पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/६९

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प्रकार हैं। अग्निपुराण ज्ञानकोश (अ) 8 अग्निपुराण पाश-पाशका वर्णन संक्षिप्त ही है। पाश दस चक्र-छेदन, भेदन, पात, भ्रमण, शमन, त्रिक- होने चाहिये। पाशकी डोरी कपास, मूंज. र्तन और कर्तन । (मूज एक प्रकारकी घास है। ) तांत अथवा पेड़ शूल-श्रास्फोट, वेदन, अांदोलिक, भेदनाल, के मजबूत छालकी बनानी चाहिये । पाश बांये आघात । हाथमे लेकर दाहिने हाथ से फेकना चाहिये । पाश तोमर-ऋजु-धात, भुजा धात, पार्श्व-धात. को कुण्डलाकृत कर मस्तक पर फेंकना चाहिये। दृष्टि-घात। चर्मवेष्टित और तूणान्वित मनुष्यों पर इस पाश गदा-श्रावृत, परावृत, पादोद्धात, हंसमई, का प्रयोग करना चाहिये। वलिात. प्नुत और विमर्द । प्रबजित, ऐसी अवस्थामें पाशका प्रयोग करना मुदगर-ताड़न, छेदन, चूर्णन, भिदिपाल, चाहिये। शत्रुको प्रथम जीत कर बाद में पाश संश्रान्त, विश्रान्त, गोविसर्ग । लगुडी ( लकड़ी) डालना चाहिये। (कहीं कहीं पर श्लोकोका अर्थ ! की क्रियायें भी वैसी हैं। स्पष्ट न होनेसे भाव भी स्पष्ट नहीं हुआ है)। वजू-अन्त्य, मध्य, परावृत्त, निदेशान्त । तलवार-तलवार बांई ओर बांधनो चाहिये। कृपाण-हरण, छेदन, घात, भेदन, रक्षण, बाएँ हाथसे म्यान पकड़ कर दाहिने हाथसे तल- पातन स्फोटन । वार निकालनी चाहिये । तलवार ६ अंगुल क्षेपणी--त्रासन, रक्षणधात, बलोद्धरण और चौड़ी होनी चाहिये। लम्बाई अथवा ऊँचाई श्रायत । ६हाथकी होनी चाहिये। वर्ण (कवच) लोहेकी गदायुद्धमें विशेषतः शारीरिक क्रियाओंकी पतली श्रृंखला ( शलाका ) और तारोंसे गुहकर आवश्यकता होती है। उनका वर्णन इस भाँति तैयार करना चाहिये । कवचके भिन्न भिन्न है-सप्तांग, अवदंश, वराह, उर्द्धतक, हस्ताव- हस्तमाली, एकहस्तावहस्तक, विहस्त बाहुपाश, भाता चमड़ेका होना चाहिये । वह मजबूत और कटिरोचित, कोद्गत, उग्, ललाट । नया होना चाहिये। उपरी भाग टेढ़ा ऊपरकी गदायुद्धकी हस्तकियाके सामान्य लक्षणः-- ओर भुका होना चाहिये। करोद्भुत, विमान, पादाहति, विपादिक, गात्रसंश्ले- सोटीका उपयोग-दाहिने हाथमें (डण्डा) लगुड़ षण,शांत, मात्रविपर्यय, ऊर्ध्व प्रहार, धात, गोमूत्र, लेकर तान कर मारना चाहिये अथवा दोनों हाथों पादक, तारक, दंड, कवरी बंध, तिर्यक्बंध, अपा- से मारना चाहिये। ( उभाम्यामथ हस्ताभ्याम् | मरी, भीमवेग, सुदर्शन, सिंहक्रांत, गजाक्रांत, कुर्यात् तस्य निपातनम् । ) बध बहुतही सफाईसे | गर्दभाक्रांत ! इसमेका बहुतसा भाग दुर्बोध और होना चाहिये। अक्लेशेन ततः कुर्वन्वधे सिद्धिः पारिभाषिक शब्दोंसे भरा हुआ है। प्रायः ये अब प्रकीर्तिता।] लुप्त हो चुके हैं। धनुर्वेद -अ० २५२। आयुध, ढाल, तलवार, नियुद्ध--बाहुयुद्ध, श्राकर्षण, विकर्ष, ग्रोवा- पाश, शूल, तोमर, गदा, परशु, मुद्गर, भिंदीपाल, | विपरिवर्त, पर्यासत, विपर्यासत, पशुमार, अजा. लगुड़, वज्र, पटिश, कृपाण, क्षेपणी, धनुष. बाण, विक, पादप्रहार, आस्फोट, कटिरानित, गात्र-श्लेष, चक्रये श्रायुध हैं । ढाल तलवारकी क्रियाय ३२प्रकार | स्कन्धगत, महीज्याजन, उरुललाटधात, विस्पष्ट- की हैं । इनके नाम ये हैं-भ्रान्त, उद्धांत, प्राविद्ध, | करण, उद्धत, अवधूत, तिर्यङमार्गगत। इसमे प्राप्लुत, विप्लुत, प्लुत, संपात, समुदीश, श्येनपात, के विशेषणोंका अर्थ लगाने योग्य है । श्राकुल, उद्धृत, अवधूत, सव्य, दक्षिण, अना गज-युद्ध-गजारोही, गजस्कंध, अवक्षेप, लक्षित, विस्फोट, करालेन्द्र, महासख, विकराल, अपरांगमुख, देवमार्ग,अधोमार्ग,श्रमार्ग, गमनाकुल, निपात, विभीषण, भयानक, प्रत्यालीढ, पालीढ, 'यभिधात, अवक्षेप, जानुबंध, भुजाबंध, गात्रबंध, बराह, लुलित, समग्र, अर्ध, तृतीयांश, पाद, पिपृष्ट, सोदक, शुभ्र भुजावेलित । यह हाथी परके पादार्ध, वारिज इत्यादि । योद्धाओकी युद्ध-क्रिया है। पोशक्रिया-परावृत, अपावृत, गृहीत, लघु, हाथीके संरक्षणार्थ दो अंकुश धारण करने ऊर्ध्वक्षिप्त, अधःक्षिप्त, संधारित, श्येनपात, गजपात, वाले, एक गर्दनपर बैठनेवाला, दो स्कंधों पर ग्राह-ग्राह्य-ये ग्यारह प्रकार पाश धारण के हैं हुए धनुर्धारी अथवा ढाल तलवारधारी होने पाश फेंकनेके प्रकार-ऋजु, श्रायत, विशाल, चाहिये। तिर्यक् और भ्रामित । प्रत्येक रथ और घुड़सवारके रक्षणार्थ तीन 1