पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/६७

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तलवार अपना श्र०२४७ में अग्निपुराण ज्ञानकोश (अ) ५७ अग्निपुराण युक्त है। मिश्रित पंख निषिद्ध हैं। क्षत्रकी दंडी | १२ अंगुलकी अधम समझो जाती है । ३ से ८ वर्ष पुराने भद्रासन वृक्षको होनी चाहिये। का अग्रभाग कमल के समान होना चाहिये। धार वह ५० अंगुल ऊँचा और उसका घेरा तीन हाथ तीव्र होनी चाहिये । काढेरके पत्ते के समान हो तो होना चाहियें। उसपर स्थान स्थान पर सोने | अति उत्तम है। इसका रङ्ग धीके समान होना का काम उसकी सुन्दरता की वृद्धि करता है। चाहिये । इसकी कांति बिजली के समान चकाचौंध धनुष-तीन द्रव्यों का होना चाहिये-धातु, करनेवाली होनी चाहिये। काक और उलूक सींग या लकड़ी। उसी प्रकार धनुषकी प्रत्यञ्चा | के सदृश इसमें चमक होनी चाहिये। के लिये तीन द्रव्य शास्त्रोक्त है—वंश, भंगा | मुख इसमें नहीं देखना चाहिये। और न इसका (अवाड़ी या तागा), त्वचा ( ताँत )। लकड़ीका ! मूल्य ही किसीसे कहना चाहिये। धनुष चार हाथ लम्बा होना चाहिये। दूसरे | रत्नपरीक्षा-अ०२४६ ! वज्र, मरकत रत्न, द्रव्योंका भी कम अधिक प्रमाण दिया है। मुष्टि- पद्मराग, मौक्तिक इन्द्रनील, महानोल, वैदुर्य, ग्राह, (मुठ्ठीमें पकड़ने लायक ) स्वल्पकोटी. ! गंधशस्य, चन्द्रकांत, सूर्यकांत, स्फटिक, पुलक, त्वचाभंग, लोहमय अादि उसके भेद हैं ! धनुष कर्केतन, पुष्पराग, ज्योतिरस, राजपट्ट, सौगांधिक, का श्राकार स्त्रीकी भृकुटीके समान होना चाहिये। ' गज, शंख, गोमेद, रुधिराक्ष, भल्लातक धूली, सींगके धनुषमें चांदीके बिन्दु होने चाहिये। मरकत. तुत्थक, सीस. पीलु प्रवाल, गिरीबन, कुटिल, स्फुटित, और छिद्रयुक्त धनुष दोषयुक्त भुजंगमणि ब्रजमणि टिटिभ, पिंड, भ्रामर, उत्पल, माना गया है। इत्यादि इनके मुख्य भेद दिये हैं । इस प्रकरणको धातुमय धनुप-यह सोना, चाँदी, ताँबा. विचार शुक्र नीतिमें भी किया है, और उसकी लोहा इत्यादि किसी भी धातुका होना चाहिये। परीक्षा जरा विस्तृत रूपसे दी है। शृङ्गमय धनुष---यह भैसे, शारभ, अथवा रोहीके | वास्तुलक्षण । वास्तुमें विशिष्ट देवताओंकी सीगोसे बनाना चाहिये । काष्ठमय धनुष-यह स्थापना । अ० २४८ में पुष्पादि पूजाफल । चन्दन, बेत, छाल इत्यादिसे तय्यार करना धनुर्वेद-अ० २४६ धनुर्वेद । रथ, हाथी घोड़े चाहिये, किन्तु सबसे उत्तम धनुष बाँसका ही और पैदल चार प्रकारके योद्धा होते हैं। योद्धा- होता है । बाँस को शरद ऋतुमें लाना चाहिये। ओंकी क्रिया-पद्धति पांच प्रकारको है-यन्त्रमुक्त, तीर भी बाँसका ही होना चाहिये। उसके अग्र | पाणिमुक्त, मुक्तसंधारित, अमुक्त और बाहुयुद्ध भागमै सोने, चाँदी अथवा लोहेका नोकीला फल (नियुद्ध ) । शस्त्र और अस्त्र-ये युद्धके दो साधन लगा होना चाहिये। युद्ध दो प्रकारके हैं-विश्वसनीय और 'नन्दक' खड्ग-इसकी उत्पत्तिकी कथासे ही कपटयुद्ध । इसका नाम रखा गया है। मेरु पर्वत पर जिस यंत्रमुक्त -बाण तथा छोड़ने वाले अस्त्रोंका समय ब्रह्मा यज्ञ कर रहे थे, उस समय लौह दैत्य प्रयोग इत्यादि करना । पाणिमुक्त-पत्थर, तोमर ने वहाँ पहुँचकर उपद्रव मचाना प्रारम्भ किया।| इत्यादि हाथसे फेंकना है। मुक्तसंधारित-अस्र, जब ब्रह्माने अग्निकी स्तुति की, तब अग्निसे | शस्त्र द्वारा शत्रुकृत प्रहागैसे अपनेको बचाना एक खड्गधारी पुरुष उत्पन्न हुआ। उसने अपनी तथा उनके छोड़े हुए अस्त्रोंको पकड़ना । तलवारसे ही उस राक्षसका वध किया. जिससे इत्यादिका भी इसने वर्णन है। सबको असीम आनन्द हुअा। इसीसे उस तल अमुक्त-तलवार इत्यादि फेंक कर प्रहार चारका नाम नन्दक' पड़ा। अन्तमें नन्दकखग ! करनेको अमुक्त कहते हैं। नियुद्ध-शस्त्रोंके भगवानने ले लिया। खड्गके कई भेद दिये हैं। बिना ही युद्ध करनेको नियुद्ध कहते हैं । खटीखट्टर-कदाचित् जिस गाँवमे बनता था धनुयुद्ध उत्तम, प्रास मध्यम और खड्ग उसीके नामके आधार पर यह नाम पड़ा है । यह : निकृष्ट युद्ध है। धनुर्वेद सिखाने वाला मुख्य गुरु देखनेमें सुन्दर होता था । वार्षिक-( कायाच्छिद) ब्राह्मण, तत्पश्चात् क्षत्रिय, अन्तम शूद्र, होना शरीरके छेदने योग्य । सूर्पारक-यह बड़ा मज- चाहिये । शूद्रका मुख्य अधिकार युद्ध करने का है। बूत होता है। वंग -(तीक्ष्णच्छेद) गहरा घाव करने सेनामें अपने ही देशके लोगोको भरती करना में समर्थ होता है। (दीर्घः समधुरः शब्दो यस्य चाहिये । ये वचन ध्यानमें रखने योग्य हैं। खड्गस्य सः उत्तमः तलवार लम्बी और झंकारयुक्त सैनिक शिक्षा-पद्धति-(कवायद) समपदस्थान- होनी चाहिये। ५० अंगुल उत्तम। २५अंगुलकी मध्यम, पैरके अँगूठे, घुटने और हाथकी अंगुलियोंको ढाल क