अग्निपुराण ज्ञानकोश (अ)४६ अग्निपुराण नाम है परन्तु यह कहाँ है इसका ठीक ठीक पता कमरमें लगाईजानेकाउल्लेख है । सब बाँस गाजा नहीं है। का अभिषेक ही जानेपर गाजाको शीश और बी मैं श्र० २०१ में नवव्यूहान । अ० २०६ में पुष्प- | अपना प्रतिविम्व देखना चाहिये । विषाणु आदिका वर्ग कथन । देवताओं की पूजाके योग्य नरह ! पूजन करना चाहिये। शय्या पर ब्याचम विका तरहके पुष्प का वर्णन । अ० २०३ में नरक वर्णन | रहना चाहिये। पुरोहितका चाहिये कि गजाके मधु. अ० २०४ में मासोपमास व्रत । अ० २०५. में भीष्म पर्क देकर बस्न बाँधे । (पट्टवंध) गजाके मुकुट पंचक अत। अ० २०६ में अगस्त्याऱ्या कथन । | में पंचचर्म होना चाहिये । भुकुट धारण करते अ० २०७ में कोमुद व्रत। अ० २०८ मै बतदानादि समय जिस प्रकार श्राजकल सिपाहियों की पग- समुच्चय। ड़ियोंमें टोपी दिखाई देती है उसी प्रकार मुकुट में दान मीमाँसा-~-अ० २०६ में दान परिभाषा चर्म बाँधना चाहिये (पंच चमाजरं ददेव ) । दैल कथन । अ० २१० में महादान विधि । अ० २११ के, सिंहके, बाघके अथवा चीतर चर्म पर राजा में अनेक प्रकारके दान। जिनके पास दम गाय को बैठना चाहिये। गजासे मन्त्री धादिका परि- हैं उनको एक गौदान करना चाहिये । इस प्रकार चय करा देना चाहिये। इसके उपगन्न ब्राह्मणों दशांशका प्रमाण है। यहाँ उल्लिखितमाहिय दान | को दान इत्यादि देकर भोर अश्व नया गजकी का और कहीं ज़िक्र नहीं मिलता। उसी प्रकार , पूजा करके गजमार्गस राजाकी वामन निकलनी चान्दीका चन्द्रमा बनाकर मस्तक पर रखना और चाहिये। अ० २१६ में अभिषेक मंत्र। इन मंत्रमें उसे ब्राह्मणको देना चाहिये। कुछ देव, ऋषि, पर्वत, देश. नदियांक नाम पाए अपनी लोहेकी प्रतिमा बनाकर देना चाहिये । | हैं। उनमें बहुत सी नदियों के अपरिचित नाम है भिन्न भिन्न धातुओंकी प्रतिमा बताकर दान करने जैसे-अच्छोदा, दविका, वरुणा. निश्चिगा पारा, की विधि है.-पुरुपकी प्रतिमा काले तिलकी रूपा, गौरी, बैतरणी नथा श्ररणी इत्यादि । अ० बनानी चाहिये। दाँत चाँदीके, अाँखें सानेकी, १११मै सहायसंपत्ति अर्थात् अधिकारीमंडल अथवा और हाथमें तलवार होनी चाहिये, लाल वस्त्र गजप्रबन्धके लिये श्रावश्यक बहीखाते और उनपर परिधान करना चाहिये, शंखोंकी माला, पैरमें अधिकारियोंकी योजना । गजाको गज्याभिषेक जूता, काला कम्बल ओढ़े हुए और वाण हाथमे होनेपर शत्रुओंको जीतना चाहिये। मांस, सोनेके अश्व पर बैठा हुआ होना | सेनापति ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय होना चाहिये। चाहिये। ऐसा काल पुरुष माना गया है। ब्राह्मण कोपाध्यक्षको रत्नों और हिसाब इत्यादि से भली- को दासी अर्पण करना चाहिये ( दासी दत्त्वा भाँति भिक्ष होना चाहिये। गजाध्यक्षको जितश्रम द्विजेन्द्राय )। बसव पुराणमै ऐसा वर्णन है कि । होना चाहिये । उसे गजपरीक्षाका ज्ञान होना वसब नामका राजा ( जगमांस ) साधुनोको बहुत चाहिये । . उसी प्रकार धुड़सवागेका मुखिया सी वेश्याय देता था। उसपर हँसना व्यर्थ है। अश्यशास्त्रमै निपुण होना चाहिये । (दुर्ग ) किले अ० २१२ में मेरुदान, अ. २१३ में पृथ्वी दान । का अधिकारी होशियार होना चाहिये। वैसेही अ० २१४ मैं नाड़ी चक्र। अ० २१५ में संध्या शिल्पकार अपनी विद्याको पूर्ण सीखा हुना होना विधि, गायत्री, जप और हवनके संबंध विचार | चाहिये। मंत्री बुद्धिमान होना चाहिय । सभाके किया गया है । अ०२१६-२२७ में गायशी निर्वाण | सदस्य धर्मको जाननेवाले रहने चाहिये । यंत्रमुक्त, अ० २१८ मै राजधर्मका वर्णन। प्राचीन समयमै | पाणिमुक्त, मुक्त, और मुक्तधारित, ये चार प्रकार राज्याभिषेकके समय राजाको प्रतिक्षा करनी के बाण और शस्त्र छोड़नेके हैं। प्राचार्य उपर्युक्त पड़ती थी कि वह सब धर्मके लोगोका पालन | चारों प्रकारांसे भिज्ञ होना चाहिये । प्रनिहारी पोषण करेगा। ऐसी प्रथा थी कि भिन्न भिन्न नीति शास्त्रमें निपुण होना चाहिये। दृत मीठा जगहोकी मट्टी राजाके प्रत्येक अंगको लगायी बोलनेवाला और अति बलवान होना चाहिये। जाती थी। पर्वतके शिखरकी मट्टी राजाके प्रतिज्ञाके लिये राजाका जो बीड़ा देनके लिये मस्तकको लगाई जाती थी। बिल ( बांबी) की नियत किया जाना था वह तृतीय प्रकृतिका होता मट्टी राजाके कान पर, विष्णुके देवालयकी मट्टी था । सारथीके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी राजाके मुखमें लगाई जाती थी। इसी प्रकार अन्य | होती थी। अतः वह पूर्ण-गजनिष्ठ होकर संधि, स्थानकी मट्टीका भी वर्णन है। जगह जगहको मट्टीका | विग्रह, श्रादि पड़ गुणांस युक्त तथा सेनादि विषय वर्णन करते समय वेश्याके दरवाजे की मट्टी राजाके | को जाननेवाला और राजाके रक्षणार्थ तलवार राजाका