पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३८

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गोद इस गजासे अक्कलकोट ज्ञानकोश (अ) २८ अकलकोट बची हुई थी। प्रथम माधवराव पेशवाने हैदर | कारण गहीसे उतार दिया गया। वह १८७० में पर जो चढ़ाइयाँ की थीं, उनमें शाहजी को सेना भर गया। मालोजी का एक लड़का था जिसका का भी एक दल रहता था। १७८६ में शाहजी नाम शाहजी था। शाहाजीकी उम्र कम होनेसे का देहान्त हो गया। इसके पीछे उसका पुत्र ! १८६१ तक बृटिश सरकार ही गज्यकी सब फतहसिंह उर्फ बाबा साहब गद्दी पर बैठा। शाह व्यवस्था करती रही; पर उसी साल उसने जी को तुलाजी नामका एक और पुत्र था। : शाहजीको सव अधिकार दे दिय। १८४८ में उसमें और फतहसिंहमें लड़ाई हुई, जिसमें फतह वह निःसंतान भर गया, इसलिये अंग्रेजोंकी सलाह सिंह ने उसे कैद कर लिया परन्तु वह शीघ्रही । से उसकी स्त्रीने पहले शाहजी' के वंशज कुर्लाके पेशवा के पास चला गया और उसने अपने भाईके । जागीरदार गणपतके पुत्र फतहसिंहको खिलाफ पूनाके दरबारमें शिकायत की। थोड़े ही लिया। इनके बालिग होने तक पहलेकी तरह समयके उपरान्त सदाशिवराव भाऊ और माणके- : व्यवस्था की गई। १९१६ में थालिंग हान पर श्वरके उद्योगसे दोनों भाइयों में मेल हो गया, और अधिकार इनके हाथ में श्रागये। तुलजाजीने सतारा जिलेके खटाव ताल्लुकाके प्रजा बहुत आशा करती थी। पर इलाजक लिये कुर्ला आदि ८१०० रु० की आमदनीवाले गाँव पूनाके सासून अस्पतालमै जाने पर वहाँ दवाके लेकर चुप बैठना स्वीकार किया। १८०७ में जब बदले विष पेटमें चला गया और वहीं उनकी अंग्रेजोंने सताराका राज्य हस्तगत किया. तब ३ | मृत्यु हुई । जुलाई १८२० ई० को फतहसिंहसे संधि कर उन अक्कलकोटक गजा पहले दज सरदार हैं। लोगोंने उसकी जमीन उसे वापस दे दी। १८२२ . उन्हें गोद लेने का अधिकार है। सलामीका मान मैं फतहसिंह मर गये और उनका लड़का नहीं है। उनको कर नहीं देना पड़ता, परन्तु १८२० मालोजी गद्दी पर बैठा । की संधिमें एक शर्त थी, कि देशी राज्यों को अपने १८२७ ई० में अंग्रेजोन मराठा राज्योंकी एक खर्चेसे ब्रिटिश घुड़सवागेकी एक संना रखनी फेहरिस्त तैयार की थी जिसमे अकलकोटकी श्राम- होगी। १८६८ ई० में सेना रखनके बदले सिर्फ दनी निम्नलिखित थी- रुपया देनेका निश्चय हुश्रा। तबसे वे ब्रिटिश अक्कलकोट परगना २,००,००० सरकारको प्रति वर्ष १४५६२) देते हैं। शीलापूरसे श्राय ४,००० , फतहसिंहके बाद उनके पुत्र विजयसिंह गज्यके पूना शहर से चुंगी का हिस्सा १०,००० वारिस है। उनकी अवस्था केवल १६ वर्षकी सताराप्रान्तके ८ जिलोकी चुंगीका हिस्सा ११.००० होने के कारण उनके बालिग होने तक गज्यकी टोटल २,२५,००० व्यवस्था करनेके लिये अंग्रेजोंने अपनी तरफसे सन् १८२८ में मालोजी का देहान्त हो गया। एक अफसर नियुक्त किया है। उसका आठ वर्षका पुत्र गद्दी पर बैठा । वह अक्कलकोटके स्वामी महाराज-ये विगत नावालिग था। इसलिये सताराके राजा राज्य- । शताब्दीके उत्तरार्द्धम हो गए | इस महाराष्ट्रीय प्रबन्ध करने लगे। १८२६ में उन्होंने कुछ विषयों में साधु पुरुषका कहाँ और कब जन्म हुश्रा इसका अनुचित परिवर्तन किये। इसलिये वोग्गाँव के ठीक ठीक पता नहीं लगता। अक्कलकोटमै सरदेशमुख शंकर रावके नेतृत्वमै वहाँकी प्रजाने श्राकर वसनेके पूर्व ये कुछ वर्ष तक 'मंगलवेढ' में विद्रोह खड़ा किया। उसका दमन करनेके लिये | थे। यहाँ स्वामीजी दिगम्बर वायाक नामस शोलापूर और अक्कलकोटसे ब्रिटिश सेना भेजी प्रसिद्ध थे। उनका बहुतसे लोग पागल कहते गयी, परन्तु विद्रोहियोंने कुछ परवाह नहीं की। थे। सं० १८५७ में स्वामीजी अधकलकोट श्राये। अधिक छान-बीन होने से पता चला कि प्रजाका कहा जाता है कि हैदगबाद गज्यफे माणिक नगर बागी होना नाजायज़ नहीं था। तब सताराके (हुमणावाद ) के माणिक प्रभुकं समाधिस्थ होने राजासे राज्य-प्रबन्ध छीन कर जेमसन नामक पर स्वामी महाराज प्रसिद्ध हुए । रिजेण्ट को सौंप दिया गया। स्वामीजी मरण तक अक्कलकोटमें थे। ये १८४८ मे सताराके बृटिश राज्यमें मिल जाने | वहुत मशहूर हो गये थे। राजा लोग भी बड़े भक्ति- पर अक्कलकोट अंग्रेजोंके श्राधीन हुश्रा। १८५७ : भावसे श्राक्कलकोटकी यात्रा करने लगे। उनके ई० में शाहजीकी मृत्युके बाद उसका पुत्र मालोजी भक्तोंमें सब जाति और सब वीके लोग हैं। गद्दी पर बैठा। १८६६ मैं मालोजी कुप्रबंधके स्वामीजीकी रहन-सहनके बारेमें लोगोंको आश्चर्य अाजकल .