पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३२१

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) २६८. अफगानिस्तान कि जिस पक्थ' जाति का उल्लेख ऋग्वेदमें श्राया खेती करना ही था। पहले ये भी काफिर समझे है, वे ही इनके पूर्वज हो। प्रसिद्ध इतिहासकार जाते थे। इससे यह स्पष्ट है कि ये इस्लाम धर्म हीरोडोटस का कथन है कि पक्टिया' नामका को नहीं मानते थे। ये लोग मुहम्मद गजनवीके एक स्थान आर्मेनिया प्रान्तमैं था। उसने जो कुछ | समय में ही मुसलमान हुए थे। इन्होंने धोरे इसका वर्णन किया है उससे पता चलता है कि धीरे पेशावरपर अधिकार कर लिया था। किन्तु यह प्रान्त सिंधुनदके सरहद पर था। इसका थोड़े ही दिनों में इनसे अफगानोंसे युद्ध हुआ। क्षेत्रफल आधुनिक पुक्तुनखवाके क्षेत्रफलके बरा अन्तमै मिर्जा उलुख बेगके समयमें यूसुफजई वर ही था। इसको रोह भी कहते हैं और यहाँ तथा. महमन्द लोगोने मिलकर इन्हें पूरा पूरा के रहने वाले रोहिलो के नामसे प्रसिद्ध हैं। परास्त कर डाला और पेशावर से भगा दिया। आजकल जो वैक्ट्रियाके नामसे प्रसिद्ध है वह | जहाँगोर बादशाह के समयमै भो इनका अस्तित्व पूर्वकालीन हिन्दू इतिहासका बाहुलीक रहा पेशावर, पाकलो, कच्छ तथा धौलपुर इत्यादि में होगा क्योंकि सिन्धुनद और ऑक्ससके उत्तरी | मिलता है । भागको ही याहूलीक कहा जाता था। पक्टिया इसी समय धीरे धीरे यूसुफजई लोगों का प्रान्तसे आजकल जो बोध होता है वह भाग प्रभुत्व बढ़ने लगा था। देशपर देश जीतते जाते सुलेमान पर्वतकी श्रेणियों तथा सफेद कोहके थे खाना देशके निवासियोंने इनसे अच्छा बीचमें स्थित हैं और यहीं पठानोंका मुख्य मुकाबिला किया। किन्तु अकालके कारण इन लोगों स्थान है। को भी शरण श्राना पड़ा। धीरे धीरे इन्होंने भी कन्दहार प्राचीन गान्धार देशका ही रूपा- मुसलमानी धर्म ग्रहण किया। इसी समय मह- न्तर है। यह काबुल तथा सिन्धुनदके बीच मन्द लोगोंने कन्दहार ( गान्धार ) पर भी स्थित है। इस देशका भी बहुत पुराना इतिहास श्राक्रमण कर दिया था। कन्दहार इनके सामने देख पड़ता हैं । महाभारत इत्यादिमें अनेक स्थानों टिक न सका और अन्तमें उसकी पराजय हुई। पर इसका उल्लेख मिलता है, और भारतवर्षसे | जेताओंने देशको सत्यानाश कर डाला और इसका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। पूर्वकालमें यहाँ बड़ी क्रूरता तथा बर्वरता का बर्ताव किया । फल हिन्दुओं का राज्य था । यहाँपर अन्य अनेक | ये हुआ कि बहुतेरे देश छोड़कर काफिरिस्तान जातियाँ भी रहती थीं। पर्शियन, शक तथा इत्यादि प्रदेशों में जाकर बसे। कुछ काल तक तैमती इनमें मुख्य थीं। तो इन्होने अपना धर्म नहीं छोड़ा और विजयी इस्लाम धर्मका प्रचार बढ़ने पर तथा आफ- | इनको 'काफिर' ही कहकर सम्बोधित करते गानिस्तान द्वारा जीते जानेपर यहाँके निवासियों रहे। शनैः शनैः इस्लाम धर्म फैलने लगा और ने भी इस्लाम धर्म धीरे-धीरे स्वीकार कर लिया अधिकांश कट्टर मुसलमान हो गये। किन्तु अभी जिससे उनके राष्ट्रियत्व पर गहरा धक्का लगा. भी यहाँ हिन्दू जाति देख पड़ती है। स्वात का केवल नाम ही नाम रह गया । अफगानी प्रबल प्रसिद्ध राजा. तथा साधु ( दरवेश ) श्राद थे। अतः उनकी रीति रस्म तथा सभ्यता का इस गान्धारी.जातिका ही था। अनेक बार इन्होंने देशपर पूरा प्रभाव पड़ा। शादी विवाह होने अपने खोये हुए अस्तित्वको प्राप्त करने का लगे। अन्तमें इनका कोई अलग अस्तित्व ही प्रयत्न किया किन्तु कभी भी इन्हे पूर्ण सफलता नहीं रह गया; और ये भी पक्के मुसलमान हो नहीं प्राप्त हुई। विजयी जातियों को यह स्थान गये। अब इनकी गणना 'अफगानियों में हो बड़ा उत्तम अँचा और वे स्थायी रूपसे यहीं बस की जाती है। गये। किन्तु इससे वहाँकी सभ्यताका पूरा पूरा अन्य मुख्य जाति दलाज़क' है। ऐसा अनुमान नाश हो गया। बौद्ध कालमै इस देशकी अवस्था किया जाता है कि ये लोग सीथियन जातिके | बड़ी उत्तम थी तथा यहाँकी सभ्यता तथा होगे। कदाचित ये पाँचवी तथा छठी शताब्दी विकास प्रख्यात था। बड़े बड़े नगर बसे हुए थे। में यहाँ आये होंगे। उसी समय जाटोंसे सम्मिलित सर्वत्र सुख शान्ति का साम्राज्य था। जनता उच्च होकर इन्होंने कन्दहार पर आक्रमण किया था | भावों से परिपूर्ण थी। पुराने लेख, स्मारक तथा और वहीं पर बस गये। ये पेशावर तक फैले हुए खण्डहर जो अब भी पाये जाते हैं इसकी तथ्यताका थे। यहाँके जाट, गूजर' के नामसे प्रसिद्ध थे। उत्कृष्ट प्रमाण है । स्वात, वाजावर, वुनर इत्यादि उनका मुख्य धन्धा जानवरों की पालना तथा स्थानों में आज भी अनेक चिन्ह पाये जाते हैं।