पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३२२

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ)२६६ अफगानिस्तान यूसुफजई अपने को अफगानी ही कहते हैं | निश्चयपूर्वक कहना तो कठिन है किन्तु इतना किन्तु यह जोसेफके वंशज मालूम होते हैं। अवश्य कहा जासकता है कि काश्मीर तक किसी धीरे धीरे इनकी संख्या बहुत बढ़ गई। १६वीं समय यूनानका प्रभुत्व रहा होगा। अब भी ऐसे शताब्दीके आरम्भमें जब पजाब अंग्रेजोने जीत अनेक चिन्ह तथा अवशेष प्राप्त होते हैं जो ग्रीक लिया तो ये भी उनके वश में आ गये। तबसे सत्ताका प्रमाण हैं। इनके देशोंमें भी अनेक सुधार हुए। अब ये लोग ईसाके समयके लगभग कुशन लोगोंने (यूनान सुख शान्तिसे रहते हैं। निवासी इन्हें इण्डोलीथियनके नामले पुकारते थे) 'अफ्रीदी' जातिके विषयमें अनेक कल्पनायें हिन्दूकुशके दक्षिण तक अपना राज्य फैला लिया हैं। हिरोडोटसके मतानुसार यह अपारीटी था। इनलोगों की सत्ता केवल अफगानिस्तान जातिके हैं किन्तु आजकलके अफ्रीदी तथा ही तक नहीं थी, भारतवर्ष में सिन्ध इत्यादि तक उनमे बड़ा अन्तर देख पड़ता है। अफगानियोंके इनका प्रभुत्व था। चाहे भारतवर्षका शासन मतानुसार ये धुरधुष्ट जातिके हैं। बहुत सम्भव तथा अधिकार इन प्रदेशोपर पूर्णरूपसे कभी भी है कि पहले चाहे ये बौद्ध धर्मावलम्बी रहे हो न रहा हो किन्तु इतना तो निश्चय है कि बौद्ध धर्म चाहे अग्निपूजक, किन्तु अब तो ये अपनेको तथा सभ्यताका यहाँ किसो समय पूर्ण विकास मुसलमान ही कहते हैं । इस समय इनकी गणना रहा होगा। जलालाबाद, पेशावर तथा कावुलके असभ्य तथा जंगली जातिके लोगोंमें ही की जाती पासपोस आज दिन भी ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं। आज कल इनकी अनेक उप-जातियां देख हैं जिससे इस विषयमें कोई भी सन्देहका स्थान पड़ती हैं। खैबरके पास इनकी बहुत बस्ती है। नहीं रह जाता। इतिहास-अफगानी अपने को बानीये-इस्मा समयके साथ साथ इन प्रदेशोंपर भी बोहरी इल अर्थात इस्माईलके बंशज' कहते हैं। 'साल' दलोंके अनेक आक्रमण हुए। इन सबमें प्रसिद्ध बादशाह (जिसे यह तालूत कहते थे) को ये कनिष्क ही हुश्रा है। यह भी ईसाके समयके अपना पूर्वज मानते हैं। आगे चलकर इसी राजा लगभगका ही है। इसका राज्य भारतवर्ष तक का बंशज 'अफगाना' था जिससे इनके आधुनिक फैला हुआ था। इसका वर्णन ६०० वर्ष बाद नामकी उत्पत्ति हुई। इस्लामके विख्यात पैगम्बर आनेवाले चीनी यात्री ह्यूनस्टाँगने विस्तारपूर्वक मुहम्मदके धर्मप्रचारके नवे हो वर्ष कैसके नेतृत्वमें किया है। इसकी ख्याति अबुरिहानुलवरूनी इनलोगों का एक दल मदीना भेजा गया। इस नामक प्रसिद्ध मुसलमान भूगोलवेत्ता, तत्वज्ञानी दलके लौटनेपर धीरे २ सोने इस्लाम धर्मकी तथा यात्रीने ११८० ई० में अपनी पुस्तकों में दीक्षा ग्रहण की। आधुनिक अफगानी कैस तथा वर्णन की है । उसके तीन पुत्री ही से अपना सम्बन्ध जोड़ते ह्यूनस्टांगके समय में ( ६३०-६४५ ई० ) तथा हैं। इस कथाका वर्णन देशकी अनेक पुस्तकोंमें उसके बहुत दिनों बाद तक काबुलमें हिन्दू तथा मिलता है। सबसे पुरानी पुस्तक जो इस विषय तुर्क दोनों ही का प्रभुत्व देख पड़ता है। दसवीं की मिलती है वह सोलहवीं शताब्दीकी है । मेजर शताब्दीके अन्त तक कावुलमें हिन्दू राज्य ही का रेवर्टीने लिखा है कि बादशाह सुलेमान इन लोगोंके प्रमाण मिलता है। उसी समय सुबुक्तगीन नामक बीच में आकर आधुनिक सुलेमान पर्वत पर स्वयं तुर्कने काबुलको जीता था। इसने ग़ज़नीको बसा था। फरिश्ता नामक प्रसिद्ध इतिहासकार अपनी राजधानी नियत की। बारहवीं शताब्दी का मत है कि पॅराह जातिके काप्टस लोगोसे तक उसीके वंशज राज्य करते रहे। इनके समय अफगानोंकी उत्पत्ति हुई। बेलोका कथन है कि में गजनीकी गणना संसारके मुख्य नगरौमैं की बिलुचिसका पिता बिलो जो कैसके समयसे पहले जातो थी। कुछका मत है कि ये अफगान थे। का है, वह उजबक तथा अफगाना भाई भाई थे। यदि यह सच है तो कह सकते हैं कि ये पहले ईसासे ३२० वर्ष पूर्व सेल्युकसने चन्द्रगुप्तको बादशाह थे जिनको अफगान कह सकते हैं । किन्तु सिन्धुनदके पश्चिमका कुछ भाग दहेजके रूपमे कुछ इतिहासकारोंका मत है कि ये जोहक वंशके दिया था। इस भागमें भारतवर्षके ही लोग बसे थे। इसके बाद शाहबुद्दीनगोरी देख पड़ता है। हुए थे। यह काबुलके तरेटी तक फैला हुश्रा | इसने तो भारतवर्षपर भी अनेक आक्रमण किये। था। लगभग साठ वर्ष बाद इन प्रान्तीपर ग्रीस कुछ समय तक अफगानिस्तानपर खारिजमके का फिर प्रभुत्व देख पड़ता है। इस विषयमें कुछ | बादशाहका अधिकार था। इसी वंशके जलालु-