पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३३२

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) ३०६ अफगानिस्तान सूबेदार नियत किये हुए हैं। इन सूबोके शासन वाला कर। इसके अतिरिक्त अव तो और भी का पूर्ण भार इन्हीं लोगों पर होता है। इन अनेक प्रकारके कर लगाकर आमदनी बढ़ानेका सूबेदारोंके आधीन अनेक कर्मचारी होते हैं, जो प्रयत्न किया जारहा है। किसी समय भारत भिन्न भिन्न विभागोकी देखरेख करते हैं। काजी ! सरकारको श्रोरसे १८ लाख कर प्रतिवर्ष दिया न्याय करते हैं। कौन्सिल अथवा राजदरबार में | जाता था । सन् १८५६ ईमें राज्यकी आय केवल: तीन श्रेणीके सभासद होते हैं:-(१) सरदार, तीस लाख रुपया थी । इस समय पहलेसे आम- (२) खाँ तथा (३) मुल्ला। सरदारी वंश पर- दनी बहुत बढ़ गई है। लगभग १३० लाखसे भी म्परासे चली आती है. अथवा अमीर द्वारा किसी अधिककी होगी। सरकारी व्यय बहुत अधिक नहीं विशेष कार्यसम्पादनके उपलक्षमें प्रदान की जाती रक्खा गया है। जमीनका लगान उसकी उपज है। मुल्ला धर्मके प्रतिनिधि होते हैं। धार्मिक | में से ही देना पड़ता है। यह लगान सालभर कार्यों में इनसे सहायता ली जाती है। खाँ जनता की श्राय देखकर ही निश्चित की जाती है। के प्रतिनिधि होते हैं। कौन्सिल दो प्रकार की सिंचाईकी सुविधाको देखकर ही लगान लगायी होती हैं। एकको तो दरबार शाही कहते हैं। जाती है। जहाँपर सिंचाई के लिये नदियाँ हैं वहाँ. इसमें केवल चुने हुए लोग रहते हैं। प्रत्येक भाग कर लगा दिया गया है।, जहाँ सिंचाई में उसमें भाग नहीं ले सकता। दूसरी साधारण कठिनाई होती है तथा भरने इत्यादिसे सिंचाईकी सभा होती है। इसके अतिरिक्त एक और सभा जाती है वहाँ भाग कर रक्खा गया है। वर्षा होती है। उसे ये 'खिल्वात' कहते हैं। इसमें से स्वींची जानेवाली जमीनों पर भाग लगान केवल बड़े बड़े पदाधिकारी रहते हैं। उसको निश्चित किया गया है वह जमीन जो गैर-सर- प्रधान मण्डल कह सकते हैं। इसमें अमीर कारी नहरों द्वारा सींची जाती हैं उसपर भी। प्रत्येक विभागके मन्त्रिसे उसके कार्यके विषयमें भाग लिया जाता है। बड़े बड़े नगरोंके समीप सलाह लेता हैं । बिना अमीरको इच्छाके सम्मति | बाग तथा उपवन हैं । उनपर प्रति ३६०० वर्ग गज प्रकट करनेका अधिकार किसीको भी नहीं होता। जमीन पर लगभग 8) के कर देना पड़ता है। प्रत्येक मन्त्रि केवल अपने विभाग के विषय में | लगान वसूलीमें मध्यस्थ अलग ही लाभ उठाना सम्मति सकता है ! दूसरे विभागोके कार्य में | चाहते हैं जिस कारणसे किसानोको बड़ा कष्ट हस्ताक्षेप करना अथवा अपनी सम्मति प्रकट होता है। करना उनके अधिकारके बाहरको बात है। अमीर देशमे सोनेका सिक्का प्रचलित नहीं है । कुछ सब विभागोंका सबसे प्रधान समझा जाता है। काल पूर्व एक टकसाल सरकारी खुली है । उसमें उसको सब विषयोमै पूर्ण अधिकार है। उसके पुराने सिक्केको लेकर नया ढाल देती है। इस पास किसी भी विषयकी अपील की जा सकती विभागमें अभी अनेक सुधारोकी आवश्यकता है। है। अमीरका ही निश्चय अन्तिम होता है। अफगानिस्तानमें पहले तो सेनाका प्रबन्धः पंचायतें तथा कानी इत्यादि भी न्याय सम्पादन बड़ा खराब था। अमीरके पास बहुत कम सेनाः के लिये होते हैं। राजनैतिक, चुङ्गी, डाक, सेना, रहती थी। प्रत्येक सूबेदारको सेना रखनी पड़ती कर इत्यादि अनेक अलग अलग विभाग हैं। थो। इसका व्यय उसे स्वयं ही करना पड़ता था।' इस्लाम धर्मके आधार पर ही यहाँ के कानून बने | श्रावश्यकता पड़ने पर वही अमीरकी सहायताको हुए हैं। किसी समय अमीर केवल काबुल तथा भेज दी जाती थी। किन्तु इधर कुछ गत वर्षों उसके समीपके प्रान्तोका ही स्वामी समझा जाता | से यह प्रथा उठा दी गई है। अमीरके कोशसे था। अन्य अन्य प्रान्तोंके सूवेदार राजघरानेके . ही उन्हें वेतन दिया जाता है और वे सब अमीर होते थे और वे स्वतन्त्र समझे जाते थे, किन्तु यह के ही संरक्षणमे रहती है। पहले से अाजकल सेना प्रथा अब्दुल-रहमानने उठा दी। राज्यके मुख्य बढ़ा भी बहुत ली है। अब तो अमीरको सेना मुख्य दफ्तर इत्यादि काबुल हो में हैं। युरोपियन पद्धति के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर रही यहाँकी श्राय निम्नलिखित करों द्वारा होती है, शस्त्र इत्यादि भी पर्याप्त हैं। अमानुल्लाखाँने है-(१) भूकर (२) आने तथा जानेवाले माल इस ओर विशेष ध्यान दिया था। पर चुंगी, (३) ४० जानवरोकी चराई पर १ अफगानी फौज लगभग ५०००० के होगी। जानवर (४) बगीचों पर कर (५) दस्तावेज | ये हेरात, कन्दहार, काबुल, मजारशरीफ जलाला- इत्यादि पर टिकट (६) प्रत्येक व्यक्ति पर लगने- बाद तथा भारतके सीमाप्रान्त पर ही अधिक