पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१००

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साधन ८३ अनशन और उपवास की होड़ लगी। सोम के तिल को सूफियों ने ताइ कर दिया । सूफी उपवासमात्र में सत्त्वशुद्धि समझने लगे । आज भी सूफी आहार-शुद्धि को सत्वशुद्धि का कारण मानते तथा उसका महत्व गाते फिरते हैं। संप्रदायों के विभेद का एक कारण व्रत भी है। कहा जाता है कि सौम में व्रती, फरिश्तों क्या, अल्लाह का अनुगामी हो जाता है; क्योकि अल्लाह भी खान पान वा भोग-विलास से मुक्त है । सूफी अल्लाह के प्रेम में तत्पर और सदैव तल्लीन रहनेवाले जीव ठहरे । सोम तक ही उनका उपवास भला कब तक सीमित रह सकता है ? अतः उनमें से कुछ तो सौम का नेत्र बढ़ाकर प्रायः व्रत किया करते हैं और कुछ उसकी भी उपेक्षा कर प्रियतम के वियोग में मत्त हो उठते हैं और इसलाम का कोई भी बंधन नहीं मानते । सर्वथा 'अाजाद' जो ठहरे । सौम साल में एक ही बार आता है और वह देश-काल का ध्यान भी नहीं रखता । फलतः उसका पालन भी सर्वत्र उचित रीति से नहीं हो पाता। वह किसी भी ऋतु में पड़ जाता है और उसमें दिनमान का विचार ही नहीं रहता। लोग मंकट के समय उसे टाल देते अथवा अड़चन आने पर मका का दिन मान लेते हैं । सूर्य के सामने ही रोजा खोलते और उसके अस्त होते ही खान-पान में लीन हो जाते हैं । रमजान में भोगविलास से विरत रहने की आवश्यकता नहीं। हाँ, दिन में उससे दूर रहने का विधान है, रात में वह भी नहीं। तात्पर्य यह कि सौम के विधान से स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में मुहम्मद साहब का इसलाम प्रारम्भ में एक देशीय अथवा इसमाईल की संतानों (अरब) के लिये ही था किन्तु बाद में उसको विश्वव्यापक बना दिया गया। तो भी प्रतिदिन की चर्या से उसका कोई संबंध नहीं। इसके लिए तो सलात ही की शरण लेनी पड़ेगी। “सौम' तो इसलाम का 'संयम' भर है। सलात की भावना चाहे कितनी ही भव्य क्यों न हो किंतु उसमें हृदय का सचा उद्गार नहीं । अल्लाह की आराधना के लिये कुरान से रस खींचकर मुहम्मद (१) दी होली कुरान, प्राक्कथन पृ. २५ । (२) दी होली कुरान प्राक्कथन, नोट २३३ ।