पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/५०

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अग्निक्रीड़ा अग्निक्रीड़ा ज्ञानकोप (अ)४० कबिका जन्म तिरुवादपुर में हुआ था। इन्होंने ग्रंथमें ईसा की ४थी शताब्दीमें भी चक्रके समान तामील आपामें अनेक ग्रंथ लिखे थे। कपिलर घूमने वाली तथा वृष्टिका दृश्य दिखाने वाली परणरका समकालीन था। उक्त पुराणमे तीन आतिशबाजीका उल्लेख मिलता है। विद्या-प्रेमी राजाओके नामोंका उल्लेख है. पर कुल प्राचीन यूनान, गेम श्रादि देशोका हास होने नाम इस तरह से दिये हैं-(१) पलनीसके पर कुछ कालके लिये यह कला ठगढी पड़ गई थी। निकट 'पेहन' (२) उत्तर पश्चिमघाट पर 'पारि' | परन्तु ( Crusndas ) धर्मयुद्धके शहीदों ने पूर्वीय (३) दक्षिण भारकाटमें तिरुक्कुवुर के पास देशोसे बारूद तथा विस्फोटक पदार्थ बनाना सीख 'कारि' (४] तिनावलीके पश्चिम पड़िथल पहाड़ी | कर इसका योरपमें फिरसे प्रचार किया था। के पास 'आई'; (५) धर्मयुरी अथवा मैसूरके | जिस भाँति श्राजकज विजयादशमीके अवसर पर तगडूका अदिदमन; (६) मलनाजूका नाल्लि'; बाँस इत्यादिसे बने हुए रावणके चित्रमें वारुद (७) सीलका कोल्लि; (6) मैलके पासका 'ओरी'; | भर कर जलाते हैं उसी भाँति बाइबिलकी कुछ (8) उरपुरका चोल और (१०) वंजीका 'चेर'। घटनाओंके अाधारपर वारेन्स श्रादि शहरोमें कपिलर गजबाहु गजाका समकालीन था। १५४० ई. तक कागज तथा लकड़ियोंकी मूर्तियाँ इसीसे डा० हार्नेलीने अनुमान किया है कि कपि- | वनाकर उनमें बारूद भर कर जलाते थे। उत्सवा लर ई० सदीकी दूसरी शताब्दिमें था और के अवसर पर इंगलैण्ड तथा फ्रान्स श्रादि देशाम इतने पुराने जमानेमै भी अग्निसे उत्पन्न कुलोंकी | श्रय भी यह प्रथा प्रचलित है। कल्पनाये प्रचलित थीं। [इ.डि. सलि ३४] शोग, गन्धक और लकड़ीका कोयला ही अग्निक्रीड़ा--(आतिशवाज़ी) मानव समाज बारूद बनानके मुख्य साधन हैं। उसीम लोहेका अपने मनोरंजनके लिये नाना प्रकारकी सामग्रीका बुरादा मिला कर प्रातिशबाजी भी बनाई जा आविष्कार किया करता है। अतः व्यों ज्यों उनका सकती है। भाँति-भाँनिकी श्रातिशवाजी बनाने प्रचार बढ़ता जाता है वे व्यापारके लिये तैयार की के लिये भिन्न-भिन्न पदार्थीको मिलाना पड़ता है! जाने लगती हैं। इसी भाँति अग्नि-क्रीडाकी भी हाल | सबका तो स्थानाभावके कारण यहाँ वर्णन होन है। इस देशकी प्राचीन ६४ कलाओंमें इसका असम्भव है, किन्तु पाठकोंके मनोरंजनके लिय दं वर्णन कहीं भी नहीं पाया जाता। अतः निथितरूप एक का उल्लेख नीचे किया जाता है.-- से यह नहीं कहा जा सकता कि इस देशमें इसके चरखी बनाने की विधि बनानेकी कला कवसे और किसने प्रारम्भ की । बारूद २४भाग अग्नि, ज्वलन्त तथा विस्फोटक पदार्थीके मिश्री शोग करणसे ही मनुष्यके नेत्र-मनोरञ्जनके लिये ही गन्धक इसका आविष्कार हुआ है। जिन पदार्थोसे वारूद कोयले का चूग तय्यार की जाती है उन्हीं वस्तुओंके हेरफेरसे श्रानि- फौलादका चूग शवाज़ो भी तैयार की जाती है । महाभारतमें जिस हरे तार बनाने की विधि शतघ्नी और युद्धयन्त्र श्रादि शब्दोंका जिक्र श्राया पोटेशियम क्लोरेट १०माग है, उसका आजकलका पर्यायवाचक Machine वरियम टाइट्रेट guu ही है अथवा नहीं-यह निश्चय रूपसे नहीं गन्धक १२ कहा जा सकता। विश्वसनीय तथा ठीक ठीक कोयला इतिहास न होनेके कारण हम लोगोंको बहुधा लाख कल्पना शक्ति पर ही शवलम्बित रहना पड़ता है। कपूर का रस कुछ लोगोंका कहना है कि वन्दुककी बारूद, पटाखे ताँबे का चुग ( Copper ) २ इत्यादि बनानेकी कला पहले पहल चीनियोने ही अंग्रेजी द्वारा जो पेशवाओके दरबारोका वर्ण हूँढ निकाली थी और धीरे धीरे वहींसे अन्य देशों हुआ है और उनके शासनकालका जो पनिहासिर में भी फैली। रोमन सरकसोंमें भी आतिशवाजीको हाल मिलना है उससे पता चलता है कि उर खेल दिखाया जाता था। यूनानके जल युद्धामें भी समय आतिशबाजीका काफी प्रचार था। श्राजकर इसका जिक्र श्राता है। रोमन बादशाह कारिनस | की तरह उस समय भी विवाह इत्यादि उत्सर और डायोक्लीसनके प्रति सम्मान दिखाने के लिये | में आतिशबाजी छोड़ी जाती थी। बाधा पह आतिशबाजीका प्रयोग किया गया था। क्लाडियन' | ड़ियांक नीचे आनिशवाजी छोड़ी जानी थी श्री " " " 71 13 79 1). - "