पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३३०

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) ३०७ अफगानिस्तान पास न तो धन था, न बुद्धि थी न अनुभव था. | अमानुल्लाखाँके उठाये हुए सुधारोंका धीरे धीरे न थे सच्चे साथी ही। इससे शासनकी बागडोर | इसने भी प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया था सम्हल न सको। बारधार अाक्रमण होते रहे। किन्तु इस कामको यह बड़ी सावधानीसे कर जो भारतीय अथवा अंग्रेज सरहद अथवा अफ. रहा था। मुल्लाओंको साथ लिये हुए इसने गानिस्तानमें थे उनके रक्षाके लिये भारतसे अनेक सुधारों का प्रचार प्रारम्भ किया था। इसके समयमें हवाई जहाज भेजे गये। वे सब कुशलतासे देश | देशने अच्छी उन्नति की । योरपमें बहुत दिनों तक में लौट आये। इधर नादिरखाँ जो अमीर ही के रहने के कारण इसे वहाँका भी अच्छा शान था। वंशका था तथा जिसे संसारका बड़ा अच्छा शान! अतः इसने अच्छी सफलता प्राप्तकी थी। भारत था, बच्चा-ए-सक्काके मुकाबले आडटा। कई बार सरकार भी इसकी आवश्यकतानुसार सहायता युद्ध हुए। कभी तो नादिरकी विजय देख पड़ती | करनेको तत्पर थी। गतवर्ष अपने राज्यके एक थी कभी बञ्चा-ए-सकाके सिर विजयका सेहरा प्रतिष्ठित मनुष्यको राज्यके विरुद्ध षड्यन्त्र करने के देख पड़ता था। दोनों हो का भाग्य अनिश्चित् अभियोगमै इसने बध करवाडाला था। उसके सा होरहा था। एक बार तो नादिरखाँने सब साथ ही अन्य अभियुक्तोंको भी इसने मरवाडाला आशा छोड़ दी। विजय बच्चा-ए-सक्काके साथ था। यद्यपि देशके हित, धर्म तथा कर्तव्यपालन देख पड़ने लगी। किन्तु एकाएकी नादिरखाँ के | की दृष्टिसे उसका कार्य उचित हो थो किन्तु वही भाग्यने पलटा खाया। सरहदके इस पारसे उसके नाशका कारण हुआ। जैसा अन्धकारमय वजीरोकी एक फौज नादिरखाँको सहायताके लिये तथा हत्याऔसे परिपूर्ण अफगानिस्तानका गत पहुँच गई। यद्यपि इनका हार्दिक तात्पर्य तो इतिहास रहा है, उसीका फिरसे अनुसरण हुआ। केवल लूटका माल ही प्राप्त करना था, किन्तु जो कितने ही गत अमीरोंके भाग्यका विधान हुश्रा नादिरखाँके. नाम पर इन्होंने काबुल पर हमला था वही दशा इसकी भी हुई। बौं नवम्बर करके उसे जीत लिया। इस भाँति नादिरखाँ १६३३ ई० को इनके ही सभापतित्वमें दिलकुशा विजयी हुआ। कुछ ही समयके बाद. अफगानों महलके मैदानमें पारितोषिक बाँटने के लिये एक की ही अनुमतिसे बच्चा-ए-सक्काका बध कर डाला | सभा होनेवाली थी। इसमें राज्यके उच्च उच्च गया। उसके साथ साथ अन्य राजद्रोहियोंकों भी कर्मचारियों तथा पदाधिकारियोंके साथ ही साथ मारडाला गया। साल समाप्त होते होते नादिरखाँ बहुतसे उच्च श्रेणीके विद्यार्थी भी थे। लगभग सम्पूर्ण अफगानिस्तानका पूर्णरूपसे स्वामी बन तोन बजे सार्यकालको जब यह सभामै उपस्थित बैठा। १६वीं अक्तूबर १९२६ ई० को इसका हुए तो एक ओरसे इनपर पिस्तौलकी दनादन राज्याभिषेक हुआ। उसने अपने परिबारको तीन गोलियाँ छूटी। अमीर वहींपर लड़खड़ा योरप भेज दिया और जमकर राज्यके कार्यमें लग कर गिर गया। तत्काल ही उछलकर उसका गया। खैबरके समीप शिनधरियोने १६३० ई०के प्रिय पुत्र, पिता तथा घातकके बीचमै श्राडा । फरवरी मासमें एक बार फिर सिर उठाया, किन्तु अमीरको शीघ्र ही महलमें पहुँचाया गया किन्तु नादिरखाँने बड़ी तत्परतासे उनका दमन कर गोलीकी चोट घातक थी। दस मिनट के भीतर दिया। कोह ए दमाँ जो बच्चा-ए-सक्काका प्रान्त ही अपने परिवारके मध्यमे उसके प्राणपखेरू था, वहाँपर फिरसे विद्रोहको भयंकर अग्नि प्रज्व- उड़ गये। लित हो उठी। किन्तु बड़े साहस तथा कौशलसे इसका हत्यारा अब्दुलखलीक नग्मक बाइस नादिर खाँने यहाँ भी शान्ति स्थापित की। अब वर्षका एक नवयुवक है। हत्या करनेके बाद इसके अमीर होने में कोई भी सन्देहका स्थान वह तत्काल ही पकड़ लिया गया। गत वर्ष नहीं रहा, और बिना किसी अड़चनके वह राज्य राज्यके विरुद्ध गुलाम नबी वाले षड्यन्त्रमें यह करने लगा। उसने फौजकी देखरेख प्रारम्भ भी अपने पिताके साथ पकड़ा गया था। किन्तु कर दी। भारतकी ओर भी उसका मित्रताका फुटबालका बड़ा उत्तम खिलाड़ी होने के कारण ही भाव रहा। १६३० ई० की गर्मी में भारतमै तथा इसकी युवावस्था पर तरस खाकर अमीरने जो असहयोगका अान्दोलन उठा हुआ था, उसमें इसे छोड़ दिया था, किन्तु अपने स्वामो तथा इसने अपने सरहद पर रहनेवालोको अँग्रेजोंके पिताका बदला चुकानेके लिये यह उसी समयसे विरुद्ध उभड़नेसे रोकनेमें बराबर सहायता दी अवसर हूँढ रहा था। पकड़े जाने पर इसने थी। ब्यापारके लिये इसने अनेक सुविधाये की। अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या .