पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३४०

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अफजलगढ़ ज्ञानकोश (अ) ३१७ अफराडीटी है इस कथामें बहुत कुछ अत्युक्ति हो, किन्तु बीचमें स्थित है। यहाँको जनसंख्या लगभग अफजलखाँ के अन्य व्यवहारोंको देखते हुए इतना आठ हजार है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि तो निश्चय पूर्वक कहा ही जा सकता है कि वह १८वीं शताब्दीके मध्यमें अफजलखाँ नामक एक बड़ा कठोर तथा निर्दयी था। व्यक्तिने इस नगरको बसाया था। यह गाँव महाराष्ट्र देशमें अफजलखाँके विषय में और बहुत नीचे एक गड्ढेमें बसा हुआ है। चारों ओर भी अनेक कथायें प्रचलित हैं। जिस समय वह दलदल होने के कारण यहाँकी आवहवा स्वास्थ्यके

  • शिवाजीसे युद्ध करनेके लिये निकला था, उस लिये बड़ी हानिकर है। यहाँको प्राय लगभग

समय बराबर अपशकुन हो रहे थे। बीजापुर १२००) के है। इलका शासन प्रबन्ध १८५६ ई० दरबार में 'फतह लश्कर' नामक एक हाथी था। के २०वे नियम ( Act ) के अनुसार किया जाता उसके विषयमें यह भावना थो कि जिस युद्ध में है। यहाँ एक स्कूल है। यहाँके मुसलमान वह जाता था वहाँ विजय अवश्य होती थी किन्तु | जुलाहे सूती कपड़ा बुनकर तय्यार करते हैं। जब अफजलखाँ युद्धके लिये जानेको था तो उसकी अफराडीटी-जिस भाँति भारतमें अनेक अकस्मात् मृत्यु ही हो गई। जब अभागा अफ- | देवी देवता माने जाते हैं. उसी भाँति यह भी जल काजीसे युद्ध में जाने के लिये विदा माँग पश्चिमीय देशों को एक प्रसिद्ध देवी है। इसका गया तो काजीको अफजलखाँका शरीर बराबर दूसरा नाम बीनस भी है । भिन्न भिन्न पाश्चात्य बिना सिरका ही देख पड़ता रहा। यह भी देशों में इसके भिन्न भिन्न नाम है, तथ. इसके श्रापत्तिसूचक था। इन सबके अतिरिक्त जब विषयमै भिन्न भिन्न कल्पनायें तथा कथाये हैं। शिवाजीसे भेंट करने वह रडतोडीकी घाटीमें से! 'अफराडोटी' नामके अर्थ पर यदि ध्यान दिया जा रहा था, उस समय भी अचानक उसका वह | जाये तो इसकी उत्पत्ति 'समुद्रके फेन' से कह हाथी, जिसपर उसका झण्डा फहरा रहा था, सकते हैं । यदि हेलिअडके वर्णन पर भी ध्यान अड़कर खड़ा हो गया और किसी भाँति आगे दिया जाय तो भी इसकी उत्पत्ति जलसे ही बढ़ता ही नहीं था। इसो भाँति अफजलखाँको सम्बन्ध रखती है। उसके वर्णनके अनुसार यह ऐसी ही अनेक दैविक सूचना मिल रही थीं, सिथिरके चारों ओर के जल में पहले पहले देख जिससे उसकी पराजय निश्चित सी देख पड़ती | पड़ती है, तदन्तर यह साइप्रस द्वीपमें प्रवेश थी। यह तो नहीं कहा जा सकता कि इन सब करती है। का क्या प्रभाव अफजलके हृदय पर पड़ा, किन्तु अफराडोटीके मियमें निम्नलिखित कल्पनायें इतना तो निश्चय ही है कि इन सबके होते हुए बहुत अंश तक निश्चित सी हैं-(१) यूनानके भी वह अपने निश्चय पर दृढ़ था और अन्त तक देवताओं में पहले इसका स्थान नहीं देख पड़ता। उसने आशा तथा साहसको हाथसे जाने नहीं इसके विषयकी अनेक कल्पनाओंका जन्म एशिया दिया । यद्यपि उपरोक्त दन्त-कथाओका ऐति- | में ही देख पड़ता है, क्योंकि जिन भी देवी देव- हासिक दृष्टिसे विशेष कुछ भी महत्व नहीं है, ताओका इसके साथ सम्बन्ध जोड़ा जाता है वे किन्तु इतना तो परिणाम निकाला ही जा सकता सब एशियाके ही हैं। (२) हेरोडेटसके मता- है कि अफजल अपने समयका सामान, पुरुष नहीं नुसार श्रास्कोलनसे इसकी पूजा साइप्रस इत्यादि था और महाराष्ट्र देशमें इसका पर्याप्त प्रभाव था।| स्थानों में फैली है, क्योकि वहाँ ही एक देवीका यह शिवाजीका ही साहस तथा कौशल था कि | सबसे प्राचीन मन्दिर मिलता है। इसीको अफजल ऐसे वीर, धूर्त तथा प्रभावशाली व्यक्ति यूनानवाले 'अझाडीटी युरेनिया' अरव वाले का इतनी सरलतासे नाश कर डाला। 'अलिट्टा' असीरिया वाले 'मिलिट्टा' और फोने- [ संदर्भग्रन्थः-शेड़गाँव का बखर, चिटणीसबरवर, | शियन 'अस्ट्राटे' नाम देकर पूजा करने लगे थे। अफजलखाँका पाँवाड़ा, शिवाजी दिग्विजय, अफजल इसका सम्बन्ध नैसर्गिक सुन्दरता, आकाशके खां का बध ] ग्रह इत्यादि तथा मानव प्रेमसे जोड़ा जाता है। अफजलगढ़-यह संयुक्तप्रान्तमें एक छोटा अर्थात् भारतकी उषादेवोकी भाँति प्रकृति, रतिकी सा गाँव है। यह बिजनौर जिलेकी नगीना | भाँति 'प्रेम' तथा ग्रहोका सञ्चालन इसीके प्रभाव तहसील में है। बिजनौर शहरसे पूर्वकी ओर से होता है । फोनेशियामें इसको सामुद्रिक ३४ मीलकी दूरी पर यह बसा हुआ है। यह व्यापारको भी देवी माना है। बहुत सम्भव है उत्तर अक्षांश २६°२४' और पूर्व रेखांश ७४७ के कि जिस भाँति सभ्यताके अनेक अंश युनान