अफजलखाँ ज्ञानकोश ('अं) ३१५ अफजलखाँ कटवाया और अफजलखाँकी सेनाके आने के लिये उसके सेनाके पीछे और अगल बगल अपने लिये प्रतापगढ़ तकका मार्ग साफ करवा दिया। प्रादमियोको तैयार रक्खो, गढ़ परसे सिंघा बजते मानमें भी अफजलको सेनाके लिये रसद इत्यादि ही ये लोग वोजापुरके लोगों पर हमला कर दें। का पूरा-पूरा प्रबन्ध करा दिया तथा हर प्रकारको इसके पश्चात् उन्होंने अपनी प्रजा, सरदार तथा सुविधाका प्रबन्ध कर दिया। किन्तु साथहो | नायकोको इकट्ठा करके कहा कि यदि वह युद्ध मार्गमै शिवाजीके सैकड़ों गुप्तचर छूटे हुए थे काम आवे तो वे लोग संभाजीको गद्दी पर बैठा जिससे खाँ के प्रत्येक कार्यका उन्हें समाचार कर नेताजी पालकर की अनुमतिसे राज्य चलावे । मिलता रहे अन्तमे वह अपनी माताजीसे बिदा मांगने गये। इधर कृष्णाजी भास्कर शिवाजोसे विदा | तदनन्तर वह खाँके साथ मुलाकात करने होकर पणतो जी गोपीनाथको साथ लिये हुए की तैयारी करने लगे। उन्होंने नीचे जिरह अफजलके पास बाँई आया, और शिवाजीका | वख्तर पहना और ऊपर एक अंगरखा पहना और सब सन्देशा कह सुनाया और अपनी ओरसे यह ! सिर पर शिरस्त्राण पहन कर उस पर एक फेटा भो कह दिया कि खाँ के ऐश्वर्य तथा बलसे शिवा बाँध लिया ! बाएँ हाथमें उन्होंने विछुआ धगनहा जी बड़ा भयभीत हो चुका है और वह समझौता | पहना और दाहिने हाथकी आस्तीनमे एक खंजर करने के लिये बड़ा उत्सुक है। अतः खाँको भी | छिपाया। इस प्रकार आत्मरक्षाका पूर( प्रबन्ध कर इस अवसरसे लाभ उठाना चाहिये। प्रतापगढ़ | शिवाजो जिवबा महाल, संभाजी कावजो और जाकर वह शिवाजीसे मिलकर तथा उसे फंसाकर एक तीसरे मनुष्यके साथ गढ़से नीचे उतरने बोजापुर लेकर चल दे। अफजलखाँको यह लगे। इधर अफजलखाँ भी पालकी में बैठकर विचार बहुत पसन्द आया और उसने शिवाजीके गढ़पर चढ़ रहा था। पाद को के साथ कृष्णाजी पाल समाचार भेजवा दिया कि वह शिवाजीसे भास्कर और पोछे अनेक सशस्त्र लोग थे। कृष्णा मित्रभावसे मिलनेको प्रस्तुत और शीघ्र ही जी भास्करने खाँसे कहा कि यदि आप शिवाजी प्रतापगढ़ आकर उससे भेंट करेगा । इधर को पकड़ना चाहते हो तो अपने साथके लोगोंको अफजलखाँको अपने शारीरिक बलका बड़ो घमंड | पीछे ही छोड़ देना उचित होगा। खाँको यह बात था. अतः उसे किसी प्रकारको भी शंका नहीं थी। उचित जान पड़ो और उसने यह बात स्वीकार इसके अनुसार अफजलखाँने बाँईसे अपनी कर ली, और शिवाजी के साथ जितने आदमी थे छावनो उठायो । शिवाजीने जो मार्ग तैयार कर उतने ही आदमी अपने साथ भी लिये। खाँ के रखा था, उससे होते हुए रडतोडीका घाट पार साथ सैयदबन्दा नामक एक मोटा ताजा और कर कोयना खाराम प्रतापगढ़के नीचे पार नामक बहादुर सिपाही था। उसे देख कर शिवजीने एक छोटेसे गाँवमें उसने अपना डेरा जमाया। खाँसे कहला भेजा कि शिवाजीको उस मनुष्यसे गढ़ की दीवारसे करीब चौथाई मोल पर एक भय लगता है, इस लिये खाँ उसे साथ न लावें। स्थान था। वही स्थान मुलाकातके लिये निश्चित | यह वात यदि अफजलको खोकार हो तो वह भी किया गया और दूसरे दिन संध्या समय दोनोंका | अपने साथका एक आदमी कम कर देगें, खाँने वहीं श्राकर मिलना निश्चित हुआ। जिस स्थान यह बात भी स्वीकार कर ली। शिवाजीने भी पर भेंट होना निश्चित हुआ था वहाँ पर शिवाजी | अपने साथका तीसरा आदमी पीछे छोड़ा। खाँ ने एक कोमती झालरका शामियाना खड़ा किया। शामियानेमें आ रहा था। उसका स्वागत करने के वह भली भाँति सजाया हुआ था। नित्यके अनु- | लिये शिवाजी आगे बढ़े वे ऊपरसे देखनेसे निः- सार स्नान भोजनादि करनेके उपरान्त शिवाजी | शस्त्र मालुम देते थे, परन्तु खाँको कमरमै एक दोपहरमें थोड़ी देर सोये, तत्पश्चात् वह भवानी तलवार लटक रही थी। यह देखकर खाँ ने समझा माताके मन्दिरमै गये और वहाँ पर उन्होंने संकट | कि शिवाजो को पकड़नेके लिये यह समय ठीक पड़ने पर सहायता करने के लिये सच्चे हृदयसे प्रार्थना है। उसने शिवाजोसे असभ्यता पूर्वक हंस कर की। फिर उन्होंने तानाजी, मालुसरे, मोरोपंत | पूछा कि तुम गवार देहातो आदमीके पास यह पिंगले और नेताजी पालकर नामक अपने विश्वास शामियाना और उसमें दिखाई पड़ने वाला यह पात्र सरदारोंका बुलाया और कहा कि यदि खाँ सथ ऐश्वर्य कहाँसे आया ? इस पर शिवाजीने ने धोखा देने का प्रयत्न किया हो तो ऐसा प्रबन्ध कुद्ध होकर कहा कि यह सब वैभव अगर हम होना चाहिये कि वह वापस न जा सके। इस लोगोंके पास न रहेगा तो क्या तुम्हारे जैसे भठि-
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