पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नर- अप्सरा ज्ञानकोश (अ) २६२ अप्सरा दृष्टिकोणमें रखनेके लिये चारों ओर चार मुख प्रचलित हैं। नाग कन्याओंके समान जलमें भी बना लिये। नारदने इस भेदको पार्वतीसे कह ऐसी ही अप्सराओके रहनेकी धारणा अभी तक दिया, जिससे उसने क्रुद्ध होकर उनकी सब प्रचलित है। पूर्वकालमें तो ऐसी अनेक कथायें आँखौंको बन्द कर दिया। इससे संसारमें हाहा- मिलती हैं। दूसरी बार पुरूरवाका संयोग उर्वशी कार मच उठा। नारदने पार्वतीसे मार्थना की से जल विहार करती हुई ही हुआ था। ऐसे ही कि शिवकी आँखें खोल दे, किन्तु पार्वतीने इस महाभारतमे गन्धर्वराज चित्राङ्गदका उल्लेख जल पर ध्यान न दिया, तब शिवने ललाटमें तीसरा में विहार करते हुए मिलता है। इन्हीं लब कारणों नेत्र उत्पन्न किया। इसपर पार्वतीने उस अप्सरा से आज भी गाँव इत्यादिमें नदीतट पर कोई बड़ा को श्राप दिया कि वह कुरूप हो जावे। किन्तु | पत्थर मिलजाता है तो उसे पूर्वकालीन अपलरा ब्रह्माने उसे अप्सराकुण्डमें स्नान करनेका मान कर उसकी सेन्टुर, चुन्दड़ी तथा चूड़ियाँ आदेश दिया जिससे वह फिर अपने पूर्व रूपको चढ़ाकर पूजा करते हैं। अनेक ग्रामीण कथाओं प्राप्त हो गई। में मिलता है कि ये आकाशमै उड़नेवाली होती थीं, एक समय नरनारायण ऋषि बद्रिकाश्रममें समुद्र में रहती थीं तथा सर्वत्र जासकती थीं। कठोर तप कर रहे थे। उनके तपमें विघ्न डालने बहुधा सुन्दर राजकुमारों इत्यादि को ये चुराले के लिये इन्द्रने अनेक अप्सराओको भेजा। जाती थीं। (श्राधारग्रंथ-वेद, संहिता. ब्राह्मण, नारायणने इनका श्रागमन सुन आम्रच्यूतसे एक पुराण, वैदिक माइथोलोजी श्राफ मैकडानल, अलौकिक अप्सरा तैय्यार करी जो इन अप्सराओं हिन्दु क्लैसिकल डिक्शनरी बाई डासन, महा- से बहुत अधिक सुन्दर थी। इसपर वे लजित | भारत इत्यादि) होकर इन्द्रके पास लौट गई और सब समाचार मुसलमानी कल्पना-इन धर्ममें भी इन्हें स्वर्गमें कह सुनाया। उस ऋषि-निर्माणित अप्सराको रहने वाली सुन्दरियाँ माना है। ये गान विद्यामें इन्द्रने अपने पास लाकर रख लिया। इसीका चतुर तथा सदा युवति बनी रहती हैं। मृत्युके नाम उर्वशी हुओ। (अवन्ती खण्ड अध्याय =) उपरान्त जो धर्मात्मा स्वर्गमें जाते हैं उनके भोग इस भाँति देशके भिन्न भिन्न प्रान्तोंमें इनकी विलासके लिये ये होती हैं। इन्हें ये लोग 'दूर' भिन्न भिन्न कल्पनायें देख पड़ती हैं। ऐसी कल्पना कहते हैं। इसीसे मिलती जुलती इनके यहाँ भी भी है कि समयका प्रभाव इनके रूप यौवन पर कुछ 'परी' इत्यादि को मानते हैं। इन पारियों का भी नहीं होता। ये सदा ही तरुणी तथा लावण्य उल्लेख अनेक फारसी पुस्तकोंमें मिलता है। मयी बनी रहती हैं। इनमें भी भोग विलासकी सहस्त्ररजनीचरित्र (अलिफ लैला) (Arabian लिप्सा होती है। क्रोध और हर्षका समावेश होता | Nights ) किस्सा हातिमताई, इत्यादि इनकी है। क्रुद्ध होने पर श्राप देनेकी शक्ति भी इनमें | घटनाओंसे परिपूर्ण हैं । होती है। ये सर्वगामिनी होने पर भी अपवित्र पाश्चात्य कल्पना-यूनान देशके इतिहास तथा नहीं होती। बहुधा इनके पति गन्धर्व भी हुआ | पुराणों में इनका उल्लेख बहुत आता है। पाश्चात्य करते हैं। महाभारतमें कथा मिलती है कि जब कल्पना विशेषता यह है कि इनका सम्बन्ध इन्द्रलोकमें अस्त्र विद्याके हेतु अर्जुन आये हुये थे प्रकृत्तिसे अत्यन्त घनिष्ट रक्खा गया है। इन्हें और वहाँ रह रहे थे तो उनके रूप पर उर्वशी 'निम्फ' ( Nymph) फेयरी (Fairy ) इत्यादि मोहित हो गई थी। उसने अर्जुनसे अपनी काम नामोंसे सम्बोधित करते हैं। इनमें दो जातियाँ तृप्तिके लिये अनेक प्रार्थनाय की किन्तु अर्जुन मानी हैं-एक तो जलमै रहने वाली और दूसरी सहमत नहीं हुआ क्योंकि वह उसे अपने पूर्वजों स्थल पर विचरण करने वाली। ये बन, पर्वत, द्वारा भोगी जाने के कारण माता रूपमें देखता था, घाटियोंमें रहती हैं और इन्हीं की ये अधिष्ठात्री इसपर उसने क्रुद्ध होकर अर्जुनको श्राप दिया समझी जाती थी। उसी भाँति जलमें रहने था कि वह नपुंसकत्वको प्राप्त हो। अज्ञातवास | वाली जलवामिनी समझी जाती थीं। ये सदा में इसी श्रापके कारण अर्जुनको बड़ी सहायता | एक सी रहती हैं। वृद्धावस्था तथा रोग इन्हें मिली। नहीं असता। कुछके मतानुसार तो ये अमर होती भारत के अनेक प्रान्तों में आज भी अनेक हैं और कुछ इन्हे अत्यन्त दीर्घजीवी मानते हैं। ऐसी ही धारणाये चली आती हैं। गावों में इनकी संख्या लगभग ३००० के हैं। ये असा. परियों, वनदेवियों इत्यादि की अनेक कथायें | धारण शक्तिसे सम्पन्न होती हैं। इनकी गणना