पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ)३०४ अफगानिस्तान का बारम्बार थाना इसके लिये बड़ी कठिन | करनेके लिये एक अफगानी फौजने कुछ भी कर समस्या होरही थी। इस अवसर पर इसने भी दिया किन्तु अंग्रेजी फौजके सामने ठहर न सकी। बड़ी कुटनीतिसे सब काौँको सुचारु रूपले | उसे पीछे हटना पड़ा। अंग्रेजोंने भी आगे बढ़ किया। गुप्त रूपसे अँग्रेजोंको बराबर श्राश्वासन कर डक्का और स्पिनबदलकका किला जीत लिया। देता रहा तथा निश्चय कराता रहा कि उसकी | अवतो अमीरको चिन्ता होने लगी और सन्धि हार्दिक सहानुभूति उन्हीके साथ है, किन्तु दिखाने की बातचीत चलाई। -वी अगस्तको रावल- के लिये जर्मन इत्यादि देशोके राजदुतोका भी | पिण्डीमें एक अस्थायीं ( तात्कालिक ) सन्धि-पत्र अच्छा स्वागत किया। उन दलोको देशमें रहने भी | लिखा गया, जिसके आधार पर युद्ध तत्काल ही दिया किन्तु उनपर बड़ी सतर्क दृष्टि रखता था। बन्द हो गया। स्थायी सन्धि सुविधाके साथ अन्तमें जब उसे अपने देशवासियों अथवा उन्हींसे | होना निश्चित हुआ। १६१६ ई० के मई मासमें कोई विशेष भय नहीं रह गया तो बड़ी बुद्धिमानी अगस्त तक सीमाप्रान्तमें बराबर हमले तथा लूट- से धीरे धीरे उन्हें अपने देशके बाहर कर दिया। पाट होती रही। इस सन्धिके बाद ६ मास तक निःसन्देह महायुद्ध के समय उसको नीति प्रशंस- कोई भी बात ठीक ठीक निश्चित न हो सकी। नीय रही। युद्ध में स्वयं न तो शामिल हुआ और १६२० ई० के गर्मीमें मसूरीमै अफगान प्रतिनिधियों न किसीसे भी शत्रुता ही मोल ली और वास्तवमें | तथा सर हेनरी डॉदस में ६ मास तक मन्धिकी विजेताका हो साथ दिया। इस युद्ध के बाद अपने बात चीत होती रही। यद्यपि वे निजो तौर पर देश ही में नहीं किन्तु सारे मध्य एशिया में उसका ही होती रहीं किन्तु अन्तमें उससे समझौतेकी सिक्का जम गया था। जिस समय वह उन्नतिके | सूरत निकल पाई। इसीके श्राधार पर १६२१ शिखर पर पहुँच रहा था तथा युद्ध के समाप्त हो | ई० के जनवरी मासमें भारत सरकारको श्रोरसे जानेसे अनेक सुधारकी धुनमें लगा हुआ था कुछ प्रतिनिधि स्थायी सन्धिके लिये भेजे गये ऐसे ही अनुपयुक्त अवसर पर (२०वीं फरवरी | काबुल पहुँच कर एक सन्धिपत्र लिखा गया। इस १६१६ ई० को) रात्रिको सोते हुए उसकी हत्या सन्धिके श्राधार पर ही अफगानिस्तानको स्वदे- कर डाली गई। शौय तथा परदेशीय विषयों पर पूर्ण खतन्त्रता - इसकी मृत्युसे देश में फिर अशान्ति मच गई। प्राप्त हो गई। अब तक जो परराष्ट्रीय विषयक उसके भाई नसरूल्लाखाँने अपनेको जलालाबादमें दृटिश नियन्त्रण था वह हटा लिया गया । अमीर घोषित कर दिया । किन्तु अफगानी उसको भारत सरकार जो वार्षिक कर देती थी वह भी राजा मानने को तय्यार नहीं हुए। उसका तृतीय | बन्द कर दिया गया। अब तक भारतसे युद्ध- पुत्र अमानुल्लाह खाँ इस समय काबुल में था। सामग्री खरीदने का जो अधिकार अफगानिस्तान खजाने तथा शस्त्रागार पर उसी का प्रभुत्व था। को दे रक्खा था उसको भी स्थगित कर दिया गया। जनता भी उसीके साथ थी। अतः उसीको इधर १४२० ई० के जनवरी में सोवियट सर- अमीर बनाया गया जय नसरुल्लाने देखा कि कारने अपना कमीशन कावुल भेजा और उसी सफलताकी कोई आशा नहीं है तो वह भी उसके साल अक्तूबर मासमें सोवियट सरकार द्वारा शरणमें अामया। अतः अन्तमें अमानुल्लाह ही | हस्ताक्षर किया हुआ एक सन्धिपत्र अमीरके पास राज्याधिकारी हुआ। आया। यह १४२१ ई० के नवम्बर मास तक पहले अमानुल्लाखाँने भारत सरकारसे मित्रता | प्रकाशित नहीं हुआ था। इसीके आधार पर रखने का ही आश्वासन दिया, किन्तु शीघ्र ही सोवियट सरकारने अफगानिस्तान को वार्षिक उसके विचार बदल गये। पूर्ण खतन्त्रताकी | कर और योग्य अधिकारी देना खोकार किया घोषणा करके उसने सोवियट (Soviet) सर था। उधर १९२० ई. के नवम्बरमें तुर्की जनरल कारसे मित्रता स्थापित करनेके लिये अपना एक कमालपाशा भी अफगानिस्तान आया था। अतः कमीशन मास्को भेजा। केवल इतने ही से वह इन सब कारणोंसे अफगानिस्तानमै दो वर्ष तक सन्तुष्ट नहीं हुआ। भारत, मेसोपोटामिया | विविध प्रकारके आन्दोलन होते रहे। इत्यादि स्थानोमें अंग्रेजोंके विरुद्ध अनेक झूठी यो तो युरोपीय महासमरके बादसे भारत झूठी किबदन्तियाँ उड़ाना प्रारम्भ कर दी और सरकार तथा अफगानिस्तान का पारस्परिक साथ ही साथ भारत पर आक्रमण करने का भी व्यवहार उत्तम तथा सन्तोषजनक ही रहा है निश्चय किया। १९१४ ई० में भारत पर आक्रमण किन्तु बीच-बीच में थोड़ा बहुत झंझट अनेक बार