पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/७६

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अग्निमापक ज्ञानकोष (अ)६६ अनिष्टोम कहते हैं। पहले पहल मशेनब्रोक (Muschen | 'शम्याक्षेप' नामक ग्रश किया था। उसी प्रकार broek) ने धातुशलाकाओका प्रयोग उष्णमान गजा भरतने यहाँ पर १४८ यज्ञ किए थे। ऐसी (ताप) नापने के लिये किया था। उसीके लिये कथा महाभारतमें भी मिलती है। (भारत वन-पर्व इस शब्दका प्रयोग भी किया था। कई एक श्र०80) धातुओं तथा क्षारौको भट्टीमें छोड़ देनेसे उसके अग्नि-टोम-(१) चक्षुर्मनुस् नड्चलके पिघलनेसे उनका उष्णमान किसी अंश तक ज्ञात हो ३११ पुत्रोंमें से सातवें पुत्रका नाम । दूसरे ग्रन्थोमें सकता है। प्रिन्सेपने सोने, चांदी तथा प्लातिनम | इसीका नाम अग्नितुष्ट मिलता है । (देखिये शब्द मनु) (Platinum) को भिन्न भिन्न अंशोंमें (२) एक यज्ञ विशेष । यज्ञ तीन प्रकारके मिलाकर कई ऐसी मिश्रधातुओंका आविष्कार होते हैं-(१) इष्टि, पशु, तथा सोमयाग। यह किया जिसको भट्टीमें छोड़नेसे १५४० से १७७५. सोम यागका एक प्रधान अंग है। इसमें अति- तक का उष्णमान जाना जा सकता था। विल्कुल रात्र, उक्थ्य श्रादि भेद होते हैं। इसकी भिन्न २ ठीक माप करने में केवल २५ से २० तक श्रन्तर क्रियायें नीचे दी जाती है- पड़ सकता था। जिस भट्टीका ताप जानना हो दीक्षा--इसकी दीक्षा वसन्तऋतु पूर्णिमा उसमें. इन्हीं मिश्र धातुओंके गोले छोड़ देने श्रमावरयां अथवा प्रतिपदाको लेनी चाहिये । चाहिये। प्रत्येक गोला किसी खास अंशके अनुष्टान---गार्हपत्यमें दर्भासन पर स्थित उष्णमान पर पिघलता है। अतः जो गोला | होकर यजमान पत्नि इसका प्रधान संकल्प लेती पिघल जाये उसीसे उसके उष्णमानकी स्थूल है, और यजमान प्रधान अधिकारी तथा ऋत्विजों कल्पना हो जाती थी। बहुतसे क्षारौंका जिनका को निमंत्रित करता है। द्रवणांक ( Melting Point) विदित था, उनसे ऋत्विक निमन्त्रण तथा स्वागत-इन १६, १७ भी उष्णमान मापनेका काम कार्नेली तथा विल- सदस्यौ सहित प्रधानके श्रानेपर यजमान मधुपर्क यम्स लिया करते थे। चीनीके वर्तनके कारखानों विधिकी योजना करता है। में भट्टीका उष्णमान (ताप) जाननेकी बहुत अग्नि समारोप तथा यज्ञभूमि प्रवेश-यजमान आवश्यकता रहती है। उनमें सेजरके कण सपत्नीक यश भूमिमें प्रवेश करते हैं। (चिकनी मट्टीके कण) का बहुधा उपयोग किया यावंश मण्डपयक्ष भूमिमें यह जाता था। इनके पिघलनेसे भट्ठीका तापक्रम तय्यार किया जाता है। पूर्व पश्चिमकी ओर विदित हो जाता था। यह १६ पद होता है और उत्तर दक्षिणकी ओर अग्नि मित्र-यह शुग-वंशका द्वितीय राजा ११ पद्। चारों दिशाओं और ईशान्यमें एक था। इसके पिताका नाम पुष्प-मित्र और पुत्र | एक एक द्वार होना चाहिये । श्रवशिष्ट तीन कोनों का नाम सुज्येष्ठ था। पुष्प-मित्र पतञ्जलिका में तीन मोखे होने चाहिये । मण्डप चागोरसे (ईसाके १५० वर्ष पूर्व) समकालीन राजा था। घिरा होना चाहिये । पतञ्जलि की पुस्तकों में राजा पुष्प-मित्र का अग्नि-स्थापना--प्राग्वंश मण्डपमै निर्माणित उल्लेख है। कुण्ड और वेदीमें अग्निका श्राह्वान किया जाता है। अग्निवेश्य--(१) एक ब्रह्मर्षि । दीक्षणीयेष्टि---जिन नियमाका यक्षारम्भसे अन्त (२) सूर्यवंशी नरिष्यन्त राजाके कुलमें | तक पालन किया जाता है वही दीक्षा कहलाती उत्पन्न राजा देवदत्तका पुत्र । इसके दूसरे नाम है। देवताओंके प्रीत्यर्थ पुरोडाशका हवन किया जातुकर्य और कानीन हैं। तपोबलसे यह जाता है। हवनके पश्चात् उत्तर दिशाम बैठकर ध्राह्मण हो गया था। इसके पुत्रका नाम अग्नि यजमान क्षौर इत्यादि करके स्नान करता है। घेश्यायन था। यजमान पति भी स्नान करती है। तब दोनो (३) अगस्त्य ऋषिका एक शिष्य । इससे नये वस्त्र पहिन कर यश कर्ममें प्रविष्ट होते हैं। ही द्रोणाचार्यने धनुर्वेदकी शिक्षा पाई थी, और प्रानगि येष्टि--दीक्षणियेष्टि के दूसरे दिन यह ब्रह्मशिर नामका अस्त्र पाप्त किया था। किया जाता है। पथ्या स्वस्ति, अग्नि, सोम, सविता, (४) महाभारतमें इसी नामसे प्रसिद्ध अनेक अदिति इत्यादि प्रधान देवता होते हैं। अदिति राजा पाण्डवकी श्रोरसे युद्ध कर रहे थे। के अतिरिक्त सबका धन धीसे किया जाता है। अग्निशिर-काम्यक बनके उत्तर में एक अदितिफा होम कुण्ड मध्यमें होता है और हवन तीर्थ । यहाँ पर सृञ्जयके पुत्र राजा सञ्जयने भानसे किया जाता है। मराडप