पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३२५

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) ३०२ अफगानिस्तान हाथसे निकल गया था। बड़ा प्रयत्न करने पर पर अमीरका परराष्ट्रीय-सम्बन्धी विभाग अंग्रेजों आगामी वर्षके शरद ऋतुम किसी भाँति काबुल को देख रेखमें आगया किन्तु विद्रोह तथा अशान्ति पर यह फिरसे अधिकार जमा सका। १८६६ ई० चारों ओर फैली हुई थी, कहानी इत्यादि अंग्रेजों के श्रारम्भमें यह अम्बाला आया और अल मेयो की हत्या कर डाली गयो । इसपर रॉबर्टके ( Earl Mayo ) ने बड़ी तत्परता से इसका श्राधिपत्यमें अंग्रेजोंने चौरेशियामें अफगानोंसे स्वागत किया। यद्यपि इसकी आशानुकूल युद्ध किया : इस युद्ध में अंग्रेजोंको पूर्ण विजय सहायता तो इसे प्राप्त नहीं हुई किन्तु इससे बड़ा | प्राप्त हुई और काबुल उनके हाथ आ गया। उत्तम व्यवहार किया गया। इसको १२०००० याकूबखाँ अंग्रेजोकी शरण में आया और वह पौण्ड सर जॉन लारेन्सके समय में ही निश्चित भारत भेज दिया गया । इस समय अफगानिस्तान हुआ था। उसमेंका जो भाग अब तक इसको की दशा अत्यन्त शोचनीय हो रही थी। नहीं दिया गया था वह दे दिया गया। इसकी अब्दुलरहमानका राज्यारोहण तथा उसका शासनकाल- सेना तथा शस्त्रसे पूरी पूरी सहायता की गई । अमीर शेरअलीके बड़े भाई का पुत्र अब्दुलरहमान आधुनिक अफगानिस्तान तथा अफगानी तुर्की- शेरअलीके विरुद्ध लड़ा था। इसी कारण वह स्तान भरमें इसका शासन था। रूसियोंके हाथ दस वर्ष तक आक्सस नदी के पार इधर सन् १८७३ ई. मैं रूसियों ने खीवा ! बन्दी रह चुका था। १८० ई० में वहाँसे लेलिया। इसपर अमीर ने अंग्रेजों से सहायता कारा पाकर वह स्वदेश लोटा और धीरे धीरे करने को कहा किन्तु ठीक ठीक सहायता न प्राप्त उत्तरी भागमें वह अपनी सत्ता स्थापित करने होनेसे वह क्रुद्ध होगया और रूसियोसे मित्रता लगा। इस समय भारतमें लार्ड लिटन वाइस- करने का निश्चय किया। १८७२ ई० में अफगान राय थे। इनके आज्ञानुसार काबुलके अधिकारी के वायव्य दिशाको सीमा रूस तथा अंग्रेजोंने ने इससे मिलकर सन्धि का प्रस्ताव किया। बड़े निश्चित की थी, और रूसी सरहदपर अपना कौशलसे अंग्रेजोने उसे पर-राष्ट्रोंसे सम्बन्ध राज्य बढ़ा रहे थे। इससे अंग्रेजोंको बड़ी चिन्ता | विच्छेद करनेको वाध्य किया। इसके फल स्वरूप हो रही थी और उन्होंने अमीरसे सन्धि करनेका उन्होंने उसे अफगानिस्तान का 'अमीर' मानना प्रयत्न किया किन्तु अमीरने उसपर तनिक भी स्वीकार कर लिया। काबुलसे कन्दहार तक का ध्यान नहीं दिया। यहीं से द्वितीय अफगान युद्ध | प्रान्त अभी स्वाधीन ही रक्खा गया और उसका की नींव पड़ी। १८७८ ई० में रूसी सरकार शासक शेरअली नामक एक सरदार नियत किया कुस्तुनतुनियाँ पर हमला करना चाहती थी तथा गया। अब यह आशा होने लगी थी कि अफगा- उनके राजदूत कावुल तक आते जाते थे। जब निस्तानमै शान्ति विराजने लगेगी, किन्तु १८८०ई० यह समाचार भारत में अंग्रेजोंको विदित हुआ तो में शेर अलीके पुत्र अयूबखाँने फिर सिर उठाया। उन्होंने अपना राजदूत अमीरके पास भेजने का वह हेरात से निकल कर कन्दहार पर चढ़ दौड़ा निश्चय किया किन्तु इनका राजदूत सरहद पर ही और कावुल पर आकर उसने घेरा डाला। सर से लौटा दिया गया। इस कारणसे भारतके | क्रेडरिकने उसे शीव ही परास्त किया। अब शेर- गवर्नर जनरलने अमीरके विरुद्ध युद्धको घोषणा | अली भारत भेज दिया गया और कन्दहार अमीर कर दी । डोनल्ड स्टुअर्ट के आधिपत्यमें अंग्रेजोंने को सौंपा गया। किन्तु जब अयूब खाँको विदित कन्दहार पर शीघ्र ही विजय प्राप्त करली । दूसरी हुआ कि अग्रेजी सेनोने कूच कर दिया है तो एक सेनाने जलालाबाद इत्यादिके बहुतसे किले अपने बार उसने फिर सिर उठाया। किन्तु अमीरने आधीन कर लिये। अंग्रेजोकी एक सेना सर उसे शीवही पूर्ण रूपसे परास्त कर डाला और फ्रेड्रिक रावर्टसके आधिपत्यमै पैवार कोटालमें वह ईरानको ओर भाग गया। अमारका मुकाबला कर रही थी। अन्तमे अमीर सन् १८८० ई०से आगामी दस वर्ष अमीरको हार कर उत्तर की ओर भागा। १८७६ ई० में अपनी सत्ता स्थापित करने तथा देशमें पूर्ण शान्ति वह मजारे शरीफमें पहुँचकर मर गया। इसकी स्थापित करनेमें ही लग गये। बीच बीचमें मृत्युसे राज्याधिकारीके विषयमें फिरसे प्रश्न अमीरके विरुद्ध अनेक विद्रोह रचे गये। इसके उठा । पोलिटिकल एजन्ट मेजर कव्हनीको चचेरे भाई इसहाक खाँ ने भी बहुत सिर उठाया सूचित करके याकूबखाँ गद्दी पर बैठ गया। इसने किन्तु अमीरने बड़ी कठोरतासे सबका दमन अंग्नेजोसे एक सन्धि की। इस सन्धिके श्राधार किया। इसी बीचमे १८८४ ई० में अंग्रेज तथा