पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/८०

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ज्ञानकोश (अ) ७० अग्रवाल अाक्रमण किया था उस समय ये लोग फिरसे गई और उच्च, नीचका विचार होने लगा। अब उन्नतिके शिखर पर पहुँच चुके थे और नन्दराज भी इनका मुख्य स्थान पश्चिमोत्तर है और इनका राजा था। सिकन्दरने इसीके समीप वैश्योंकी एक शाख मानी जाती है। ये जैन साइरेस (आधुनिक सिरसा) नामका एक नगर श्रथवा वैष्णवधर्मके माननेवाले होते हैं। इनके बसाया किन्तु अग्रोहाके कारण उसकी कुछ भी दो मुख्य भेद है-(१) मारवाड़ी और (२) उन्नति न हो सकी। तब उसने कूटनीतिका | देशी। इनमें समयके हेर फेरसे अब विवाह प्रयोग कर वहाँके निवासियोमें धार्मिक फूट करा | इत्यादि भी नहीं होता। अग्रवालौके पूर्वज रत्नसेन कर तथा व्यापार वृत्तिवालो और राजकुल वालो और गोकुलचन्दके कुलद्रोही होनेसे उनके वंशज में परस्पर विरोध कराकर अपने नगरको बसाना : कलारी (कुलारी) कहलाते थे जो श्राजकल चाहा। उसे इसमें सफलता भी प्राप्त हुई, और कलवार और लोहियाके नामसे प्रसिद्ध है। यद्यपि उसी समयसे तीन सौ वर्ष पर्यन्त इसका अधः इनके वंशमें कोई दोष नहीं है तथापि सतियोंके पतन होता रहा। तदनन्तर लोहाचार्य के उत्तम आपसे इनका अपनी जातिमें अन्य लोगोंको भाँति उपदेशोसे एक बार फिर इन लोगों उन्नति को। स्थान नहीं है। इन लोगोंसे अन्य अग्रवाल रोटी सं० ७८१ ई. के फाल्गुन मासमें अग्रोहा- | बटीका सम्बन्ध नहीं रखते। इसी भाँति इनके निवासी शिवानन्द और धर्मसेनके कहनेसे धाम- दो मुख्य भाग और हैं--(१) वीसे और (२) नगरके राजा समरजीतने इसपर चढ़ाई कर दी दस्से (उस्से)। दस्सों (दशांशा) की उत्पत्तिके थी। उसीके बाद इस नगरको संकटावस्थामें | विषयमें कहा जाता है कि इनके पूर्वज राजाओंकी देखकर सिरसामें रहनेवाले रत्नसेन गोकुलचन्दने बहुत सी उपपलियाँ थीं, जो समान कुल और मुहम्मद अबुलकासिमको समाचार भेजकर ७१२ / वर्णकी नहीं थीं। उनसे जो सन्तान हुई वे केवल ई० में उससे इस नगर पर चढ़ाई करादी । उसने | श्राधे (अर्थात् वीसी विस्वे अग्रवाल न होनेसे) इस नगरके साथ ही साथ सिरसाको भी लूटकर अग्रवाल थे। श्रतः वे दस्से (दशांशा) हुए बरवाद कर दिया। हजारों नारियाँ अपने पतियों और अन्य जो वीसो बिस्के (अर्थात् जिनके माता के साथ सती हो गई और मरते समय वहाँके पिता दोनो ही अग्रवाल थे)थे बीसे कहलाये । निवासियोको अग्रोहा छोड़नेका श्रादेश किया इन लोगोंमें भी प्रापसमें सम्बन्ध नहीं होता। यो और रत्नसेन और गोकुलचन्दके वंशजोंको श्राप तो देश तथा प्रान्तके अनुसार इनकी भी भाषा दिया कि समाजमें इनका स्थान बहुत गिर जावे। भिन्न भिन्न है किन्तु ज्यादातर ये लोग खड़ी बोली उसके पश्चात् इस नगरके बचे हुए ऐश्वर्यको बोलते हैं और गौड ब्राह्मण इनके पुरोहित होते शाहबुद्दीनगोरीकी भारत पर चढ़ाईने बिल्कुल है। मांस मदिराका व्यवहार वर्जित है। विवाह नष्ट कर दिया (१२ वीं शताब्दी)। तबसे फिर इत्यादिमें बहुत व्यय करते हैं। वृद्धोंकी मृत्यु इनका पूर्व गौरव कभी प्राप्त नहीं हुअा। इन्हीं पर उत्सव मनाते हैं तथा विरादीमै भोज देते श्राफमणोंके समय ये चारों ओर फैल गये। बहुतों हैं। यद्यपि अाधुनिक शिक्षाका प्रभाव अन्य ने भयसे जनेऊ इत्यादि तोड़ डाले। पानीपत, | जातिकी भाँति इनपर भी बहुत पड़ा है किन्तु नारनौल, जैगाँव, देहली, मेरठ, अलीगढ़में बहुत मारवाड़ आदि प्रान्तोम तथा जिनमें नवीन सभ्यता से आकर बस गये। कुछ मारवाड़ उज्जैन और नहीं घुसी है उनका पहिनावा सीधा सादा है। मन्दसोर तक चले गये और वहीं पर रहने लगे। पगड़ी गंगा इनमें अब भी बहुत प्रचलित है। बहुतसे पूरब और दक्खिनमें जाकर बसे। बाहर | स्त्रियाँ लहँगा ओढ़ना पहनती हैं। इनके चार जाकर बहुधा ये लोग व्यापार ही करते थे। व्यवहार सरल तथा उच्चवणोंकी भाँति होते हैं। अन्तमे देहली इत्यादिमें बसे हुए अग्रवालोका विधवा विवाहकी प्रथा नहीं है। व्यापार क्षेत्रमें मुगल दरबारमै फिरसे बहुत सम्मान हुआ। धन | इन्होंने अच्छी उन्नति की है। इनमें बड़े बड़े सेठ धान्यसे परिपूर्ण होनेके अतिरिक्त राज्य दरबारमें साहूकार धनधान्यसे पूर्ण समृद्धिशाली व्यक्ति हैं। भी ये बड़े बड़े प्रतिष्ठित पदो पर थे। टोडरमल प्रायः देशके सभी बड़े बड़े नगरोमें ये व्यापारके और मद्धशाहका नाम अकबर के दरबार में विशेष हेतु बसे हुए हैं और देशके प्रत्येक भागमें ये महत्व का था। प्रसिद्ध है। ये बहुधा उदार और सरल प्रकृति आधुनिक अवस्था तथा प्राचार व्यवहार-समयकी | के होते हैं और दान धर्म में विशेष श्रद्धा होती है। गतिके साथ इनमें भी बहुत सी उपजातियाँ हो । भारतमें अधिकतर हरएक नगरोंमें इनकी बनवाई