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पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/४०

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- अक्रा ज्ञानकोश (अ) ३० अवराट कि ओपलो अक्टिश्रमकी पूजा उसीने शुरू की। ईसा स्यमंतक मणि अकरको दे दी और अकरने के जन्मसे प्रायः तीन वर्ष पूर्व यह अकरनेनियाके ही इसके द्वारा सत्राजितका वध करवाया था। अधिकारमें चला गया। अगस्टस नामक पहले गेमन | पीछे उन्हें यह खबर भी मिली कि अक्रर द्वारिका बादशाहने मार्क अन्टनी (इस्वी सन्के ३१ वर्ष छोड़कर चला गया । कृगने यह सोच कर कि पूर्व) पर यहीं विजय प्राप्त की थी। इसीलिये यह , अकरको दण्ड देनेसं जानिम विभेद पैदा होगा, स्थान प्रसिद्ध है। | उसे क्षमा कर दिया और farstra अक्रा-सीमाप्रान्तके बन्नू जिलेका एक प्राचीन : बुला लिया। स्थान । उ० अ०३३' और पू० दे०७०३६। यह अखलकोप--अटीके उत्तर-पश्चिममीलएर स्थान वन्नू नगरके पास ही है । काबुलके राजाके तथा तासगाँवसे पश्चिमकी ओर ११ भील पर नाती रुस्तमका यह मुख्य स्थान था। रुस्तमकी है। यहाँकी जनसंख्या लगभग तीन हजार है। बहन को यह भाग स्त्री-धनके रूप में मिला था। कृष्णा नदी जिस जगह पश्चिमसे दक्षिणकी ओर यूनान और पश्चिम एशियाके जड़ाऊ कामांके मुड़ती है उस स्थानके दाहिने किनारे पर यह सदृश जड़ाऊ मानिक यहाँ पर पाये गये हैं। गांव बसा है। यहाँस लोग दुसरे किनारक भिल- अक्रा-( अफ्रिकन ) अफ्रिकाके पश्चिमी वाड़ी गाँव, कृष्णा नदी पर बने दुग पुल परस किनारे पर गिनीकी खाडीके पास "गोल्ड कोष्ट' : होकर जाते है। नासगाव तथा श्री जानके नामक एक ब्रिटिश उपनवेश है। उसमें अका शहर लिये कशी सड़क है। यहाँ पर कृष्णा नदीकी और बन्दरगाह है। यहाँकी जनसंख्या १० हजार काली मिट्टी हानके कारण यह गांव या उपजाऊ है, जिसमें १५० यूरोपियन हैं। यह गांव सेंट जेम्स, है और यहाँ मनीके लायक जमीन भी बाहुन केव्हेकुर और क्रिश्चबर्ग इन तीन किलोंके श्रास- यहाँ दत्तात्रेय यथा म्हसाबाके दो मन्दिर है। दत्ता- पास बसा है । इन किलोमें से दूसरा और तीसरा, अंय के मन्दिरम नीन बार मार्गशीर्ष पूर्णिमाको, क्रमशः हालेण्ड और फ्रांसके अधिकारमें था। मात्र बद्री पंचमीको, नथा श्राश्विनी द्वादशीको परन्तु ये किले बादमें अंग्रेजोंके हाथ आए। यहां । मेला लगता है। दत्तात्रयका मन्दिर अगलकोगक कोको (Cocon) के वाग हैं। देशपागडेने पहली बार बनवाया था। पश्चात् अक्रर-आयु-पुत्र नहुष राजा का पौत्र यदु श्रीकृष्णराव त्रिंबक बापटन ( श्राप उस समय था। इसी कुलके सात्वतवंशम कोष्ट था। उसका वहींके तहसीलदार थे ) सन् १८६० में वंशज वृष्णिका था। अक्रूर उसी वृष्णिका पुत्र 'फिरसे बनवाया। मनिरम दत्तात्रेयक खड़ाऊँ था। इसके उनसेना स्त्री से सुदेव और उपदेव स्थापित हैं । देवस्थानके लिये ११ ० १२ श्रा० कर नामक दो पुत्र हुए। यह वसुदेव और कृष्णका की जमीन नियत कर दी गयी है। श्रखलाप नथा समकालीन था। इसने अपनी एक कुमारी नामक जिलेके दूसर-दूसरे भागके व्यापारी और मंट माह- बहनका वसुदेवसे ब्याह किया था। कृष्णकोमथुरा कार इस देवस्थानकी द्रव्य द्वारा श्रथवा किसी अन्य लाने के लिये कंसने को गोकुलमें भेजा था। रीतिसे सहायता करते हैं। यहाँ पर महालावाका स्यमन्तक मणिसे इसका बहुत सम्बन्ध है। । मन्दिर भी है। कृपणु महात्म्यमें बताया गया है कि सूर्योपासना करने वाले सत्राजित को यह वह मन्दिर पहले गणेशजी का था। यहाँ अप्रैल स्थमन्तक मणि सूर्यसे प्राप्त हुई थी। सत्राजितने | मैं मेला लगता है और मेलम डोम, चमार, गमाशी यह अपने भाईको दी। उसके पास स्यंमतकक चमार तथा मराठी ही की संख्या अधिक रहती लिये कृष्णने याचना की थी। परन्तु वह कृष्णका है। म्हसाबा मन्दिर जो जमीन दी गई है, उस नहीं मिली। अकर भी उस मणिको चाहता था। पर सरकारी कर. १३० रु. है। कुल जमीनस उसने भोजाधिपति शतधन्वी द्वारा सत्राजितका | करीब ५०० रु. की आमदनी होनी है। बध कराकर स्यमंतक मणि प्राप्त की। शतधन्वी [यंबई ग०] द्वारा सत्राजितके मारे जानेकी खबर पा कर कृष्ण अखरोट-संस्कृत नाम अक्षाट । दुसरे नाम- ने उसपर चढ़ाई कर दी। शवधन्वीने मदके अखरोट, श्राखार, काल और दुन । इसका पड़ लिये अक्रूरकी प्रतीक्षा की; परन्तु प्रत्यक्ष कृष्णसे | ग्रीस, अर्मीनिया, अफगानिस्तानके पहाड़ी प्रदेश, विरोध होगा यह सोच कर वह मदद के लिये अफगानिस्तानस लेकर भूटान तक प्रदेश, हिमा- नहीं पहुँचा। अन्त में कृष्णने शतधन्द्रीका बध किया। लयके वायव्यभाग, बर्माकं पहाड़ और प्रवासियाके इसके बाद कृष्णको मालूम हुआ कि शतधन्वीन | पहाड़ों पर होता है। समशीनोप्य प्रदेशमें भी