पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१७

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ)२६४ अफगानिस्तान कालके अन्तिम दिवसमें सृष्टिमें अनेक उत्कृष्ट तथा भेड़े होती हैं। चिम गादड़ यहाँ बहुत होते परिवर्तन हुए। ऐसो अनुमान है कि उसी समय हैं। जंगली गदहे, खच्चर, तथा दरयाई घोड़े भी हिमालय पर्वत ऊपर उठ आया। अफगानिस्तान | यहाँ पाये जाते हैं। सर्व बहुधा हरे रङ्गके तथा का तो कुछ भाग तृतीय कालके बीतने पर समुद्र | डेढ़ फीट लम्बे देख पड़ते हैं। ये हानि नहीं के ऊपर श्राया था। पहुँचाते। । हाँ, रेगिस्तानी प्रदेशों में काले साँप भी पैदावार-यद्यपि यहाँ खनिज पदार्थ बहुत होते हैं जो अत्यन्त विषैले होते हैं। कन्दहार की है किन्तु उनका उपयोग अभीतक बहुत कम हुआ गौ विख्यात है। ये बहुत दूध देने वाली होती है। सोना यहाँ बहुत कम पाया जाता है। हिंदू हैं। ऊँट भी यहाँ देख पड़ते हैं किन्तु दो कूबड़ कुश के पजशीर की घाटियों में चाँदी की कुछ वाले ऊँठ शायद यहाँ के असली नहीं हाते। खाने अवश्य हैं। उत्तम प्रकार का लोहा काबुल खोरासान, कुर्रम, तुर्कमानके घोड़े विख्यात हैं। के उत्तर पश्चिममें बाजार प्रान्तमें पाया जाता है। ये बड़े मजबत और मेहनती होते हैं, चाहे तेजी में गोमल ओर कुर्रमके समीप इसकी बहुताय है। उतने अच्छे भले ही न हो। बकरे यहाँ बड़े बड़े हजारा और हेरातमें गन्धक पायाजाता है। तथा सुन्दर, काले तथा चितकबरे रङ्गके होते हैं। शिनवारी प्रान्तमें लेड मिलता है। गोमल और यहाँ पक्षि होते तो अनेक प्रकार के हैं, और वर्ष के. कुर्रमके बीचके प्रदेश जुरमटमें कोयला मिल भिन्न भिन्न भागोमें भिन्न भिन्न प्रकारके देख पड़ते जाता है। बहुधा इन सबकी खाने यों ही पड़ी हुई हैं। कप्तान हटनने इन पक्षियोंके १२४ भेद बताये हैं। पर्वत-प्रधान देश होनेसे यहाँ की कृषिमें अभी हैं। इनमें से ४५ तो यूरेशियाके मालूम होते हैं, तक अधिक उन्नति नहीं देख पड़ती। भारतके | १७ भारतीय और १० इन दोनोंके बीचके विदित समान ही यहाँ भी दो फस्ले होती हैं। एक तो होते हैं। थोड़ी सो चिड़िया यहाँ की ही हैं। शिशिरमें बोई जाती है और गरमीमें काटी जाती है गरमीके श्रारम्भमें तो यहाँ भारत तथा अफ्रीका इस फैसलमें अधिकतर गेहूँ जो इत्यादि होते हैं के अनेक पक्षि देख पड़ते हैं, और जाड़ेमें यूरे- दुसरी वसन्तमें बोई जाती है और जाड़े के प्रारम्भ शिया की ओर से बहुतसे आजाते हैं। में काटी जाती है। इसमें चाँवल, चुकन्दर, कच्चामाल-यहाँ उद्योग और धन्धे बहुत नहीं तम्बाकू, फली इत्यादि होती हैं। हैं, क्योंकि कच्चा माल यहाँ बहुत कम पैदा होता सफेद कोह पर भी जङ्गल है। ६.०० फीटसे है। काबुल, कन्दहार हेरात, जलालाबादो रेशम लेकर १०००० फीट की ऊँचाई तक केवल सेवार पैदा होता है, किन्तु ज्यादातर उनका प्रयोग देश- इत्यादि देख पड़ती है। ३००० फीट की ऊँचाई ही में हो जाता है। बहुत अच्छे मेलका रेशम पर जैतूनके वृक्ष बहुतायतसे पाये जाते हैं । शाह- पजाय और बम्बईमै अवश्य भेजा जाता है । यहाँ बलूत.. फर., यू., सिडर इत्यादि के पेड़ देश भर में | की दरियाँ और कम्बल विख्यात हैं। ये सुन्दर होते हैं। यह देश फलों तथा मेवों की तो खान: मजबूत और टिकाऊ होते हैं । ॐठ, भेड़ हैं। अखरोट, बादाम, पिस्ता, अप्रिकट, सफर. तथा बकरोंके ऊनका कपड़ा ( Felt) बनाया कन्द, पीच, सेव, नाक, नास्पाती, शफ्ताड जाता है। इस उद्योगमै यहाँ वालोने बड़ी अच्छी खुब्बानी, अँगूर तो यहाँ बेहद होते हैं । यहाँ के सफलता प्राप्त की है। यहाँ से मालाके दाने भक्के निवासो इसका सेवन भी जी खोलकर खूब करते तक भेजे जाते हैं। हैं। यहाँ से फल और मेवे अन्य देशों में भी बहुत जलवायु–यहाँके भिन्न भिन्न प्रदेशोंको जल- परिमाणमें भेजे जाते हैं। वायुमें बहुत अन्तर देख पड़ता है, क्योंकि समुद्र जीवजन्तु-जंगली जन्तु यहाँ अधिक नहीं हैं। की सतहसे हरेक भाग की ऊँचाई नीचाई ( Sea बन्दर यहाँ कुछ पाये जाते हैं। यूसुफजाई तथा level ) में भी बहुत भेद है। कुछ प्रदेश यदि काबुलके उत्तरमै ये अधिक है, किन्तु इनके भेद बिल्कुल समतल तथा मैदान हैं तो कुछ बहुत ऊँवाई इत्यादिके विषयमें अधिक ज्ञान नहीं हो सका पर स्थित हैं। ५०० फीट की ऊँचाई पर शरद है। चीता भी कहीं कहीं पाया जाता है। जङ्गली ऋतुम अत्यन्त शीत पड़ती है। गजनीमें तीन कुत्ते भी देख पड़ते हैं। भारतके समान लोमड़ी, महीने तक बराबर बर्फ पड़ा करती है; तथा नेवले यहाँ भी होते हैं। एक तो काले रङ्गका तापमान ( ( Temperature ) १०-१५ तक हो और दूसरे मटमैले रङ्ग का भालू यहाँ बहुत होता | जाता है। हजारा प्रान्त भी अपने जाड़े के लिये है। उत्तरीय पूर्वी प्रदेशामें हिरन, बारहसिंधे, प्रसिद्ध है। काबुल में उतनी सर्दी नहीं पड़ती।