पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अफजलखाँ ज्ञानकोश (अ) ३१४ अफजलखाँ के फूफाने उसे इस बान के लिये पूर्णरूपसे सचेत जिस समय अफजलखाँ छत्रपति शिवाजी पर कर दिया था कि वह शिवाजी से प्रकट में मित्रता | चढ़ाई करने के विचारसे बढ़ा पा रहा था, उस का हो व्यवहार रक्खे। अवसर आने पर छल समय रोहिडखोरा देखमुख खण्डोजो खोपड़ेने कपटसे उसे परास्त करे। कदाचित् अफजलखाँ विदेशीका भेष बदल कर अफजलखाँसे भेंट की इन सब ध्यान देते हुए शिवाजी से एकदमसे और कहा कि वह शिवाजी को पकड़वा देगा! खुले मैदान में युद्ध नहीं करना चाहता था। इधर शिवाजीका सरदार विश्वासराव नानाजी अपने फूफाकी सलाहके अनुसार ही वह कोई मुसेखोरेकर फकीरके भेष में बराबर अफजलखाँ उपयुक्त अवसरकी ताकमें लगा हुआ था। इन्हीं की छावनी में जाया करता था तथा उसको हरएक सब कारणोसे पहले वह तुलजापुरकी ओर गया। कारवाईका पता रखता था। अतः शिवाजीको कदाचित् उसने निश्चय किया था कि स्थान-स्थान | अफजल की इच्छाका पूरा पूरा पता था। बॉई पर देव-मन्दिरोंको भ्रष्ट करता रहेगा। शिवाजी पहुँच कर अफजलने वहाँके पटवारी कृष्णाजी इससे उत्तेजित होकर उसके सामने स्वयं ही : भास्करको मिलने के लिये अपने पास बुलवाया आ जावेगा। अतः सबसे पहले भवानीके मन्दिर ! और कहा कि वह मित्रभावसे शिवाजीसे मिलने के को भ्रष्ट करनेका उसने निश्चय किया। वहाँके लिये उत्सुक है। कृष्णाजी भास्कर शिवाजीसे पुजारियोको इसके आगमनकी पहले ही से सूचना | मिला और उसने खाँका आदेश शिवाजीसे कह मिल चुकी थी। अतः उन्होंने देवीकी प्रतिमाको सुनाया। उसने अफजलखाँकी ओरसे यह भी अन्यत्र छिपा कर रख दी। इस पर वह बहुत सन्देशा कहा कि अफजलखाँ शिवाजीको बीजापुर हुँझलाया, और एक गौकी हत्या करके उसके | के दरबारसे उसके पूर्व अपराधोंके लिये क्षमा रुधिरको मन्दिरमें सर्वत्र छिड़क कर अपना क्रोध दिलवा देगा और जिस देश पर अब तक उसका शान्त किया। तदनन्तर वह नैऋत्य दिशाकी आधिपत्य है वे सब भी नियमानुसार उसके ओर मुड़ा और पंढरपुरके समीप आ धमका || श्राधीन करा देगा। शिवाजी भी बड़ा भारी जिस भाँति इसने तुलजापुरमें श्राचरण किया था कूटनीतिज्ञ था। उसने भी चटसे अजफलखाँ वैसा ही उसने घृणित कार्य यहाँ भी किया। भीमा से मुलाकात करना स्वीकार कर लिया. किन्तु नदी पार करके उसने पुण्डरीक के मन्दिरमै बाँई तक जानेका उसे साहस नहीं होता अतः यदि प्रवेश किया। वहाँको प्रतिमा इसने उठाकर अफजलखाँ जाबली तक पानेका कष्ट करे तो वह जलमें फेक दी। तदनन्तर वह माणकेश्वर. | भेट करने आ सकता है। करकम, भोसे, शंभुमहादेव, मलवड़ी तथा रहमत कृष्णाजी भास्करको शपथ दिलाकर शिवाजी पुरके मार्गसे होता हुआ तथा अनेक मन्दिरोंको ने पूछा कि अफजलखाँका भीतरी अभिप्राय क्या नष्ट भ्रष्ट करता हुआ बाँई आया। है और क्या वह शिवाजोके साथ छल कपटका हृदयमें चाहे सदा ही डरता हो किन्तु दिख- | व्यवहार नहीं कर रहा है क्योंकि शिवाजीको लानेके लिये अफजलखाँ सदाही शिवाजीको बन्दी पने दूतौ द्वारा ऐसा ही समाचार मिला है बनानेकी डोंग हाँका करता था। बाँई पहुँच कर | कृष्णाजीने भी तब सब हाल कह दिया और कहा उसने एक दिन बातही बातमें एक पिंजड़ा बना | कि अफजलसे बड़ी सतर्कतासे ही मिलना उचित बानेकी आज्ञा दी और कहा कि शिवाजी को है। अफजलखाँ अवश्य कोई न कोई छल करेगा । जीवित ही पकड़ कर बादशाहके सम्मुख . इसी शिवाजीको जब अफजलखाँके नीच विचारोंका पिंजड़ेमें बन्द करके उपस्थित करुंगा। शिवाजो पूर्ण रूपसे विश्वास हो गया तो उसने भी दृढ़ इसके प्रत्येक कार्यका बड़ी सावधानीसे पता निश्चय कर लिया कि वह भी खाँको उसीके लगाये रहते थे। जव शिवाजी राजगढ़में थे बिछाये हुए जालमें फँसाकर नाश करेगा। अतः तभी उन्हें पता चल गया था कि अफजलखाँ उन पणतोजी गोपीनाथ नामक अपने एक नायकको पर चढ़ाई करने आ रहा है। उन्होंने ऐसी शिवाजोने अफजलखाँके पास दूत बनाकर भेजा व्यवस्था कर रक्खी थी कि अफजलखाँ इधर और कहला दिया कि वह खाँसे बड़ी प्रसन्नता उधर ही भटकता रहे और पूना न पहुँच पाये। पूर्वक १५ दिन बाद प्रतापगढ़में भेंट करनेको इस में. उन्हें सफलता भी हुई और वे अवसर प्रस्तुत है, उसी समय समझोतेकी भी बातचीत पाकर पुरन्दरगढ़से प्रतापगढ़ चल दिये। हो जावेगी। - राजबाड़ेने लिखा है ( ख १५, लेख ३०२ ) कि इधर, शिवाजीने अपने आदमियों से जंगल 1