अच्युताश्रम ज्ञानकोश (अ) अजगर अच्युताश्रम-यह अपनेको "चिदानंदानु- | थी। 'अजविलाप' नामक रघुवंशका भाग बड़ा चर" कहते थे। इससे यह विदित होता है कि, ! मनोरंजक है। चिदानंद इनके थे। इनके शिष्य गोपाल (५) ( विदेह वंश ) अर्द्ध केतु नामक याज्ञवल्की कृष्ण याज्ञवल्कीके पुत्र थे। इनके जनकका पुत्र और पुरुजित जनकका पिता। प्रार्थना करने पर शिवकल्याण ने श्री अभनुवामृत (६) सोमवंशी कुलोत्पन्न जन्हुराजाका पुत्र की टीकाकी रचना की थी। इससे यह अनु- पुरु राजा। उसका यह नामान्तर है। भव किया जा सकता है कि शिवकल्याण इनके (७) भारती युद्धका एक पांडव पक्षीय राजा समकालीन अथवा किंचित पूर्वकालीन हो गये | (भारत उद्योगपर्व अ० १७१) हैं। उनका काल १५५७ ई० था। (ग्रंथ--भग अजगर-यह प्रचण्ड सर्प अमेरिकाके न्यू- वद्गीता (१६१४ ? ) ब्रह्मकथा, राम वोविया गिनी-की खाड़ीके पास हिन्दुस्तान, पूर्वी द्वीपों. (सं० क० का० सू०)। अफ्रिका के दलदलके भागों, तथा अन्य उष्ण अच्युताश्रम शिष्य-उपरोक्त उल्लेखके आधार | कटिबन्धके प्रदेशोंमें विशेषतासे पाये जाते हैं। से यह कृष्ण याज्ञवल्की हो सकते हैं (१५५७)। अजगरकी लगभग चालीस जातियाँ हैं। उनमेंसे अच्युताश्रमकी श्रीभगवद्गीता १६१४ ई० में अधिक अमेरिकामे हैं । मेक्सिकोसे ब्रेज़िल तक के लिखी गई और उनके शिष्य की प्रार्थना पर शिव- प्रदेशमै एक जाति है जो मटमैली और सुघनी कल्याणने १६५७ ई० में टीका लिखी, ये दोनों रंगकी होती है और जिस पर १५-१६ धारियाँ कल्पनाएँ जरा संशयात्मक हैं। (ग्रंथ-शतक पड़ी रहती हैं। अजगरोंकी कई जातियोंका झान, शिवस्तुति, रामस्तुति (सं० क० का० सू०)] स्वभाव बिलकुल शांत होता है। अछनेरा-संयुक्त प्रान्तके जिला श्रागराके अजगर अपनेसे भी बड़े प्राणियोंको निगल किरवाली ताल्लुकेमें यह एक गाँव है। आगरा सकता है। क्योंकि उसका जबड़ा बहुत बड़ा और राजपूताना, मालवा और कानपूरके मार्गमें होता है। अजगर ३० फीट लम्बा होता है और अछनेरा रेलवे जंकशन है। उ० अ० २७१० । प्रायः ६० फीट तक लम्बा भी सुननेमें श्राया हैं। और रे० ७७४६ । यहाँकी जन संख्या ६००० ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्राचीन रोम शहरके के लगभग है। अट्ठारहवीं शताब्दीमें जाट लोगो उन्नतिके समय १२० फीट लम्बा सर्प वेगाडॉसके की आबादी यहाँ बहुत थी और इस शहरका किनारे पर पाया गया था। इस अजगरको महत्व भी बहुत कुछ था। इसके बाद इसका | मारनेके लिये रेम्यूलसके सैनिकोंने सब प्रकारके लोप होकर जबसे रेलवेका जंकशन हुआ तबसे । हथियार चलाये परन्तु कुछ उपयोग नहीं हुआ । यह फिर महत्वका स्थान हो गया है इस अजगरने सिपाहियोकी टोलियोको निगल १८५६ ई० के नियमकी २० वीं धाराके आधार डाला। आखिरकार उस पर बड़े बड़े यन्त्र चलाये पर यहाँकी शासनव्यवस्थाकी गई है। यहाँ गये तब वह मारा गया। इस अजगरके विषय व्यापार बिल्कुल नहीं होता। यहाँ पर बिनौला में जो कुछ कहा गया है उसमें कुछ सत्यता तो निकालनेका एक कारखाना है। इस कारखाने में | अवश्य है परन्तु इसमें भी सन्देह नहीं है कि १५० मनुष्य काम करते हैं। यहाँ एक प्राइमरी इसकी लम्बाईके विषयमे अतिशयोक्ति की गई है। यह बिलकुल सत्य है कि अजगर पूरे बकरे, अछूत-भारतकी कुछ नीचजातियाँ जिनको सूअर तथा मनुष्यको निगल जाता है । १८६१ ई० उच्चवर्णक लोग छूना पसन्द नहीं करते। (विशेष मैएक अजगरने एक कम्बल खा लिया था । परन्तु व्यौरके लिये 'अस्पृश्य देखिये) उसे वह पचा न सका। इस कारण वह चार अज-(१) परमेश्वरका नाम । (नहि जातो सप्ताह पेटमें रहकर फिर मुंहसे निकल पड़ा। न जायेऽहं न जनिष्ये कदाचन। क्षेत्रज्ञः सर्व इसके बाद वह अजगर शीघ्र ही मर गया। भूतानां तस्मादहमजः स्मृतः ॥ महाभारत । अजगर जातिका उल्लेख प्रायःवैदिक साहित्य, (२) प्रियव्रतवंशी ऋषभदेवके कुलोत्पन्न | विशेषतः अथर्ववेदमें मिलता है। यज्ञमें दी जाने प्रतिहर्ता नामक राजाको “स्तुति" से उत्पन्न हुए | चाली बलिकी सूची में अजगरका भी नाम है दो पुत्रोंमें से यह ज्येष्ठ पुत्र था। पुराणों में प्रायः राजा नलकी कथामें अजगरका (३) एक ऋषि और उसका कुल । उल्लेख आया है। निद्रावस्थामें दमयन्तीको (४) रघुका पुत्र। इसकी पत्नी 'इंदुमति छोड़ कर जब राजा नल चले गये थे तब उनका स्कूल है।
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