पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/९९

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WARTARRAIN 1 अजमेर-मेरवाड़ा ज्ञानकोष (अ)८५ अजमेर है। वह अजमेर में रहता है। प्रधान न्यायाधीश, संख्या ४७१८ थी और कन्याओं की संख्या १८४० पुलिस विभाग, जंगल विभाग और शिक्षा विभाग | थी। अब तो यह संख्या उत्तरोत्तर बहुत बढ़ती के अधिकारियों पर उसका पूरा अधिकार रहता | जा रही है। स्कूल, कालिज इत्यादिमें पढ़ने है। इसकी मदद के लिये दो असिस्टेन्ट कमिश्नर वालोंकी संख्या १६२८-२६ ई० में १२६६० थी होते हैं। इस प्रान्तके तीन भाग किये गये हैं। और ऐसी कन्याओंकी संख्या २४ थी। वे अजमेर, मारवाड़ और तोड़गढ़ हैं। राजपू अजमेर-यह राजपूतानेके अजमेर-मारवाड़ तानेके गवरनर जनरलका एजेन्टही चीफकमिश्नर प्रान्तका मुख्य शहर है। उ० अ० २६२७ और होता है। रे० ७४३७ । यह शहर बम्बईसे ६७७ मील अजमेर में लगानकी पद्धति राजपूतानेकी अन्य उत्तर है। (१६११ ई०.) में यहाँको जनसंख्या रियासतोके समान है। जमीनके दो भाग किये ६२२२ थी। १८७६ ई० से यहाँ रेलगाड़ी बन. गए हैं ---एक खालसा और दूसरा इस्तमरारी जानेसे यहाँको जन-संख्या दिन दूनी रात चौगुनी (सेनाके लिये छोड़ी हुई अमीन)। परन्तु जब यह बढ़ती जाती है । (इस शहरके इतिहासके संबंध प्रान्त मरहठोके अधिकारमें आया तब उन्होंने अजमेर-मारवाड़ देखो।) अपने लाभकी दृष्टिसे सेनाके लिये जमीन लेने के यह शहर तारागढ़ पहाड़ के नीचे बसा है। बदले एक निश्चित कर धन-रूपमें लेना प्रारम्म , यहाँकी सड़कें चौड़ी हैं। इमारतें भी सुन्दर किया। जब यह प्रांत वृदिशोंके अधिकारमें गया शहरके चागे ओर एक पेग बना हुआ है। उसमें तब उन्होंने यह लगान (कर) बहुत बढ़ाया। पाँच फाटक हैं। घेरेकी स्थिति अच्छी नहीं है परन्तु १८७३ ई० में इस्तमरार लोगों को सनदे दी तारागढ़ पहाड़ पर किला बना हुआ है। किलेके गई और लगान स्थायी रूपसे निश्चित कर नीचे शहर बसा है। किलेकी ऊँचाई लगभग दिया गया। १३००-१४०० फोट है। १८३८ ई० में किला बेकार दूसरी ध्यान रखने योग्य यहाँ की 'भूमि' हो गया । १६० ई० से किलेमें नसीराबाद पद्धति है। ऐसी जमीनके मालिकको भूमिया और मऊकी अंग्रेजी सेना ग्रीष्म ऋतुमे रहती है। कहते हैं। पहले भूमियों के काम तीन प्रकारके किलेमें सय्यद हुसैन नामक एक मुसलमान होते थे- (१) जिस गाँवमें भूम होता था वह फकीरकी कब्र है। ऐसा उल्लेख है कि १७२८ ई० उसका रक्षण करता था। (२) जो यात्री लोग अर्थात शक १६६१ में नादिरशाहने दिल्ली लेनेके श्राते थे उनके जान मालकी रक्षा करता था । (३) बाद इस पीरके दर्शनके लिये आनेका इरादा किया असावधानीसे हुए नुकसानको भर देना । था। (राखं०६-१३३, २४४ ) किन्तु यह नहीं आज कल इन लोगोंका काम लड़ाई में सरकारको कहा जा सकता कि वह फकीर यही था अथवा मनुष्योंकी सहायता करना मुइनउद्दीन । बृटिश राज्यके पहले मारवाड़में कोई खास | अजमेरमें अनेक प्राचीन इमारतें हैं। 'अढ़ाई सत्ता न होनेके कारण वहाँकी जमीनके लगान , दिनका झोपड़ा' नामक एक मसजिद बहुत प्राचीन इत्यादिकी कुछ पद्धति नहीं थी। १८५१ ई० में | है। प्रथमतः यह मसजिद चौहान वंशीय राजा जो पैमाइश हुई उसमें (अजमेरके) सब जमीन | विशालदेवकी बनवाई हुई वेधशाला थी, परन्नु जोतने वाले जमीनके मालिक बनाये गये । मुहम्मदगोरीने इसे भसज़िदके रूपमें बदल दिया। आमदनीका दूसरा उपाय अफीमका कर है। ऐसा कहा जाता है कि जिस समय मुहम्मदगोरी इस देशकी श्राफीम चीन तक जाती थी। इस शालाके पाससे जा रहा था, उस समय कुछ वर्ष पूर्व यहाँके ऊँचे दोंके विद्यार्थी | उसने फर्माया था कि अढ़ाई दिनके वाद आने पर एलाहाबाद युनिवर्सिटीकी परिक्षामें शरीक होते | यह शाला मसजिदके रूपमै होनी चाहिये और वह थे; किन्तु अब यहाँ ( Intermediate Baord) उस मसजिदमें नमाज पढ़ेगा। इसलिये इस मसजिद इन्टरमीडियेड बोर्ड अलग स्थापित हो गया है । का नाम 'अढ़ाई दिनका झोपड़ा' पड़ा। श्राज और एफ. ए. तकके विद्यार्थी वहीं परीक्षा दे कल मसजिद उत्तम स्थितिमें है। दिल्लीका कुतुब लेते हैं। बी०ए० के लिये यहाँके कालिज अागरा | मीनार और यह मसजिद करीब करीब एकही युनिवरसिटीसे सम्बन्ध रखते हैं । यद्यपि कुछवर्ष समयमै बनवाई गई थी। अजमेरसे दस मील पूर्व तक पलाहाचोद युनिवरसिटीसे ही उनका | पर पुष्कर तीर्थ नामक एक प्रसिद्ध सरोवर है। संबंध था। ९६०२-३ में स्कूलोमे शिक्षा पाने वालोंकी (पुष्कर देखो)। 1