बैदिक साहित्य इन्हींके लिखे हुए. समझे जाते हैं। ( Rice. P.1 में भी देख पड़ता । इसीके साथ साथ गान्धर्व स्वर्ग
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