पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३३

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। अकोला ज्ञानकोश (अ)२३ अकोला है। जी० आई० पी० रेलवेकी भुसावल नागपुर | ई० में शहरके सामने गाज़ीखाँ पिंडारीको भोंसला लाईन इस ताल्लुकेसे होकर जाती है। ताल्लुकेके के सेनापति ने हराया था। यहाँ एक किला था अन्दर अकोला, बलखेड़, बोरगाँव और काटौँ पर १८७० के लगभग वह गिरा दिया गया । पूर्णा स्टेशन है। ताल्लुके भरमै १४ स्थानों में १८१७ ई० में जनरल डेवटनने नागपूर को जीतने बाजार लगते हैं। के पहले कुछ दिनों तक यहीं डेरा जमाया था। अकोला शहर---यह अकोला जिलेका मुख्य १८३३ में एक भयंकर बाढ़ आई थी। स्थान है। उ० ० २०४३', पू० दे० ७७०४ । शहर से छः मीलपर कान्हेरी गाँव है। कहते समुद्र-तल से यह ६२५. फुट ऊँचा है। पूर्णाकी हैं इसी गाँव के अकोलासिंह द्वारा इस नगरकी सहायक मोर्णा नदी इसी शहरमें होकर बहती है। नींव पड़ी। एक दंत कथा और भी है। यहाँ पश्चिमी तीरपर जो भाग है उसे शहर कहते हैं। पहले जंगल था। महादेवजी के एक मंदिर के शहर के चारों ओर दीवाल है। पूर्वी तीरके भाग अलावा कोई इमारत न थी। अकोलासिंहकी स्त्री को 'ताजनापेठ' कहते हैं। पहले नदीकी बाढ़ : इसी शिवमंदिर में दर्शनों के लिये अकेली जाया गेकने के लिये मुसलमानोंने दोनों किनारों पर करती थी। अकोलासिंहको उसपर संदेह हुश्रा । जुम्मा मसजिद बनवाई थीं। सन् १८७३ में एक दिन उसने नंगी तलवार लेकर उसका पीछा नदीपर एक पक्का पुल बन गया। जी० श्राई० | किया। जब उसने देखा कि उसकी स्त्री मंदिर में पीक रेलवे की भुसावल-नागपुर शाखामें यह एक दशनोंके लिये जाया करती है, तो वह अपनी रक्षा स्टेशन है। यहाँ सब गाड़ियाँ ठहरती हैं। म्युनि- के लिये शिवजीकी प्रार्थना करने लगा। उसने देखा सपैलिटी का क्षेत्रफल १६७४ पकड़ है । १८६७ ई० कि मूर्ति बीच से फट गयी और उसकी स्त्री में इसकी जनसंख्या बारह हजार थी; श्राजकल उसमें समा गयी। वह मूर्ति के पास गया, पर लगभग तीस हजार के है। बगर प्रांतमें यह | साड़ीके आँचल के सिवा उसे कुछ भी न दुसरे दर्जे का शहर है। पानीका काम कुत्रों से मिला। मूर्ति के बाहर वह साड़ी बहुत वर्षों तक चलता है। मोर्णा नदीम भी दो जगह बाँध दिखाई देती रही। अकोलासिंहने अपनी स्त्रीके बैंधवाये गए हैं। कापसी स्थानमै तालाब बनवा लिये बहुत शोक किया। जहाँ उसे अपनी स्त्रीका कर कल द्वारा पानी शहर में पहुँचाया जाता है। अंतिम दर्शन हुआ था वहीं वह रहने लगा। शहरमें पक सरकारीबाग, कचहरियाँ, वाचनालय ! उसने वहाँ मिट्टीकी एक गढ़ी बनवाई। कहा गिरिजाघर, धर्मशाला श्रादि हैं। यहाँ श्रीरामका जाता है उसी स्थानपर आजकल किला है। मन्दिर और नाटकगृह भी हैं । इमारतें बहुत अच्छी अकोला ताल्लुका-बम्बई इलाका-अहमद- नहीं है । कपास का रोजगार होता है। पहले सट्टे नगर जिलेका एक तालुका। उ० अ० १६१६ से का बाजार भी गर्म था। रूईसे बिनोले अलग करने १६४५' पू० दे० ७३ ३७ से ७४' तक। क्षेत्र- के ३० से ज्यादा कारखाने हैं और रूई धानेके फल लगभग ५७२ वर्ग मील । जनसंख्या कारखाने भी बहुत हैं। तेल की दो मिलें हैं।। ७५००० । सन् १६०२-०४ में कृषि-करसे श्राम- एक कपड़े की मिल है। शगव का एक प्रसिद्ध | दनी पक लाख रुपया और दूसरे करों से कारखाना यहीं है। सात हजार रुपया हुई थी। गर्मी अधिक पड़ती है, पर राते हमेशा ठंढी मूला नदियों के पास पसका प्रदेश इसी ताल्लुके होती है। जानू नामक धनी चमारका बनवाया के अंतर्गत है। जमीन सूखी और ऊँची नीची हुश्रा एक छात्रावास चमार-विद्यार्थियों के लिये है। है। सह्याद्रि पर्वतके कारण पश्चिमी भागमे २०० दहीदाँडा दरवाजे पर एक शिलालेख हि० सं० से २५० इंच तक वर्षा हो जाती है, पर पूर्वी भाग २०१४ ( १६६७ ई० ) का है। उसमें लिखा ! में औसत २२ इंच वर्षा होती है। १९१८ से एक है.--"औरंगजेब बादशाह था और ख्वाजा अब्दुल मुसलमान तहसीलदार ने सेनामे रंगरूट भर्ती लतीफके समय नवाब असदखाँ एक जागीरदार करने के लिये बड़ा जुल्म मचा रखा था। नतीजा था"। 'ईदगाह' में भी एक शिलालेख है। उसपर यह हुश्रा कि तहसीलदार जिंदा जला दिया गया। यो लिखा हुआ है-"हि० सं १९१६ में ख्वाजा | इसी कारण इस ताल्लुके को लोग जान सके । श्रब्दुल लतीफने यह इमारत तैयार की।" यहाँ मराठोके जमाने में इसी परगनेका ढोकरीगाँव निजाम और मराठोके बीच युद्ध हुआ था। चिंतो विट्टलको इनाम में मिला था। हुआ, ठीक समयका पता नहीं चलता। १७६० • [राजवाड़े.--१२-३३०-२०८] प्रवरा और कब