पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१०३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत है। सूफियों का लक्ष्य इसलाम से कुछ भिन्न है; अतः उनकी साधना का मार्ग भी सलात से कुछ भिन्न है। जो लोग सूफी-संप्रदायों के इतिहास से अभिज्ञ हैं वे यह भी भली भाँति जानते ही हैं कि उनकी विभिन्नता का एक प्रधान कारण जिन की मनमानी पद्धति भी है, जो प्रकृति और परिस्थिति की विभिन्नता के कारण औरों से अपनी एक स्वतंत्र लीक बनाती है और अन्यों की बहुत कुछ उपेक्षा भी कर जाती है। जिक के विरोध में न जाने कितने काजी और मुल्ला बराबर लगे रहे पर उसकी धारा प्रतिदिन बढ़ती ही रही । समाज तो जिक्र का स्वागत करता ही था, सूफियों ने कुरान के आधार पर भी उसको साधु सिद्ध कर दिया । फिर भला किसी काजी या मुल्ला के रोकने से उसका प्रवाह किस प्रकार रुक सकता था! सूफी सलात के द्वषी तो थे नहीं, फिर भला मुसलिम इनका विरोध क्यों करते ! लोक. मंगल अथवा मुसलिम हित की कामना से सूफी सलात का पालन कर तो लेते थे, पर उन्हें शांति जिक्र ही में मिलती थी। सूफियों ने सलात को सामान्य और जिक्र को विशेष बना दिया, जिससे उसके अधिकारी भी कतिपय चुने हुए व्यक्ति ही रह गए; और मुद्धाओं का प्रत्यक्ष प्रहार भी निष्फल हो गया। सूफियों को जिक्र के अनुटान में वह शक्ति मिली जो अल्लाह और इंसान को एक कर देती है। इस एकता के संपादन के लिये जिक्र के नाना रूप प्रचलित हो गए । एक ओर तो सूफी उठते-बैठते गिरते-पड़ते प्रियतम की चौखट चूमते फिरते थे और दूसरी ओर अासन मारे जप करने में मग्न होते थे । जप के लिये उनको तसबीह की आवश्यकता पड़ी। उनको यह भी व्यक्त हो गया कि प्रियतम के दोदार के लिये प्राणों के आयाम की भी जरूरत है। निदान, मन एवं शरीर पर अधिकार पाने के लिये योग उचित समझा गया । योग की साधना के लिये एकांत सेवन करना पड़ा । एकांत में अल्लाह की चिंता हुई; उनमें चिंतन का प्रचार हो गया। चिंतन की शिथिलता के अनंतर प्राप्तवाक्यों का अवलोकन इष्ट होता है ; उनमें स्वाध्याय होता रहा । अध्ययन में प्रश्न उठने लगे, जिज्ञासा जाग पड़ी । इलहाम से काम न चला; (1) ऐस्पेक्ट्स आव इसलाम, पृ० ६२, ।