! अगस्त्य ज्ञानकोष (अ) ३६ आगार्या अगस्त्य-यह एक मुख्य नक्षत्र है। सिंह १९११ ई० में ५०० थी। मिर्जापुर तथा बंगालमें राशिमें ४।६३ सूर्यके आनेपर यह भूध नक्षत्रसे भी थोड़े बहुत ये पाये जाते हैं। उड़िया प्रदेशमै सटा हुश्रा उसके दक्षिणमें उदय होता है और १५२ मिलनेवाले अगारियों से इनका कुछ भी सम्बन्ध सूर्य होने पर अस्त हो जाता है । तुलसीदास-कृत | नहीं है। इन लोगोंका विश्वास है कि सृटिके रामायणके किष्किन्धाकाण्डमें रामचन्द्रने शरद- पारन्म ही से इनकी जाति भी है. और इनके ऋतुका वर्णन इस भाँति किया है- पूर्वजों ही द्वारा जमीन जोतनेके लिये हल का "उदित अगस्त पंथ जल सोषा, आविष्कार हुआ था। इनके दो मुख्य भेद हैं जिमि लोहिं सोखै सन्तोषा।" (१) पथरिया अगारी, (२) और खूटिया अगारी। इससे यह विदित होता है कि वर्षा बीतने पर भी सुलगाते समय भातीके ऊपर जो पत्थर शरदऋतुके श्रारम्भमै यह नक्षत्र उदित होता है। रखते हैं वे पथरिया कहलाते हैं. और जो खूटी समय समय पर इसके रङ्ग तथा श्राकार आदि ठोंकते हैं वे खूटिया कह जाते हैं। इनके गांवों में परिवर्तन होता रहता है। जोतिषशास्त्रक के नाम गोड़ाके समान होते है। जानि-बहिष्कृत अनुसार जब यह रुक्ष हो तो देशमै रोगोंका प्रकोप मनुष्योंको सोनबाई जातिकं मनुष्य प्रायश्चित् होना अनिवार्य है। पिंगल होना श्रवृष्टि-सूचक कराते हैं। सोनेका टुकड़ा एक बरतन में रख कर है। जब यह धूम्र वर्णका देख पड़े तो समझ लेना उसमें पानी छोड़ा जाता है, उसी पानीको पनित चाहिये कि गो आदि पशुओं को कष्ट होगा। लाल के अंगपर छिड़कते हैं जिससे वह शुद्ध हो होनेसे यह दुर्भिक्ष उत्पन्न करता है। यदि यह जाता है। सगांत्र विवाह निषिद्ध है। किन्तु अत्यन्त सूक्ष्म देख पड़े तो राजको भय होता है। यदि | ममेरे, फुफेरे तथा मौसेरे भाई बहिनामै विवाह धूम्रकेतु ( Comct ) के संसर्गमै हो तो भी अनि- प्रचलित है। विवाह बहुधा युवावस्था प्राप्त होने सूचक है। यदि यह स्वच्छ, तथा चाँदी और | पर ही होता है। विवाह निश्चित करने के लिये स्फटिकके समान कान्तिपूर्ण देख पड़े तो प्रात्यन्त लड़के का पिता लड़की के पिता यहाँ यह समा. शुभकारी समझना चाहिये और ऐसा होने से चार भेजता है कि वे लोग बासी" खाने उसके देश धन-धान्य पूर्ण होता है। घर श्रावेंगे। यदि कन्याके पिनाको यह सम्बन्ध अगस्त्यकुण्डा-वर्तमान काशी (यनारस) मंजूर होता है तो उत्तरमै कहला देता है कि पैदल का एक मुहल्ला। यो तो इसमें कोई भी चिशे- चलकर श्रानेपर उनका पूजन कर स्वागत और पता नहीं है किन्तु पौराणिक दृथिसे इसके नाम- अतिथि सत्कार करनेका तयार हूँ। बहुधा करणकी कथा वड़ी रोचक है और इसका धार्मिक विवाह वर्षाऋतु में ही निश्चित किया जाता है। महत्व बहुत कुछ माना जाता है। इसकी गणना ' लड़कीकी ओरका शुल्क विवाह पूर्व ही चुका तीर्थीमे की जाती है। (देखिये काशी) । सोमबार मंगलवार. अथवा अमत्स्यकूटम-मद्रास प्रान्तके ट्रावनकोर शुक्रवार को लग्न ली जानी है। वरकं थाने पर राज्यान्तर्गत नैय्यातिनकर. ताल्लुकेमे यह पश्चिमी- सीकसे उसके दाँत साफ किये जाते है और साली घाट पर्वतका एक त्रिभुजा-कार गिरि-शृङ्ग है। उसे पान खिलानका प्रयत्न करती है, किन्तु वह उ० अक्षां, ८० ३७" और पू० देशां० ७७ १५'। उसे हटादेता है और सालीको इसके लिये विदायगी इस प्रान्तमै यह “सब" पर्वतके नामसे प्रसिद्ध है। , देनी पड़ती है। विवाहकी बहुत सी रस्में इसको ऊँचाई ६२०० फिट है। यह श्रृंग ट्रावन- | चरके बर लोट श्रानेपर होती है। उड़दको ये लांग कोर और तिनेवेली जिलौकी सीमा पार है। पवित्र अन्न मानते हैं। ताड़के पत्रीका मुकुट ताराओंकी गति अनुसंधान करनेके लिये यह बनाकर वधु तथा वर उसे तालाबमें डालते हैं। स्थान अत्यन्त उपयुक्त है। यह अंग ताम्रपर्णी और और पारी पारी से उसे खोजते हैं। तदनन्तर नेयार नदीका उद्गम स्थान है । ऐसा विश्वास है | तालाव से निकलकर स्वच्छ कपड़ा पहन कर वर कि दक्षिण भारतमै आर्य सभ्यताके प्रचारक महान धर जाता है। वधु एक गगरम पानी भरकर सिरपर अगस्त्य ऋषि आज भी इसी पर्वत पर समा रखकर उसके पीछे पीछे चलती है। चरको हिरन धिस्थ हैं। के मारनेके लिये अनेक बाण छोड़ने पड़ते हैं। अगार्या -यह एक गोडोंकी अंतर्गत जाति है। अनेक बाण छोड़न्देके पश्चात् बधु वरको बहुधा वे लोग लोहारीका काम करते हैं। भण्डला, चीनी खिलाती है। यदि तीन तीरम से एक रायपुर, बिलासपुर जिलोंमें इनकी जनसंख्या सन् | भी हिरनको नहीं लगता तो बरको चार पाने देना पड़ता
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