अजमेर-गैरवाड़ा ज्ञानकोष (अ)८६ अअमेर-मेरवाड़ा ई० में मुगल राज्य की अवनतिके समय फिरसे शहरों में मकान पत्थरोंके बने होते हैं परन्तु मारवाड़के राजा जसवंतसिंहके पुत्र अजितसिंह | गावोमे वे मट्टोके ही होते हैं। श्रारोग्यताकी स्वाधीन हो गये कुछ वर्षोंके बाद जमेरका (Sanitation ) दृष्टिखे वहाँके मकान अच्छे नहीं किला तथा प्रांत मराठोंके अधिकारमें गया। हैं। कबड्डी कसरत, पटाबाजी, कुश्ती श्रादि अंतमे दौलतराव सोंधियाके हाथसे १८१८ ई० को यहाँ के खेल हैं। श्राजकल किकेट, फुटवाल जुलाईमें यह राज्य अंग्रेजोंके हाथ लगा। श्रादि अंग्रेज़ी खेलोका भी समावेश होने लगा है प्राचीन इतिहासकी दर्शनीय इमारते अथवा लोगोंमें गाना बजाना सितार, बीन, श्रादि की प्राचीन चीजें तथा स्थान अजमेर और पुष्कर विशेष रुचि है। छोड़कर शायद ही कहीं हैं। अजमेर प्रांतके होली, दिवाली. विजयादशमी और तेजाजी दक्षिणपूर्व भागमें बहुत पुराने हिन्दू मन्दिरोंके का मेला इत्यादि यहाँ के हिन्दुओंके मुख्य त्योहार अवशेष दिखाई देते हैं। है। यहाँ व्यापारी लोग गणगौर नामक एक त्योहार १६०१ ई० के मदुमशुमारीके अनुसार (अज- मनाते हैं। पार्वती देवोका अपने पिताके यहाँ मेर २६७४५.३ तथा मारवाड़ २०६४५६) अजमेर वापस जानेका यह मेला होता है। तेजाजीका मारवाड़की आवादी ४७६६१२ ( १६११ में मेला जाटोंका उत्सव है । तेजाजी नामक एक जाट ५८१३६५. और १६२८ में ४६५२७१) थी। यह योद्धा हो गया है। १८६१ ई० से बहुत कम है और इसका कारण यहाँ की खेतीकी स्थिती सन्तोषजनक नहीं है, बराबर अकाल पड़ते रहना है। प्रत्येक वर्ग मीलके क्योंकि मट्टी उपजाऊ नहीं है। बहुनसे टीले, पीछे १७६ आबादी थी। वही सन् १८६१ ई० छोटी छोटी चट्टाने सब ओर फैली हुई हैं। यहाँ में २०० थी। इस प्रान्तमे ४ बड़े शहर तथा| वृष्टि बहुत कम और अनियमित होनी है। इस ७४० गाँव है। जनसंख्याके मानसे पुरुषोका कारण जमीनमै खाद अधिक डालनी पड़ती है। प्रमाण ५२६ प्रतिशत है। १६८१ में निम्नलिखित गेहूँ, ज्वार, मका, कपास इन्यादि यहाँकी स्थिति थी। मुख्य पैदावार है। पुष्कर नदीके आस पास टोटल पुरुष स्त्रियाँ ॐखकी खेती की जाती है और तड़गाड़ तहसील अविवाहित १७६३३८ ११३६४३ ६२३६५ में अफीमके पौधे लगाये जाते हैं। एक जाड़ेमें विवाहित २३२४२० ११६४५१ ११६४६६ और दूसरी वसंतऋतु-दो फसल होती है। विधुर तथा विधवा ६७६५४ २०६१४ ४७०४० जमीनकी लगान पैदावारके रूपमें दी जाती छोटे लड़कोंकी शादीकी प्रथा कम है। है। पैदावारके से तक मालिकको लगान दो अथवा अधिक स्त्रियाँ करनेकी प्रथा बहुधा मिलता है। कुछ स्थानों पर लगान धनके रूपमें नहीं है। उच्च जातिकी स्त्रियोंका दूसरा विवाह देते हैं । मजदूरोको मजदूरी दो बानेसे चार पाने नहीं होता । मुसलमानोंमें तलाक देनेकी प्रथा प्रच रोज तक होती है। कारीगर (पेशराज), बढ़ई लित है। जाट इत्यादि जातियोंमें विधवा-विवाह | लोहार इत्यादिको चार श्रानेस पाठ श्राने तक प्रचलित है। मारवाडमे जायदाद माँकी ओरसे रोज मिलता है। देहाती मजदुर्गेको अनाज देने मिलती है। अजमेरके उच्च घरानौमै सारी रिया- की प्रथा है। शहरमै मध्यम श्रेणीके लोग खाने सत बड़े लड़केको मिलती है। छोटी लड़कियों ! पीनेसे खुशहाल है, परन्तु किसानोंकी दशा अभी को मार डालनेकी प्रथा कहीं नहीं है। तक सुधरी नहीं है। यहाँकी भाषा राजस्थानी तथा हिंदी है। अजमेर मारवाड़के पहाड़ोंमें धातुओंकी अनेक लोग उद्योगी तथा उत्तम आचार व्यवहारवाले है खाने हैं। अजमेरक उत्तरके पहाड़में लाहे और परन्तु अकालके समय मारवाड़के मेर तथा अज ताँबेकी खाने हैं और तारागढ़के पहाडमें सीसा मेरके मिन जातिके लोग डाका इत्यादि डालते हैं। (led) पाया जाता है। यहाँ हिन्दुओंके बाद मुसलमानोकी जनसंख्या अजमेरमें कला अथवा अन्य प्रकारके काम है। यहाँके हिन्दू वैष्णव, शैव तथा शाक्त, तीनो विशेष उल्लेखनीय नहीं है, मारवाड़की ता बात ही पंथोंके हैं। प्रतिशत ५५ श्रादमी खेती पर अपनी छोड़ दीजिये। कहीं कहीं करधों पर कपड़ा, और उपजीविका चलानेवाले हैं, कुछ लोग जुलाहोंका | हाथी दाँत और लाखको चूड़ियाँ बनती हैं। तथा चमड़ा कमानेका काम करते है। उच्च हिन्दु अजमेरके जलमै दरियाँ और कालोन बनते हैं। वर्गके लोग अधिकतर शाकाहारी है। इस प्रान्तकी राज्य-व्यवस्था कमिश्रर करता
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