पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३१९

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) २६६ अफगानिस्तान जिनसे आपसके झगड़ोंका निपटारा ये कराते हैं। शियों में सदा वैमनस्य धना रहता है। अन्य जो जातियाँ भली भाँति बस गई हैं, उनके | धर्मावलम्बियों से बिना कारण ये छेड़छाड़ नहीं गाँव बसे हुए हैं। बहुतसे नगरों में भी बसे हुए करते । । खेतो बारी और सिपहसालारी ही इनका इन लोगों में अनेक विवाह की प्रथा है । प्रत्येक मुख्य धन्धा है। हरेक अपनी अपनी भूमिके मनुष्य चार तक बिवाह कर सकता है। इन स्वामी है। अफगान जाति सुन्दर, सुडौल, हृष्टपुष्ट लोगोमें स्त्रियोंके खरीदने की भी प्रथा थी। इस तथा आखेटप्रिय होती है। इनका रङ्गरूप साफ रीतिका यह प्रभाव पड़ा कि स्त्रियाँ भी अपने पति होता है, दाढ़ियाँ रखते हैं और आगे का बाल की जंगम सम्पतिके समान समझी जाने लगी मुड़ाये रहते हैं, किन्तु पीछे का बढ़कर कन्धोंपर थीं। पुरुष इच्छा होने पर बिना किसी कारणके लटकता रहता है। ये दृढ़, कठोर, तथा गौरव भी अपनी पत्निको तिलाक दे सकता है, किन्तु पूर्ण होते हैं। व्यवहार में ये रूखे विदित होते हैं। स्त्री को यह अधिकार नहीं है। वह केवल काजी मृत्युसे ये विल्कुल नहीं डरते। ये बड़े साहसी से श्राशा पाने पर ही ऐसा कर सकती है। तथा धैर्यवान होते हैं, किन्तु अपयश अथवा विधवा-विवाह प्रचलित है। विधवा सबसे पहले इच्छा विरुद्ध होने पर शीघ्र ही विचलित हो उठते अपने पतिके भाईसे विवाह कर सकती है। उसके हैं। उस समय ये फिर वशमें नहीं आते। अतिथि रहते हुए अथवा विना उसकी अनुमति के वह सत्कारके लिये थे सब कुछ कर सकते हैं और सह दूसरे से विवाह नहीं कर सकती। विवाह कर सकते हैं। शत्रु भी यदि अतिथि रूपमें आवे तो लेने पर विधवाका अपने पतिकी सम्पत्ति पर उसका सत्कार करते हैं। शरणागत की रक्षाके कोई अधिकार नहीं रह जाता। विधवा किसी लिये ये अपनी तथा अपने कुल तक की जान व्यक्ति विशेषसे ही विवाह करनेके लिये बाध्य लड़ा सकते हैं। छोटी छोटी बातोंके लिये हत्या नहीं की जाती, उसे पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है कि कर डालना इनके लिये मामूली बात है । इनकी जिस पुरुषसे उसकी इच्छा हो विवाह करे । दृष्टि में जीवनका कुछ भी मूल्य नहीं होता । यो बहुत सी ऐसी विधवायें जिन्हें सन्तान होती हैं, तो मित्रता का नाता भी ये खूब निवाहना जानते फिर विवाह करना पसन्द नहीं करतीं। ऐसी हैं, किन्तु किस बातपर ये बिगड़ उठेगें नहीं कहा विधवा अधिक श्रादर और सम्मान की दृष्टि से देखी जाती हैं। इनकी स्त्रियाँ सुन्दर, गौरवर्ण की दृष्टपुष्ट विल्कुल ठीक ठीक तो सम्पूर्ण देशके लिये होती हैं। इनकी आकृति यहूदी लोगोंसे मिलती विवाह की कोई खास अवस्था कह देना कठिन है जुलती होती है। बाल्य कालसे यौवनमें पदार्पण किन्तु बहुधा तथा साधारण परिस्थितमें लड़कों करते समय इनका चेहरा गुलाबी तथा स्वास्थ्य- की विवाहावस्था २० वर्ष और कन्याओं की १५, कर विदित होता है. किन्तु इनके एकान्तवास परदे | १६ वर्ष होती है। जो निर्धन हैं उनका विवाह की प्रथा तथा निरस जीवनके कारण ये शीघ्र ही अधिक अवस्थामें भी बड़ी कठिनतासे हो पाता रोगी सी देख पड़ने लगती हैं, चेहरा पीलो हो है। इसी भाँति विशेष परिस्थितियों में पड़ जानेके जाता है, और आँखे धंसी हुई जान पड़ती हैं । कारण २५. ३० वर्ष तककी कुमारी ( बेगम ) ये बालों को बीचमें से मांग कोढ़कर दो चोटियों देखी जाती हैं। बहुधा पेसो भी देखा गया है कि में विभक्त कर लेती हैं। सम्पन्न कुलके लड़के तथा लड़कियों का विवाह ये इस्लाम धर्मको मानने वाले होते हैं, किन्तु बहुत छोटी ही अवस्था हो जाता है। १५ वर्षके धर्मके विषयमें बहुत कम शान इन्हें स्वयमो पार्जित लड़के और १२ वर्ष की कन्यायें धनी कुलोमें होता है। बहुधा वे अपने मुल्लाओके कथन पर अनेक विवाहित मिलेगे। अफगानिस्तानके पश्चि. ही अन्धविश्वास कर लेते हैं। जादू, टोना, शकून मोय प्रान्तोंमें तो ऐसी प्रथा देख पड़ती है कि तथा ज्योतिष पर इनका अटल विश्वास होता जब तक दाढ़ी नहीं निकल पाती, तब तक विवाह है। मृतकों को ये भी गाड़ते हैं । यद्यपि ये मूर्ति नहीं करते। गिलको लोग तो और अधिक अव. पूजक नहीं होते, किन्तु 'जियारत' करने जाते हैं। स्थामे विवाह करते हैं। यो तो बहुधा इन लोगों और ऐसी जियारत और दरगाहे यहाँ कमसे कम के सम्बन्ध अपनी अपनी जातिमें ही करना अच्छा १६३ हैं। ये बहुधा कट्टर सुन्नी जातिके होते हैं। समझते हैं, किन्तु परजाति अथवा परदेशोंमें थोड़े बहुत शीया भी देख पड़ते हैं। सुन्नी तथा भी विवाह सम्बन्ध स्थापित करनेमें कोई अड़- जा सकता।