पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साधन ८५ जो हो, उपर्युक्त विवेचन से प्रकट ही है कि सलात में तसव्वुफ के काम की बहुत सी बातें हैं । सूफी किसी गुरु की देख-रेख में विश्वास रखते हैं और उसके संकेत पर आचरण करते हैं। सलात में भी इमाम सब का अगुपा होता है, लोग उसका अनुसरण करते हैं। सूफी अल्लाह के प्रेमी होते हैं, उस पर अपने को निछावर कर देते हैं, उसके प्रणिधान में मग्न होते हैं ; सलात में भी अल्लाह अनन्य कहा जाता है, लोग उसकी शरण में जाते हैं, सर्वथा प्रपन्न होते हैं। सूफी सदैव अल्लाह का विरह जगाते और उसका स्मरण करते हैं; सलात में भी सदा अल्लाह का नाम लिया जाता और उसके आदेश पर अमल किया जाता है। सूफी संसार का हित और जीवमात्र का कल्याण चाहते हैं; सलात में भी इसलाम का शुभ एवं मोमिन का मंगल मनाया जाता है। सूफी अभ्यास के लिये आसन का विधान करते और नियम बनाते हैं; सलात में भी पद्धति विशेष की व्यवस्था और उस पर यथातथ्य आचरण का विधान है। संक्षेप में, सलात के आधार पर 'जिक' का व्यापार आसानी से खड़ा हो सकता है। कुरान में इसके लिये भी कुछ प्रबन्ध है। हेरा की गुहा में मुहम्मद साहब जिस योग-मुद्रा में अल्लाह का अनुध्यान करते थे उसका ठीक ठीक पता नहीं। प्रवाद के आधार पर कहा इतना जा सकता है कि वह सलात की मुद्राओं से कुछ भिन्न थी। हम देख चुके हैं कि प्राचीन नबियों और काहिनों में भी एक प्रकार की योग-क्रिया प्रचलित थी। इसमें तो संदेह नहीं कि अंगों के संघटन, संचालन अथवा उनके संयोग-वियोग, समास-व्यास, एवं व्यायाम पर शरीर-साम्राज्य का सारा श्रेय निर्भर है। यह प्रतिदिन की देखी सुनी बात है कि मुद्रा-विशेष का प्रभाव भी चित्त पर कुछ विशेष ही होता है । माधकों की बात अभी जाने दीजिए, व्यवसायियों की बैठक भी एक सी नहीं होती। स्वभाव, बँधने के लिये, यदि आसन की बाट देखता है तो प्रासन भी स्वभाव को परिष्कृत कर देता है । अतएव किसी भी साधना में मुद्रा का महत्व मान्य होता (१) डिक्शनरी भाव इसलाम, 'जिन'।