पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३३९

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अफजलखाँ ज्ञानकोश (अं) ३१६ अफजलखाँ वारेके बच्चे के पास रहेगा ? शिवाजीका यह उत्तर में अफलजकी सम्पूर्ण सेना काम आ गई। बड़ी खाँके दिलमें चुभ गया। कठिनतासे अफजलखाँका पुत्र फज़ल मुहम्मद अफजलखाने बाएँ हाथसे शिवाजीका सिर खण्डोजी खोपड़ेकी सहायतासे जान बचाकर अपनी बगलमें जोरसे दबा लिया और दाहिने भाग गया। इसके बाद जब पन्हालगढ़के घेरे में हाथसे तलवार निकाल कर उनके पेट में भौंकनेका से शिवाजी निकल भागे तब इसने उनका पीछा प्रयत्न किया। किन्तु शिवाजी तो पहले ही से करके अपने पिताका बदला लेनेका विचार किया सुरक्षित होकर गये थे। उनके शरीर पर कवच था. किन्तु शिवाजी उसके हाथ न आये। अफज- तथा सिर पर शिरस्त्राण था। इस कारण खाँका लखाँका सिर शिवाजीने गढ़के ऊपर गड़वा दिया प्रयत्न निष्फल रहा और शिवाजीको कोई हानि | था, और वहीं पर एक बुर्ज बनवा दी थी। इस म हुई। खाँ दूसरा वार करनेके लिए अपना बुर्जका नाम "अफजल बुर्ज" रख दिया था। हाथ ऊपर उठा रहा था कि इतने ही में उपयुक्त अफजलखाँकी जो तलवार शिवाजीके हाथ लग अवसर देखकर शिवाजीने बाएँ हाथसे खाँकी गई थी, वह आज दिन भी शिवाजीके वंशजों के कमर कसकर पकड़ ली और उस हाथके विछुए पास सुरक्षित रक्खी हुई है। विजय होनेके बाद को खाँके पेट में घुसेड़ दिया। अफजलको स्वप्नमें अफजलखाँ के डेरेमें से सोने का काम किया हुआ भी ऐसी शंका नहीं थी। इस वेदनासे वह एक अत्यन्त सुन्दर सोनेका खम्भा शिवाजोके चिल्ला उठा। वेदनासे वह हतबुद्धि सा हो गया हाथ लगा था । वह उन्होंने महावालेश्वरके था। शिवाजी का सिर जो उसने कसकर अपने मन्दिमें दे दिया था । यह अभी तक वहाँ घगलमै दवा रक्खा था जरा ढीला पड़ गया। वर्तमान है । शिवाजीने अफजलखाँके शवका शिवाजीने इस अवसरसे पूर्ण लाभ उठाया । पूर्ण संस्कार करा कर बड़े सम्मानके साथ गड़वा उन्होंने झट अपना दाहिना हाथ भी छुड़ा लिया दिया था, और उसी स्थानपर एक का भी और खाँकी पीठमें अपना खंजर भोक दिया। तब बनवा दी थी। अफजलखाँका मकबरा गाँवमें अफजलखाँने दूर हट कर शिवाजीके सिरपर गढ़से उतर कर श्राज तक वर्तमान है। अपनी तलवारका भरपूर वार किया। खाँकी अफजलखाँ अपने समय का बड़ा प्रभावशाली तलवारने शिवाजीका शिरस्त्राण तो अवश्य चूर- व्यक्ति था। वह बीजापुर दरबारका तो एक घूर कर दिया, परन्तु विशेष चोट सिर पर नहीं प्रसिद्ध सरदार था ही, अपने साहस तथा बलके भाई और शिवाजी सुरक्षित ही रहे। जिववा कारण उसका सम्मान मुगल दरबार तकमें यथेष्ट महालकी कमर में दो तलवार लटक रही थीं। था। अतः शिवाजी द्वारा जो उसपर मराठोंने उनमेंसे एक तलवार लेकर शिवाजीने खाँके कंधे विजय प्राप्त की थी, इससे उन्हें बड़ा गौरव था पर वार किया। इस चोटको अफजलखाँ सम्हाल तथा अनेक दन्त कथाओं तथा किंबन्दन्तियों न सका। वह तुरन्त ही नीचे गिर पड़ा और द्वारा इस घटनाको बड़ा महत्व दे डाला है । सहायताके लिये चिल्लाने लगा। खाँकी चिल्लाहट निश्चय पूर्वक तो नहीं कहा जा सकता कि इसमें सुनते ही सैयदबन्दा और खाँके दूसरे नौकर कहाँ तक तथ्यका अंश है किन्तु एक दन्तकथा सहायताके लिये दौड़कर आए। उन्होंने खाँको इस प्रकार है कि अफजल खाँका इस विषयका पालकीमें रखकर किसी तरह भागनेका पूरा यत्न पहले ही से पूर्णाभास हो चुका था कि शिवाजीसे किया, परन्तु शिवाजी और जिवबा महालके युद्ध छिड़ जाने पर उसकी मृत्यु अवश्य होगी। सामनेसे अफजलखाँको ले भागना आसान नहीं ऐसी अवस्थामै उसे यह भी भय था कि उसकी था। इन दोनोंने मिलकर सैयद्वन्देकी पूरी मृत्युके पश्चात् उसकी स्त्रियोंका सतीत्य भ्रष्ट हो खबर ले डाली। शंभाजी कावजी पालकीके | जावेगा। अतः उसने युद्ध पर जानेके पहिले ही पीछे दौड़ता हुआ गया और अफजलखाँका सिर अपनो सब स्त्रियोंका बध कर डाला था। कहा काट ही डाला। इसके बाद शंभाजो कावजीने जाता है कि इसके ६३ स्त्रियाँ थीं, और उन सब सिंघा बजाया। उसकी आवाज सुनते हो चारों को इसने एक पहाड़परसे एक स्वडूमें ढकेलवा ओरके जंगल से मराठोंका दलका दल बाहर दिया था। युद्धमें विजय होने के बाद शिवाजीने निकल आया। खाँ के श्रादमी अभी घोड़ों पर उनके शव वहाँस निकलवा कर उनकी कत्रे बनवा चढ़ने भी न पाये थे कि मराठोंकी सेनाने पहुँच दी थीं। अफजलपुर नामक गाँवके निवासी कर उन लोगों पर छापा मार दिया। इस युद्ध अब तक उन कत्रोके चिन्ह वहाँ बताते हैं। सम्भव