जा रही है अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) २६७ अफगानिस्तान बन नहीं है। ये अन्य जाति की कन्याओंसे तो (Hygine ) के नियमासे अनभिज्ञ होने के कारण विवाह सहर्ष कर लेते हैं, किन्तु अपनी कन्या तथा सभ्यता, विज्ञान इत्यादिमें बहुत पिछड़े होने अन्य जातिमें देनेसे अपनी मान मर्यादा पर के कारण अनेक प्रकारके रोग इस देशको सदा आघात हुआ समझते हैं। परदेकी प्रथा यहां से रहते हैं । गत वीस वर्षों में तीन बार महामारी भी फली होने के कारण बहुधा युवक युवति का भयंकर प्रकोप हो चुका है। चर्मरोग, आँखों स्वयं अपना विवाह निश्चय नहीं कर पाते। उनके का रोग, गण्डमाला, गरमी इत्यादि यहाँके मुख्य माता पिताका ही ये कर्तव्य होता है कि भली रोग हैं। भाँति देख भाल कर अपने पुत्र पुत्रियोका विवाह इस देशकी मुख्य भाषा तो पुश्तो ही मालूम करें। कन्याको देखने के लिये किसी स्त्रीको भेज पड़ती है जो कदाचित इण्डो-आर्यन ( Indo दिया जाता है। जब सब भाँति सन्तोष हो जाता Aryan ) भाषा की एक शाख होगी किन्तु आज है तब विवाहनिश्चय अर्थात् सगाई (मँगनी) | कल फारसीका ही अधिक महत्व देख पड़ता है। ते की जाती है। इसके बाद दहेज इत्यादिका विदेशियोंके अतिरिक्त वहाँके भी धनी तथा सभ्य दोनों और प्रबन्ध हो जानेपर तथा गृहस्थी कुलोमें इसीका अधिक व्यवहार देख पड़ता है सम्हालने का पूरा इन्तजाम हो जानेपर इस्लाम और यही राज-भाषा भी समझी जाने लगी है। धर्मानुसार एक दिन काजी मुल्लाओके सामने जलालाबादमें लगमानी भाषा बोली जाती है। धूमधामसे विवाह सम्पन्न हो जाता है। अमीर सरहदी देशों तथा बेलुचिस्तानमें बलूची भाषा तो चार चार तक विवाह करनेके बाद भी घरमें बोलते हैं। पुश्तो हेरात अथवा हेलमण्ड्से पश्चिम अनेक रखेलियाँ डाले रहते हैं, किन्तु सभ्यताके में नहीं देख पड़ती। विकासके साथ साथ यह प्रथा भी कम होती अफगान देशका प्राचीन काव्य तथा साहित्य पुश्तो भाषामें ही मिलता है। इनमें से कुछ पुस्तके इन लोगों का रहन सहन सीधा सादा होता विशेष उल्लेखनीय हैं। पुश्तो भाषाका जो आज है। धनके अभावले इन्हे पर्याप्त अन्न भी प्राप्त नहीं कल सबसे पुराना ग्रन्थ मिलता है वह एक होता। साल का अधिक भाग तो केवल ये फल इतिहास है। यह (सन् १४१३-१४ ई०) यूसुफ- और मेवों पर ही काट देते हैं। धनी लोग गेहूं जई लोगोंके एक सरदार शेख अली द्वारा तथा चावलका प्रयोग करते हैं किन्तु निर्धन तो लिखा हुआ है। इसमें इसने अपनी विजय का बहुधा कूटू पर ही निर्वाह करते हैं। ये मांसाहारी वर्णन किया है। इसके बाद उसी कुलमें काजूखाँ होते हैं और बकरे का मांस अधिक व्यवहार में हो गये थे। उन्होंने भी अपना इतिहास लिखा लाते हैं। इन लोगोंकी पोशाक भी सीधी सादी है। अकबरके शासन काल में भी बायजद अन्सारी एक सो देख पड़ती है। चौड़ा पैजामा, कमीज या उपनाम पोरे-रोशन तथा प्रसिद्ध अफगानी साधु कुरता और चोगा पहनते हैं, और सिर पर साफा अखुन्द दर्वेजा ने पुश्तोमें पुस्तके लिखी थीं। लपेटे रहते हैं। श्राजकल कुछ धनी लोग पाश्चात्य इनके साहित्यमै कविताका प्रधानत्व देख पोशाक भी पहनने लगे हैं। इन लोगोंके घर पड़ता है। थोड़ी बहुत उच्चकोटि की भी कवितायें अभी भी बहुधा वैसे ही पुराने ढगके कच्चे ईटोंके देख पड़ती हैं। इनमें अबदुर्रहमान नामक देख पड़ते हैं। ये एक मडिजलके बने रहते हैं और एक बहुत उच्चकोटि का कवि होगया है । दूसरा मकानके चारों ओर चहार दीवारी खोची रहती प्रसिद्ध कवि खुशहालखाँ था । यह औरंगजेब के है। ये श्राखेटप्रिय तो होते ही हैं साथ ही और समय में होगया था । इसके वंश में अनेक अन्य भी साकतके खेलों में भाग लेते हैं। ये कुश्ती और कवि भी हो गये हैं। राज्यसंस्थापक अहमदशाह दंगलके बड़े प्रेमी होते हैं। गाँव में छोटे बड़े सभी ने भी अनेक कवितायें लिखी हैं। इसके अतिरिक्त गोली खेलते हैं। यहाँ अभी भी बड़े बड़े नगरों देशीय गाने भी बहुतसे मिलते हैं। का छोड़कर पाश्चात्य खेल टेनिस क्रिकेट इत्यादि प्रधान जातियों तथा स्थानों का इतिहास-यद्यपि का अधिक विकास नहीं देख पड़ता। शतरज का भारतवर्ष में सभी अफगानीको 'पठान' के नामसे खेल यहाँ घर घर प्रचलित है। यों तो यहाँ के सम्बोधित किया जाता है, किन्तु अफगानिस्तान लोगों का स्वास्थ्य अति उत्तम होता है, शारिरिक में 'पठान से उन्हीं का बोध होता है जो पुश्तो' बल भो पर्याप्त होता है. वृद्धत्व को भी शीघ्र ही भाषा बोलते हैं । 'पठान' का सम्बन्ध पक्टियन' नहीं प्राप्त होते, किन्तु स्वास्थ्य तथा स्वच्छता | शब्दसे बहुत घनिष्ठ मालूम होता है। सम्भव है ३८
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