पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फंसे। । अकादेवी ज्ञानकोश (अ) है अक्टिम होता था। परन्तु उनमें पूर्ण विरक्ति भरी हुई थी। डिस्ट्रिक्ट्स आफ बांब स० १ व २ पृ० ४६५] वे कभी भी किसीके कहने पर नहीं चले और न उन्होंने अक्किवट-बम्बई प्रान्तके बेलगाँच जिलेके किसीको ठीक ठीक जवाब ही दिया। वे जो कुछ मध्य चिकाडीसे नैर्ऋत्य कोणकी ओर लगभग भी बोलते थे वह उनके दर्शनको आनेवालोके मूक १२ मील पर यह गाँव वसा हुआ प्रशीका ठीक ठीक उत्तर हो जाता था। यद्यपि | मैं तासगाँवके परशुराम भाऊने इस गाँवको घेरा गजा लोग उनके सुखके लिये सब कुछ करनेको था। उस समय गाँवके लड़ने वाले भाइयोंके काम तैय्यार थे; परन्तु वे कभी भोग-विलासमें नहीं आने तथा अकालको तीब्र आँच लगनेके कारण यह गाँव फतह हुआ। १८२७ ई० में कोल्हापुर स्वामीजीके दिखाए हुए चमत्कारोंके बारेमें सरकारने यह गाँव अंग्नेजोंके सुपुर्द किया, क्योंकि अनेक कहानियाँ कही जाती हैं। भावुक लोगोंका इस गाँव में लुटेरोंका एक दल रहता था, जो श्रास- कथन है कि यहाँ के नोमके वृक्षकी कड़वी पत्तियों पासके अंग्रेजी देहातोको सदा दुःख देता था। को उन्होंने मीटा कर दिया, जो अभी तक मीठी हैं । यहाँका किला सैनिक दृष्टिसे अच्छा नहीं था। चैत वदी १२ शके १८१८ में स्वामीजी परलोक (बेलगाँव ग.) सिधार। समाधिकी जगह पर उनका स्मारक अक्चा-'अफगानी तुर्किस्तान' के जिलेका बना हुआ है। मुख्य नगर है। उ. श्र० ३६५५' और पु० दे० अक्का देवी-कल्याणीक पश्चिम चालुक्य ६६.१०। यह समुद्रतलसे १०८ फुट ऊँचा है । राजघराने के जयसिंह द्वितीयकी यह बहिन थीं। इस गाँव में एक किला है। यहाँ अफगान सेना रहती इनका उल्लेख बहुतसे पत्रों और लेखोंमें मिलता है। ग्रीष्म ऋतुमे यहाँकी श्रावहवा अस्वास्थकर है। उन उल्लेखों से अनुमान किया जाता है कि होती है। यहाँ ब्यापार अधिक होता है। बुखारा यह सुप्रसिद्ध रमणी होगी। 'गुणद-बेडगी | के काफिले व्यापारके लिये यहाँ श्राते हैं । (सद्गुणों की माता) और 'एक वाक्ये' (एक (इ० ग०५) वचनी) श्रादि विशेषण उसके नामके साथ मिलते अक्टनयह इंगलैंडमें मिडलसेक्स का(इलींग है। लड़ाइयों में उसका वर्णन किया गया है । १०२१ | पार्लियामेंटरी विभागका) भाग (Urban district) या १०२२ ई० में जयसिंह द्वितीयके मातहत किसु. है। यह सेण्ट पाल गिर्जाके पश्चिम नौ मील पर काड ( सप्तती ) में वह राज्य करती थी। (ई० | है। यहाँकी जनसंख्या करीव ४०००० है। आज- ऐ० स०१८ पृ० २७५.) जहाँ तक विदित होता | कल यह आधुनिक लंडनके अगल बगलके भागोके है, वह सोमेश्वर प्रथमके समयमें भी अधि- समान है। इसके नामकी उत्पत्ति "श्रोकटाउन" कारयुक्त थी। क्योंकि १०४७ ई० के एक लेखमें से है। क्योंकि पहले इस भागमें श्रोक वृक्षोंका इसे हम बेलगाँव जिलेके गोकागे (गोकाक ) का विस्तीर्ण जंगल था। प्राचीन कालसे यह जमीन धेरा डालकर बैटी हुई पाते हैं (बीजापुर जिले लंडनके विशपके अधिकारमें थी। तीसरे हेनरी के अरसीवीड़ीका शिलालेख) । १०५० ई० में किसु- का यह निवासस्थान था । 'कामनवेल्थ' के काड ( सप्तति , तोरगेर (पद) और मालवाड़ी समय यह प्युरीटन लोगोंका अड्डा था । फिलिप (एकशतचत्वारिंशत) आदि स्थानों में उसका नाय ( मृत्यु १६७२ ), रेक्टर रिचर्ड बक्सर, सर राज्य था। १०५.३ ई० में किसुकाङ' ( सप्तति)। मेथ्यू हेल, ( लार्ड चीफ जस्टिस ), प्रसिद्ध उप- पर उसके आधिपत्यका लेख मिलता है। (अरसी न्यास-लेखक हेनरी फील्डिंग और वनस्पति बीडीका दूसरा शिलालेख ) और उस लेखसे यह शास्त्रज्ञ जान विंडले-वहाँके प्रधान निवासियोमै भी मालूम होता है कि विक्रमपुर उसकी राजधानी से थे। १८ वीं शताब्दीमें अक्टनके खारे पानीके थी। १०६६ ई० के एक लेखमें लिखा है कि बन कुएँ बहुत मशहूर थे। वासी (द्वादशसहस्त्र) और पातुगल (पंचशत) अक्टिअम-अकरनेनिया ( यूनान ) के उत्तर के अधिपति कादम्ब महामण्डलेश्वर तोषिय देवकी में पार्टी खाडीके मुहानेके पास यह एक पुराना माताका नाम भी श्रकादेवी था । धारवाड गाँव है। इस भूभागपर अपोलो अक्टिसका जिलेके होत्तुर गाँवके शिलालेखसे यह स्पष्ट होता प्राचीन मन्दिर था। उसे ऑगस्टसने बढ़ाया। है कि उसका पति हानगलके कादम्बामे से होगा, उसने अक्टिअमकी लड़ाईके स्मारकमें यहाँ पंच- परन्तु उसका नाम नहीं मिलता। वार्षिक खेल शुरू किये। प्रथमतः अक्टिश्रम बिम्बई गजे०-दि डिनैस्टीज श्राफदी कैनैरीज | कोरिन्थको श्रोर था। ऐसा तर्क किया जाता है,