पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

! हवाका अचेष्ट ज्ञानकोश (अ) ७७ अचेष्ट से पाया तो वह संभवनीय नहीं है, और इतना विछिन्नकिरणदर्शक यंत्र होता है। इसके बारीक फरक कैसे पड़ता है इसका भी निराकरण नहीं छिद्रमैसे देखनेसे यदि नत्र होगा तो एक पीली हुआ। दोनों रीतिसे तैयार किया हुआ नत्र पाठ रेखा दिखाई देगी। यह पीली रेखा जिस समय महीना रखकर देखनेसे भी उनके वि गु० में कुछ बिल्कुल गायब हो जाय उस समय नत्रका पूर्ण- फरक नहीं देख पड़ा। उसी प्रकार विद्युस्फुल्लिंग । रूपसे लुप्त होना समझना चाहिए । इसके बाद का भी कुछ परिणाम नहीं देख पड़ा। अधिक शक्तिमान यंत्र, "विछिन्नकिरण” से तबसे ऐसी शंका होने लगी है कि हवामें देखा जाता है। अचेष्टका विछिन्न-किरण पर नत्रकी अपेक्षा अधिक वि• गुरु का कोई एक वायु आश्चर्यमय प्रभाव होता है। परिस्थितीके अनु- ( Inert gas) होगा। जिस कारणसे यह फरक ! सार वह रक्तके समान लाल किरण होते हुए भी पड़ता होगा। इसका पूर्ण निराकरण लार्ड रेले फौलादके समान नीला हो जाता है। विद्युत्प्रवाह और सर विलियम रॅमसे ने किया। उस समय का जोर तथा अन्य भार इत्यादि योग्य परिस्थिति नत्र सर्व नत्रानभावी है अथवा में होनेसे अचेष्टका विछिन्न-किरण पर नीले रंग नहीं, और वातावरण नत्र तथा दूसरे पदार्थों का का प्रभाव पड़ता है। नत्र एकही है अथवा भिन्न भिन्न है, यह प्रश्न उठा। दूसरी क्रियाके अनुसार हवाके नत्रका शोषण सर हेनरी कॅव्हेन्डीशने तो १७८1 ई० में यह मग्न ( Magnesiun ) से किया जाता है । इसके प्रश्न करीब करीब हल ही कर दिया था। लिये मग्नधातुका बुरादा मज़बूत कांच अथवा लोहे १८६४ ई० में रेले और रॅमसेने ब्रिटिश असोसि. की नलीमें भरना चाहिए । इस नलीके रक्तोष्ण एशन को वातावरणमैं एक नये वायुके श्रावि-: होते ही ताम्रसे निष्प्राण की हुई हवा इसी रक्त कारकी खबर दी। इस वायु पर किसी प्रकार मग्नमेंसे ले जानी चाहिये। मग्न धातु और निर्जल का रासायनिक प्रभाव नहीं हुआ । इसलिये इसका खट प्राणिदका मिश्रण, केवल मन धातुके साथ अचेष्टश्रथवा निगुण (आर्गन ) ऐसा नाम रखा मिश्रण करनेके मुकाबले में अति त्वरित होता है। गया इस नवीन वायुके गुण-धर्म संबंधी जिज्ञासा इस प्रकार तैयार किये हुए अचेष्टकी धनता रॉयल सोसापटीमें जनवरी १८६५ ई० में भेजी. १६४४ होती है । गई, और यह नवीन वायु वातावरणमैं से पृथक अचेष्ट पानी में विद्राव्य होता है । १२ मान करनेका प्रयोग बड़े प्रमाणमें श्रारम्भ किया गया। पर लगभग ४ प्रतिशत प्रमाण में पानी में विद्वत वातावरणमे से निगुण ( जड़) वायु दो होता है अर्थात् नत्रकी अपेक्षा २ गुना अधिक तरहसे पृथक् किया जाता है। पहली रीति कव्ह अचेष्ट विदुत होता है । प्रायः सब ही वायुके न्डीश द्वारा की गई थी किन्तु उसमें बहुत से विशिष्ट तापका गुणकांक १४ होता है, परन्तु सुधार किए गए । इसमें हवा और उज्जनके. अचेष्टके विशिष्ट तापका गुणकांक १६७ होता है। मिश्रण पर विद्युस्फुल्लिंगकी क्रिया की जाती है हवाके मानसे अचेष्ट्रकी वक्रीभवनता केवल ६१ और तैयार हुए नत्राम्लका शोषण पतले अल्क- है। अचेष्ट का हवाके मानसे १.२१ होता है। हीन द्रव (Alchot ) में होता है। इस मिश्रण से नत्र उपरणुमानका परिणाम अचेष्ट पर क्या होता है लुप्त हुअा अथवा नहीं, यह देखने के लिये एक वह निम्न लिखितकोष्टक में दिखया है। ... हिमांक स्थित्यन्तर दर्शक उष्णमान (क्रिटिकल टेम्परेचर) उत्क्वथनांक (बॉइलिंग नाम स्थित्यन्तर दर्शक भार (क्रिटिकलप्रेशर) (फ्रीजिा पॉइंट) पॉइंट) ३५.० -१६४४ -२१४० अचेष्ट ५०.६ प्राणु -११ yo's ?