पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३३६

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अफजलखाँ ज्ञानकोश (अ)३१३ अफजलखाँ भविष्यमें खुदाई करने पर अनेक लाभकारी घस्तु शत्रुताका कारण था। अफजलखाँ की गणना प्राप्त हो सकेगी। उस समयके सर्वश्रेष्ठ वीर तथा योद्धाओंमें की अफजलखाँ-इसका पूरा नाम अब्दुल्ला | जाती थी। सैनिक कार्यों में उसकी अच्छी ख्याति : भटारी अफजलखाँ था। कुछ इतिहासकारों | थी। वह बहलोलखाँ तथा रणदृल्हाखाँ इत्यादि का मत है कि वह आदिलशाहका दासीपुत्र होगा। प्रसिद्ध वीर सरदारोंकी कोटि में गिना जाने लगा क्दाचित यह अनुमान बाँई नगर में मिलने वाले था। १६५७ ई० में जब दक्षिणमें औरङ्गजेबने फरमानके ही आधार पर होगा। किन्तु किंकेड | बीजापुर पर चढ़ाई की थी, उस समय उससे तथा पारसनीसके इतिहासमें कहा गया है कि युद्ध करने के लिये जिन दो प्रसिद्ध सरदारोंको वह आदिलशाहके सालेका पुत्र था। ऐसा अनु- चुना गया था उनमेसे एक यह भी था। इस मान किया जाता है कि इसका पिता कदाचित् युद्धमै इसकी वीरता तथा वुद्धिका सिक्का सब शाही बावर्ची खानेका दारोगा था। इसी कारण पर जम गया था। इसने बड़े कौशलसे औरङ्ग- से इसके नामके आगे यह उपाधि लगा दी गई | जेबका सामना किया था। अभाग्यसे उसी समय होगी। यह अत्यन्त हृष्टपुष्ट और बलिष्ट था। औरङ्गजेबको अपने पिताकी बीमारीका समाचार इसका भाग्य मुहम्मद आदिलशाह के समयमै प्राप्त हुना। अतः बिना युद्धका कुछ। निर्णय चमक उठा। उसके अन्तिम समयमें ही प्रथम ही वह उत्तरकी ओर लौट गया था। वहाँ कोटिके सरदारोंमें इसकी गणना की जाने लगी जाकर तो वह समयके फेरसे देहलीका सम्राट थी। १६४४ ई० में रणदूल्हाखाँ की मृत्यु हो बन बैठा था। गई। अब तक रणदूल्हा बांईका सूबेदार था। इसी समय शिवाजी भी धीरे धीरे देश पर उसकी मृत्यु के पश्चात् बांई की सुबेदारी इसके देश जीतता हुआ अपनी शक्ति बढ़ा रहा था। हाथ आई, और उसकी मृत्यु पर्यन्त यह उसीके | बोई प्रान्तमें शिवाजी का कार्य बड़े अच्छे रूपमें हाथमें रही। अपने समकालीन मुसलमानोंकी चल रहा था। ईर्षा तथा द्वेषके वश यह समा- भाँति इसका भी व्यवहार हिन्दुओं तथा उनके चार अफजलखाँ ने मुगल दरबारमें पहुंचाया। देवमन्दिरों के प्रति अन्यन्त कठोरता तथा वर्बरता शिवाजी के पराक्रमका समाचार देहली यो भी का था। अफजलखाँ को आज्ञानुसार निम्बके पहुँच चुका था। अतः इस प्रश्न पर विचार हिन्दूमठोले बड़ी कठोरताके साथ कर वसूल करनेके लिये देहली दरबार में सबलोग एकवित किया जाता था। उनके ऊपर और भी अनेक किये गये। बहुत वादा-विवाद होता रहा । उस अत्याचार किये जाते थे। उस समयके कुछ पत्र समय अफजलखाँ भी राजदरबार में उपस्थित मिलते हैं। उनके आधार पर यह कहा जा था। उसको अपने बल तथा शक्ति पर बड़ा सकता है कि शिवाजी तथा अफजलखाँ दोनों ही घमण्ड था। उसने सम्राटसे प्रार्थना की कि तत्कालीन देशमुखपाँडेको अपनी अपनी ओर शिवाजी को परास्त करने में वह पूर्ण समर्थ है । मिलानेका प्रयत्न कर रहे थे। बीजापुर वालोने यदि सम्राटकी आज्ञा हो तो उसे वह जीवित ही कर्नाटकका कनकगिरि नामक किला शाहजी को पकड़ सकता है, अथवा युद्धमै उसे परास्त करके दे दिया था । अफजल खाँ ने मुस्तफाखाँको मार सकता है। सम्राटकी आज्ञा पाकर वह बहुत बहकाया तथा शाहजीके बिरुद्ध कहा सुना। शिवाजी को परास्त करने की इच्छासे बीजापुर इसका फल यह हुआ कि मुस्तफाखाँ ने वह किला की ओर चला। ग्रान्डडफके मतानुसार वह फिरसे ले लिया। अफजलखाँने प्रत्यक्ष रूपसे ५००० सवार, १२००० पैदल सैनिक तथो अनेक भी मुस्तफाखाँ की इस कार्यमें सहायता दी थी। तोपों इत्यादिसे सुसज्जित होकर १६५६ ई० के १६५३ ई. में आदिलशाहकी कैदसे. शाहजीको सितम्बर मासमें शिवाजी का सामना करने बीजो छुटकारा मिला। इसने छुटकारा पाने पर अपने पुरसे चल पड़ा। किन्तु प्रारम्भ ही से अफजल पुत्र सम्भाजीको मुस्तफाखाँसे कनकगिरी खाँको यह निश्चय नहीं था कि वह खुले मैदानमें वापस लेनेको भेजा। मुस्तफाखाँने बड़ी चालाको युद्ध करके शिवाजी को परास्त कर सकेगा। और विश्वासघात करके उसका बधकर डालो | बीजापुर वालोंको अनुमान था कि शिवाजीके था। इस कारणसे भी वीर शिरोमणि शिवाजी पास बहुत अधिक सेना है। १६५६ ई० के तथा अफजलखाँ में वैमनस्यको गाँठ पड़ चुकी थी अक्तूबर मासमै राजापुर की अंग्रेजी कोठीके. इसके अतिरिक्त औरङ्गजेब भी इन दोनों में एक पत्रसे यह भी पता लगता है कि अफजलखाँ ६०