पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/५४

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वर्णन। अग्निपुराण ज्ञानकोश (अ)४४ अग्निपुराण १०७६ में चंड पूजा। श्र० ७७ में कपिला पूजा । श्र०१२२ में काल गणना। श्र० १२३ मैं युद्धज- अ० ७८ में पवित्राधिवासन विधि। यह कुलधर्म | यार्णवीय तथा अनेक योगों के नाम देख पड़ते अभी तक प्रसिद्ध है। अ०७६ में पवित्रारोपण | हैं। स्वरोदय, शनिचक्र, कूर्मचक्र, और गहुचक्र ही विधि। अ०० में दमनकारोहण विधि। श्र० इसके मुख्य विषय है। श्र० १२४ में युद्धजयार्ण ८१ में समय दीक्षा। अ०८२ में संस्कार दीक्षा। वीय ज्योतिःसार वर्णन । अ० १२५. में युद्धजया- ये सब विषय मन्त्र शास्त्रके हैं। अ०३ में निर्वाण णवीय नाना चक्र वर्णन। इसके आगेका वर्णन दीक्षा विधि। अ०८४ में निवृत्ति कला शोधन । भाग मंत्रशास्त्रका है। अ०१२६ में नक्षत्र निर्णय। अ०५ में प्रतिष्ठा कला संशोधन । अ० ८६ में अ० १२७ में नाना प्रकारके बलका वर्णन दिया विद्या संशोधन विधि। अ०८७.में शांति शोधन हुआ है । विधि। श्र० -८ में निर्वाण दीक्षा शेष विधि अ० १२८ में कोटचक्र। अ० १२९ में अर्थ- श्र०८ में एकतत्व दीक्षा विधि। श्र० काणु। १०१३० में मंडलादि कथन । १० १३१ में ६० में अभिषेकादि। अ० ६६२ में प्रतिष्टादि धात चक्र । अ०१३२ में संवाचक। अ०१३३ में विधि। तथा अभिषेकसे संक्षिप्त देवता पूजन । नाना बल वर्णन । गर्भ के प्राणीका ग्रहबल के श्र०६३ में वास्तु पूजा। श्रा०६४ में शिला विन्यास। श्राधार से स्वरूप वर्णन। उदाहरणार्थ-सूर्यके अ०६५ में प्रतिष्ठाकालकी सामग्री आदि विधि। | ग्रहमें पड़ा हुश्रा मनुष्य बहुत ऊंचा, स्थूल. कृश, अ०६६ में प्रतिष्ठा विधिकी अधिवासन विधि । तथा मध्यम है । वह गांग और पित्तप्रकृतिका रहती अ०६७ में शिवप्रतिष्ठा विधि। २०६८ में गौरी है, रक्ताक्ष, गुणी, और शूर उत्पन्न होता है। इसी प्रतिष्ठा विधि। अ० मै सूर्य प्रतिष्ठा । श्र० प्रकारसे श्रागेक ग्रहका बलाबल जानना चाहिये। १०० में द्वार प्रतिष्ठा विधि। श्रध्याय १०१ में इसी प्रकार. ग्रहकी दशाओंके बलाबलका वर्णन प्रासाद प्रतिष्ठा विधि। श्र० १०२ में ध्वजारोपण किया है । श्र० १३४ में त्रैलोक्यविजय विद्या विधि । अ० १०३ में जीर्णोद्धार विधि । श्र० १०४में! मन्त्र शास्त्र । अ० १३५ में संग्राम विजय विद्या। प्रासादलक्षण । अ० १०५ में गृहादिवास्तु | अ० १३६ में नक्षत्र चक्र । अ० १३७ में महामारी विचार। श्र० १०६ में नगरादिकवास्तु कथन । विद्या कथन ( मंत्र )। श्र० १३८ में मंत्र शास्त्रके छ: भूगोल ज्ञान-अ० १०७ प्राचीन भूगोल ज्ञान कर्म। १० १३६ में साठ संवत्सगे नाम । श्र० धोधक है । इसके स्वायंभूवसर्गमें स्वयंभूमनुके वंश | १४० में वश्यादि योग। इसमें कुछ बनस्पनियोके का संक्षिप्त उल्लेख है। अ० १०८ में भुवन कोश । नाम भी हैं। इस भूवनके सात द्वीप हैं और उनके चारो ओर श्र० १४१ में छत्तीस पदकोंके ज्ञान, वनस्पति छः समुद्रोका घेरा है । उन सप्तद्वीपोंके नाम इस तथा दूसरे द्रव्योंका उल्लेख है । यहाँ ज्योतिपमिश्रित प्रकार है-जम्बु, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौंच, शाख वैद्यकका वर्णन है। हरें ( हरीतकी) बहेड़ा और पुष्कर। छः समुद्रोके नाम-खारा समुद्र, | (अक्ष) सूखा आँवला (श्रामलकी ) (मिरे) काली ऊँखका समुद्र, मद्यका समुद्र, धी फा समुद्र, दही मिर्च पिप्पल ( पिप्पली ) वालंत (सौंफ) का समुद्र, क्षीर समुद्र, और मीठे पानीका समुद्र। (शिफा) चित्रक ( चन्हि ) सोठ (सुंठी) गुडुची अ० १०६ में तीर्थ महात्म्य । अ० ११० में गंगा (गुलवेल ) बच (वचा) नीम (निवक) श्रङ्कसा माहात्म्य । अ० १११ में प्रयाग महात्म्य । अ० ११२ (वासख ) शतावरी ( शनमूली) सँधा (सैंधव ) में वाराणसी महात्म्य । अ० ११३ में नर्मदा ( सिंधुकारक ) निर्गुन्डी ( कंटकारी), गोखरू माहात्म्य । अ० ११४११६ मैं गया माहात्म्य । (गोचरक ) वेल (बिल्व ) पुनर्नवा ( पौनर्नवा) पुराणका "एको मुनि कुभ कुशाग्न हस्त," यह रूद्ध परंड, मुंडी, काला निमक (रुचक) माका (भृङ्ग) श्लोक इस स्थान पर है। अ० १९७ में श्राद्ध क्षार पित्तपापड़ा ( पर्पट) धना (धन्याक) जीरा कल्प। अ० २१८ में भारतवर्षका वर्णन | इस (जीरक) बड़ी सौंफ (शतपुष्पी) अजवाईन भारतवर्षमै इंद्र द्वीप, कसेरु, ताम्रवर्ण, गभस्ति, (जवानिक ) खैर (खदिर) वाहवा (कृतमाल ) नाग द्वीप, सौम्य गांधर्व, वारुण, ऐसे आठ खंड | सिद्धार्थ, दारु हलदी, गई इन्यादिका वर्णन हैं। अ० १११ में महाद्वीपादि वर्णन । अ० १२० में किया है। भुवन कोश वर्णन ; फलज्योतिषमिश्रित ज्योतिष श्र० १४२ में मंत्रौषधि प्रकरण श्रीर प्रश्न शास्त्र और वैद्यक। किस प्रकार देखने चाहिए. इसका विचार । १० (अ० १२१-१४१) १० १२१ में ज्योतिषशास्त्र। १४३।१४४ में कुब्जिका पूजन् । अ० १४५ में मालिनी