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ठाकुर- ठसक
१८
 
( सवैया)

का कहिये परी नेह अधीन रिसान के लोग रिसानो ई सो है

और कहा कहिाँ कहि लेन दे नाम बुरो तौ बखानो ई सो है।

ठाकुर याकी है मोहिं प्रतीत सो बैर सबै रिस मानो ई सो है

वा घनश्याम अकेले बिना सिगरो ब्रज बीर बिरानो ई सो है।७१

काहे अरे मन साहस छाँड़त काहे उदास हो देह तजै है

वे सुख बे दुख आये चले गये एक सीरीति रही नहि है।

ठाकुर काको भरोल करें हम या जगजालन भूल न ऐहै।

जाने सँजोग में दीन्हो बियोग २ में सो का संयोग न दैहै ।७२।

अरे लाल सनेही सनेह तजौ सजौ बैर तऊ सुधि लीजतु है।

हम आनन आन निहारोई ना जपि नाम तिहारोई जीजतु है।

कवि ठाकुर भूल कछू अपनी तिहि तै तुम्हें दोष न दीजतु है ।

चित आनाकी श्रान कही चहै पै हित जान अईगई कीजतु है ७३।

का कहिये कोई पीरक नाहिने तातै हिके की जतैयत नाहीं।

भागन भेट भई कबहूँ सु घरीकु बिला अधैयत नाही।

ठाकुर या घर चौचंद को डर ताते घरी घरी ऐयत नाही।

मेंटन पैयत कैसे तिन्हैं जिन्हें आँखिन देखन पैयत नाहीं ७४॥

जा दिन जान लगे परदेस को रौंदि हियो छतिया पैगली करी ।

औध को आस बताई दगा करि राखि गये फिर स्वाँस चलीकर

ठाकुर आप महा सुख लूटत बावरी सी बृषभानलली करी।

सोहत है तुमको सबही सुभले जू भले लला आयु भली करी७५

मेरी कही कर मो जिय भवरे तोसों कहाँ हौं सनेह के नाते।

एक दिना भगवान सु आइ को कहिहै सुख सौं मुख बातें ॥

ठाकुर फेरि जुदे जुदे होयगे देखु बिचार कहां मैं कहाँ ते ।

झेलो वियोग के ये उझिला निकसै जिन रेजिअरा हिअरा ७६॥

कौन गुनाह परो हम सो अबलों घनस्याम निहोरितु है।

जो अपनी हितकारी महा तिन सौं कहूँ डीठि मरोरितु है।