पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/८४

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अघोरी •ज्ञानकोष (अ अघोरी पंथकी श्राधुनिक स्थिति-आजकल इनके विषय के रोकने पर भी इन नङ्गं साधुनोने उस समय में अनेक घृणित तथा निन्दनीय विचार फैल रहे तक अपनी यह क्रिया वैसी ही जारी रक्खी जब हैं। १६८७ ई० में लन्दनके थेवेनो नामक लेखक तक इनकी माँग न पूरी की गई। ड्रक प्राकमन ने इनका वर्णन किया है। बम्बई प्रान्तके भडोच नामक एक इण्डियन मेडिकल आफिसरके अनु- जिलेके एक गाँव में जो 'डेबका' ( Dehea) के सन्धानके आधार पर, एच० बालफरने एक बामसे प्रसिद्ध है इनकी जो थोड़ी बहुत बस्ती है | श्रवधड़की कथा वर्णन की है। उनका कथन है उसके विषयमें उसने लिखा है। इसको वर्णन कि पञ्जाबके पटियाला राज्यमें रहनेवाला वार्डके ग्रंथ (Ward's View of Hindus) में एक लोहार जातिका मनुष्य नित्य भीख भी मिलता है। टाड साहबने अपनी पश्चिम माँगा करता था। उससे एक अवघड़से भेट भारतकी यात्रामें आबू पहाड़के अवघड़ोंका वर्णन हो गई और वह उसीका शिष्य बन गया । fet ( Tod's Travel in W. India ) वह बद्रीनारायण, नेपाल, जगन्नाथजी, मथुग उनका कथन है कि फतेपुरी नामक एक विख्यात | इत्यादि भ्रमण करता हुश्रा अन्नमें भरतपुर अवघड़ पन्थी कई वर्ष तक एक ही गुफा रहता | पहुँचा। बातचीनमें उसने इस भाँति वर्णन था। अन्तमें उसीकी श्राशानुसार वह उसी गुफा | किया है कि वह सब जातिका छुश्रा हुश्रा अन्न खा में जीवित ही चुन दिया गया (समाधिस्थ कर ! लेता है क्योंकि जाति-भेदमै उसका विश्वास नहीं दिया गया)। टाडसाहबसे वार्ता करते समय है। यद्यपि वह स्वयं नर-मांस भक्षण नहीं करता एक महाशयने उन्हें सूचित किया था कि जब वह क्योंकि उसमें उतनी शक्ति नहीं है, किन्तु मृतक अपने मृतक भाईका शव स्मशानमें ले जा रहा था को जीवित करने की शक्ति रखने वाले और मन्त्र तो एक अवघड़ने उस शवको चटनी बनानेके सामर्थ्य से परिपूर्ण अधोग नग्मांस भी खाते हैं। लिये माँग लिया। कालिका देवीको बलि चढ़ा- | जिनको इतनी शक्ति नहीं होनी वह मनुष्यकी कर भोग लगानेके लिये ये मनुष्योंको पकड़ते थे | खोपड़ीमें भोजन जलपान करते हैं। घोड़ेके ( Martin Buchanan & E. India ii 4024) मांसके अतिरिक्त अन्य सब मृतक पशुओंका मांस बकनन साहबने अपनी पुस्तकमें इस प्रकार इन यह खाते हैं। लोगोका वर्णन किया है कि १६वीं शताब्दीके घोड़ेके मांसके लिये ही केवल क्यो श्राझा नहीं आरम्भमें गोरखपुरमै एक अवघड़ वाहरसे पहुँचा है, इस विषय पर निश्चय रूपसे कुछ कहना कठिन और राजाके समीप पहुँच कर उसपर गन्दो चीजे ! है। कुछका मत है कि घोड़े और इनके पंथके फेंकना प्रारम्भ की। राजाने जिला न्यायाधीशके नाममें समानता होने के कारणही ये उसे नहीं यहाँ यह समाचार भेजा। न्यायाधीशने नगर | खाते। कुछका कथन है कि पूर्व कालसे ही घोड़े निर्वासनका दण्ड दिया । किन्तु न्यायाधीश गौ की भाँति पवित्र माने गये हैं। श्रतः उनको तत्काल ही बीमार पड़ गया और राजाके पुत्रका : निषिद्ध माना है। तो देहान्त तक हो गया। लोगोंकी धारणा थी अवघड़ पन्थका अन्य हिन्दू धर्मोंसे सम्बन्ध अघोरी कि यह साधुके अपमानके कारण ही हुआ। अपनी ही क्रिया लिप्त रहते हैं । उनको दुखरे धर्म 'The revelations of an Orderly' नामक सम्बन्धी विचार अभी तक भी भली-भाँति विदित पुस्तकमें इन लोगोंके कृत्योंके बड़े रोमाञ्चकारी नहीं हुए । काशीके समीपके श्राधुनिक प्रावधड़ोंकी वर्णन दिये हुए हैं। अन्तमें लेखकने इन सब उत्पत्ति महात्मा किनारामसे हुई है। किनारामके प्रथाओको कानून द्वारा बन्द करनेकी प्रार्थना सर- | गुरू कालूराम गिरनार पर्वतपर १८वीं शताब्दीमें कारसे बड़े प्रभावपूर्ण शब्दोमै की है। इस रहते थे। कुछ अवघड़ अाज कल 'किनारामी' के पुस्तकके पश्चात् ही सड़को पर बिल्कुल नङ्गे नामसे भी प्रख्यात हो रहे हैं। इनके धार्मिक विचार घूमनेकी प्रथा कानून द्वारा बन्द की गई और | तथा अन्य प्रथाय 'परमहंस' साधुश्रीसे मिलती मनुष्य-मांसभक्षण भी कानूनकी दृष्टिसे दण्ड जुलती हुई हैं । परमहंस ब्रह्मस्थितिमें निमग्न योग्य अपराध निश्चित हुआ। तथापि १८८७ ई० | रहते हैं और उनके लिये सुख दुःख समान है। में उज्जैनमें एक ऐसे ही साधुओंकी मण्डली । संसारसे बिल्कुल अलिप्त रहते हैं और भोजनादि पहुँची और एक बकरी वहाँक अधिकारियोंसे | के विषयमें भी कुछ विचार नहीं होता। माँगी, न मिलने पर वे क्रुद्ध होकर स्मशान पर जीवनके साधनोंके विषयमें सरभंगीपंथ वाले पहुँच कर शवोका मांस भक्षण करने लगे। पुलिस | भी बिल्कुल ही उदासीन होते हैं । किन्तु अवघड़ों,